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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 64 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 64/ मन्त्र 1
    ऋषिः - अथर्वा देवता - विश्वे देवाः, मनः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सांमनस्य सूक्त
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    सं जा॑नीध्वं॒ सं पृ॑च्यध्वं॒ सं वो॒ मनां॑सि जानताम्। दे॒वा भा॒गं यथा॒ पूर्वे॑ संजाना॒ना उ॒पास॑ते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सम् । जा॒नी॒ध्व॒म् । सम् । पृ॒च्य॒ध्व॒म् । सम् । व॒: । मनां॑सि । जा॒न॒ता॒म् । दे॒वा: । भा॒गम् । यथा॑ । पूर्वे॑ । स॒म्ऽजा॒ना॒ना: । उ॒प॒ऽआस॑ते ॥६४.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सं जानीध्वं सं पृच्यध्वं सं वो मनांसि जानताम्। देवा भागं यथा पूर्वे संजानाना उपासते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सम् । जानीध्वम् । सम् । पृच्यध्वम् । सम् । व: । मनांसि । जानताम् । देवा: । भागम् । यथा । पूर्वे । सम्ऽजानाना: । उपऽआसते ॥६४.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 64; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    संगति के लाभ का उपदेश।

    पदार्थ

    (सम् जानीध्वम्) आपस में जान पहिचान करो, (सम् पृच्यध्वम्) आपस में मिले रहो, (जानताम् वः) ज्ञानवाले तुम लोगों के (मनांसि) मन (सम्) एकसे होवें [अथवा−(वः) तुम्हारे (मनांसि) मन (सम्) एकसे (जानताम्) होवें]। (यथा) जैसे (पूर्वे) प्रथम स्थानवाले, (संजानानाः) यथावत् ज्ञानी (देवाः) विद्वान् लोग (भागम्) सेवनीय परमेश्वर अथवा ऐश्वर्यों के समूह को (उपासते) सेवन करते हैं ॥१॥

    भावार्थ

    मनुष्य परस्पर मिलकर वेद आदि शास्त्रों का विचार करके ज्ञानी पुरुषों के समान ईश्वर आज्ञा पालन करते हुए अनेक ऐश्वर्य प्राप्त करें ॥१॥ मन्त्र १-३ कुछ भेद से ऋग्वेद के चार मन्त्रवाले अन्तिम सूक्त, म० १०। सू० १९१ के म० २-४। हैं, पहिला मन्त्र गत सूक्त में आ चुका है और स्वामी दयानन्दकृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, वेदोक्त धर्मविषय में भी आये हैं ॥

    टिप्पणी

    १−(सम् जानीध्वम्) संप्रतिभ्यामनाध्याने। पा० १।३।४६। इत्यात्मनेपदत्वम्। समानज्ञानयुक्ता भवत (सम् पृच्यध्वम्) पृची सम्पर्के। संपृक्ताः संसृष्टकार्य्या भवत (सम्) समानानि (वः) युष्माकम् (मनांसि) अन्तःकरणानि (जानताम्) ज्ञा अवबोधने−शतृ। ज्ञानवताम्, अथवा। अकर्मकाच्च। पा० १।३।४५। इत्यात्मनेपदम्। लोटि रूपम्। प्रवर्तन्ताम् (देवाः) विद्वांसः (भागम्) भज सेवायाम्−घञ्। भजनीयमीश्वरम्, अथवा, भग−अण्। भगानामैश्वर्य्याणां समूहम् (यथा) येन प्रकारेण (पूर्वे) प्रथमस्थाने वर्तमानाः श्रेष्ठाः (संजानानाः) सम्+शानच् सम्यग् ज्ञानवन्तः (उपासते) सेवन्ते ॥

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    विषय

    संज्ञान

    पदार्थ

    १. आचार्य का विद्यार्थी को प्रथम उपदेश यह है कि तुम (संजानीध्वम्) = समान ज्ञानयुक्त होओ। ज्ञान ही सब व्यवहारों का मूल है। समान ज्ञानवाले होकर (संपृच्यध्वम्) = मिलकर कार्यों को करनेवाले होओ। (व:) = तुम्हारे (मनांसि) = मन (संजानताम्) = परस्पर विरुद्ध ज्ञानजनक न हों। अन्त:करण समान ज्ञान को पैदा करेगा तो संज्ञानवाले बनकर मिलकर कर्मों को करनेवाले होंगे। २. (यथा) = जिस प्रकार (संज्ञानाना:) = संज्ञानवाले (पूर्वे) = पालन व पूरण करनेवाले (देवा:) = देव (भागम् उपासते) = अपने-अपने कर्तव्य का उपासन करते हैं, उसी प्रकार हम भी 'सांमनस्य, संज्ञान व सम्पर्क' वाले हों।

    भावार्थ

    देव संज्ञानवाले होते हए अपने कर्तव्यकर्मों को करते हैं, उसी प्रकार हम भी संज्ञानवाले होकर अपने-अपने कर्तव्यों को करें।

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    भाषार्थ

    (सं जानीध्वम्) तुम सम्यक्-ज्ञान से तथा ऐकमत्य से युक्त होओ, (सं पृच्यध्वम्) एतदर्थ परस्पर संपर्क किया करो, (वः) तुम्हारे (मनांसि) मन (सं जानताम्) एक विध सकल्पों वाले हों। (यथा) जैसे (पूर्वे) विद्या से सम्पूर्ण (देवाः) विद्वान् (सं जानाना:) एक मत हो कर (भागम्) भजनीय परमेश्वर का (उपासते) उपासना करते हैं [वैसे तुम भी किया करो]।

    टिप्पणी

    [पूर्वे= पुर्व पूरणे (भ्वादिः)]।

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    विषय

    एकचित्त होने का उपदेश।

    भावार्थ

    हे पुरुषो ! (यथा) जिस प्रकार (पूर्वे) पूर्व के विद्यमान (देवाः) विद्वान् लोग (संजानानाः) समान रूपसे एकत्र होकर ज्ञान प्राप्त करते हुए (भागम्) अपने भजन करने योग्य फल को (उपासते) प्राप्त करते हैं। उसी प्रकार (सं पृच्यध्वम्) आप लोग एकत्र होकर, एक दूसरे से सम्पर्क रक्खो। (वः) आप लोगों के (मनांसि) मन, चित्त (सं जानताम्) प्रत्येक पदार्थ को समान रूप से ही जानें।

    टिप्पणी

    (प्र०) ‘सं गच्छध्वं संवदध्वं’ इति ऋ०। ऋग्वेदे संवनन ऋषिः। संज्ञानं देवता।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। साम्मनस्यं देवता। १, २ अनुष्टुभौ। २ त्रिष्टुप्। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    United Social Order of Humanity

    Meaning

    Know well and together, join together and well, completely, without reservation, join at heart, know all your minds well and increase your knowledge together, the way the divines of old joined, knew and performed well, observing their Dharma of rights and duties integrated.

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    Subject

    Sam - manasyam : Complete Understanding

    Translation

    Know each other. Be united together. Understand the thoughts of each other among yourselves, just as the enlightened ones of olden times waited for their shares with complete understanding.(Cf. Rg. X.191.2)

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    Translation

    O mankind! agree and be united together, let your mind be of one accord and like the enlightened seers who lived before you in unanimity you ought to worship me alone.

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    Translation

    Agree and be united: let your minds be all of one accord, even as the learned sages of ancient days, unanimously worship God.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(सम् जानीध्वम्) संप्रतिभ्यामनाध्याने। पा० १।३।४६। इत्यात्मनेपदत्वम्। समानज्ञानयुक्ता भवत (सम् पृच्यध्वम्) पृची सम्पर्के। संपृक्ताः संसृष्टकार्य्या भवत (सम्) समानानि (वः) युष्माकम् (मनांसि) अन्तःकरणानि (जानताम्) ज्ञा अवबोधने−शतृ। ज्ञानवताम्, अथवा। अकर्मकाच्च। पा० १।३।४५। इत्यात्मनेपदम्। लोटि रूपम्। प्रवर्तन्ताम् (देवाः) विद्वांसः (भागम्) भज सेवायाम्−घञ्। भजनीयमीश्वरम्, अथवा, भग−अण्। भगानामैश्वर्य्याणां समूहम् (यथा) येन प्रकारेण (पूर्वे) प्रथमस्थाने वर्तमानाः श्रेष्ठाः (संजानानाः) सम्+शानच् सम्यग् ज्ञानवन्तः (उपासते) सेवन्ते ॥

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