अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 78/ मन्त्र 2
ऋषिः - अथर्वा
देवता - रयिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - धनप्राप्ति प्रार्थना सूक्त
0
अ॒भि व॑र्धतां॒ पय॑साभि रा॒ष्ट्रेण॑ वर्धताम्। र॒य्या स॒हस्र॑वर्चसे॒मौ स्ता॒मनु॑पक्षितौ ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒भि । व॒र्ध॒ता॒म् । पय॑सा । अ॒भि । रा॒ष्ट्रेण॑ । व॒र्ध॒ता॒म् । र॒य्या । स॒हस्र॑ऽवर्चसा । इ॒मौ । स्ता॒म् । अनु॑पऽक्षितौ ॥७८.२॥
स्वर रहित मन्त्र
अभि वर्धतां पयसाभि राष्ट्रेण वर्धताम्। रय्या सहस्रवर्चसेमौ स्तामनुपक्षितौ ॥
स्वर रहित पद पाठअभि । वर्धताम् । पयसा । अभि । राष्ट्रेण । वर्धताम् । रय्या । सहस्रऽवर्चसा । इमौ । स्ताम् । अनुपऽक्षितौ ॥७८.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
गृहस्थ के धर्म का उपदेश।
पदार्थ
(पयसा) प्राप्तियोग्य अन्न से और (राष्ट्रेण) राज्य वा ऐश्वर्य से (अभि) पत्नी के लिये (वर्द्धताम्) पति बढ़े, और (अभि) पति के लिये (वर्धताम्) पत्नी बढ़े। (सहस्रवर्चसा) सहस्र प्रकार के तेजवाले (रथ्या) धन से (इमौ) यह दोनों (अनुपक्षितौ) घटती बिना [सदा भरपूर] (स्ताम्) रहें ॥२॥
भावार्थ
जिस घर में स्त्री-पुरुष प्रसन्न रह कर पुरुषार्थपूर्वक परस्पर सहाय करते हैं, वहाँ सब प्रकार की सम्पदा सदा विराजमान रहती है ॥२॥
टिप्पणी
२−(अभि) पत्नी प्रति (वर्धताम्) पतिः प्रवृद्धो भवतु (पयसा) प्राप्तव्येनान्नेन। पयः, अन्नम्−निघ० २।७। (अभि) पतिं प्रति (राष्ट्रेण) राज्येन ऐश्वर्येण (वर्धताम्) वधूः प्रवृद्धा भवतु (रय्या) रयिः, धननाम−निघ० २।१०। (सहस्रवर्चसा) अपरिमिततेजोयुक्तेन (इमौ) जायापती (स्ताम्) भवताम् (अनुपक्षितौ) अनुपक्षीणौ। सम्पूर्णकामौ ॥
विषय
पयसा, राष्ट्रेन, रय्या
पदार्थ
१. यह गृहपति (पयसा) = आप्यायन के साधनभूत क्षीर आदि पदार्थों से (अभिवर्धताम्) = वृद्धि को प्राप्त करे। यह (राष्ट्रेण) = ग्राम आदि की समृद्धि से (अभिवर्धताम्) = वृद्धि को प्राप्त करे राष्ट्रोन्नति में अपनी उन्नति समझे। २. (इमौ) = ये दोनों पति-पत्नी (सहस्त्रवर्चसा) = अपरिमित तेजवाले (रय्या) = धन से (अनुपक्षितौ स्ताम्) = अक्षीण हों।
भावार्थ
गृहस्थ में दूध आदि पुष्टिकारक पदार्थों की कमी न हो, ग्राम आदि सम्पत्ति की कमी न हो तथा तेजस्विता को बढ़ानेवाले धन की कमी न हो।
भाषार्थ
[पति-पत्नी दोनों] (पयसा) दुग्धादि द्वारा (अभिवर्धताम्) बढ़ें, (राष्ट्रेन) राष्ट्र या राष्ट्रिय भावना द्वारा (अभिवर्धताम्) बढ़े। (इमौ) ये दोनों (सहस्रवर्चसा) अपरिमित तेजप्रद (रय्या) सम्पत्ति द्वारा (अनुपक्षितौ)१ उपक्षीण न (स्ताम्) हों, इनकी सम्पत्ति बढ़ती रहे।
टिप्पणी
[१. ये दोनों ऐसे अन्नादि का सेवन करें कि गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए भी इन का तेज बढ़ता रहे।]]
विषय
स्त्री पुरुष का परस्पर व्यवहार।
भावार्थ
मनुष्य (पयसा) पुष्टिकारक पदार्थ से (अभिवर्धताम्) बढ़े और (राष्ट्रेण) राष्ट्र से भी बढ़े। (इमौ) ये दोनों स्त्री और पुरुष (सहस्र-वर्चसा) सहस्रों प्रकार के बल देने वाले (रय्या) धन द्वारा (अनुपक्षितौ) कभी दरिद्र न (स्ताम्) हों।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। चन्द्रमास्त्वष्टा देवता। १-३ अनुष्टुभः। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Wedded Couple
Meaning
Let the husband and wife grow with delicious food and drink and conjugal felicity by the inspiring state of the social order. Let the couple grow by a thousand fold wealth and lustre of honour without any set back ever.
Translation
May he prosper with milk; may he prosper with princely power. May both these be exhaustiess in riches with thousands of splendours.
Translation
Let him with the life’s sap comfort her, let her rise with nation’s strength and let the both of them be inexhaustible in wealth have a thousand power.
Translation
Let him feed her with milk, and raise her high with princely sway. With wealth that hath a thousand powers, let this pair be free from penury.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(अभि) पत्नी प्रति (वर्धताम्) पतिः प्रवृद्धो भवतु (पयसा) प्राप्तव्येनान्नेन। पयः, अन्नम्−निघ० २।७। (अभि) पतिं प्रति (राष्ट्रेण) राज्येन ऐश्वर्येण (वर्धताम्) वधूः प्रवृद्धा भवतु (रय्या) रयिः, धननाम−निघ० २।१०। (सहस्रवर्चसा) अपरिमिततेजोयुक्तेन (इमौ) जायापती (स्ताम्) भवताम् (अनुपक्षितौ) अनुपक्षीणौ। सम्पूर्णकामौ ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal