अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 89/ मन्त्र 2
शो॒चया॑मसि ते॒ हार्दिं॑ शो॒चया॑मसि ते॒ मनः॑। वातं॑ धू॒म इ॑व स॒ध्र्यङ्मामे॒वान्वे॑तु ये॒ मनः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठशो॒चया॑मसि । ते॒ । हार्दि॑म् । शो॒चया॑मसि । ते॒ । मन॑: । वात॑म् । धू॒म:ऽइ॑व । स॒ध्र्य᳡ङ् । माम् । ए॒व । अनु॑ । ए॒तु॒ । ते॒ । मन॑: ॥८९.२॥
स्वर रहित मन्त्र
शोचयामसि ते हार्दिं शोचयामसि ते मनः। वातं धूम इव सध्र्यङ्मामेवान्वेतु ये मनः ॥
स्वर रहित पद पाठशोचयामसि । ते । हार्दिम् । शोचयामसि । ते । मन: । वातम् । धूम:ऽइव । सध्र्यङ् । माम् । एव । अनु । एतु । ते । मन: ॥८९.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
शत्रु को जीतने का उपदेश।
पदार्थ
[हे शत्रु !] (ते) तेरी (हार्दिम्) हार्दिक शक्ति को (शोचयामसि) हम शोक में डालते हैं, (ते) तेरे (मनः) मन अर्थात् मनन सामर्थ्य को (शोचयामसि) हम शोक में डालते हैं। (ते) तेरा (मनः) मन (माम् एव अनु) मेरे ही पीछे-पीछे (एतु) चले, (इव) जैसे (सध्र्यङ्) [वायु से] मिला हुआ (धूमः) धुआँ (वातम्) वायु के [साथ-साथ चलता है] ॥२॥
भावार्थ
बलवान् मनुष्य शत्रु को उसके शरीर और आत्मा से व्याकुल करके सदा अपने वश में रक्खे ॥२॥
टिप्पणी
२−(मनः) सङ्कल्पविकल्पात्मकं मननसामर्थ्यम् (वातम्) वायुम् (धूमः) (इव) यथा (सध्र्यङ्) अ० ३।३०।५। सह अञ्चतीति, सहस्य सध्रि। वातेन सह गन्ता (माम्) पुरुषार्थिनम् (एव) अवश्यम् (अनु) अनुसृत्य (एतु) गच्छतु। अन्यत् पूर्ववत् ॥
विषय
परस्पर अनुकूलता
पदार्थ
१. पति-पत्नी परस्पर कहते हैं कि (ते हार्दिम) = तेरे हुन्मध्यवर्ति अन्त:करण को (शोचयामसि) = अनुराग के उत्पादन से दीप्त करते हैं। (ते मन:) = तेरी संकल्प-विकल्पात्मक अन्त:करण की वृत्तिविशेष को भी (शोचयामसि) = उज्ज्वल करते हैं। पति-पत्नी का हृदय एक दूसरे के प्रति अनुरागवाला हो, उनका मन एक-दूसरे के प्रति उत्तम संकल्पोंवाला हो। २. (इव) = जैसे (धूम:) = धुंआ (वातम्) = वायु के साथ गतिवाला होता है, इसीप्रकार (ते मन:) = तेरा मन (माम् एव सध्यइ)= मेरे साथ ही गतिवाला होकर (अनु एतु) = अनुकूलता से प्राप्त हो। पति के अनुकूल पत्नी का मन हो, पति का मन पत्नी के अनुकूल हो।
भावार्थ
पति-पत्नी अपने व्यवहार से एक-दूसरे के हृदय व मन को दीस करनेवाले हों। इनके मन परस्पर अनुकूलता से युक्त हों।
भाषार्थ
[हे पत्नी !] (ते) तेरे (हार्दिक) हृदयगत चित्त को (शोचयामसि) हम शोकयुक्त करते हैं, (ते) तेरे (मनः) संकल्पविकल्पात्मक मन को (शोचयामसि) हम शोकयुक्त करते हैं। (धूमः) धुआं (इव) जैसे (वायुम्) वायु के (सध्र्यङ्) साथ गति करता है वैसे (ते) तेरा (मन:) मन (माम् एव) मेरा हो (अनु एतु) अनुगमन करे।
टिप्पणी
[सध्र्यङ् = 'सह' को 'सध्रि' आदेश 'सहस्य सध्रिः' (अष्टा० ६।३।९५)+ अञ्चु गतौ (भ्वादिः)]।
विषय
पति का कर्तव्य—पत्नीसंरक्षण।
भावार्थ
हे मित्र ! उसी कर्त्तव्य से (ते) तेरे (हार्दिम्) हृदय के भावों को हम (शोचयामसि) उद्दीप्त करते हैं। (ते मनः) तेरे मन को (शोचयामः) उद्दीत करते हैं ! हे स्त्री ! (ते मनः) तेरा संकल्प विकल्प करने वाला मन, अन्तःकरण (वातं धूमः इव) जिस प्रकार वायु के झकोरे के साथ धूआं उड़ा चला जाता है उसी प्रकार (माम् एव) मेरे ही (सध्र्यङ्) साथ साथ (अनु एतु) पीछे पीछे चले। इसी प्रकार स्त्री भी पुरुष के प्रति भावना करे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। मन्त्रोक्ता देवता। अनुष्टुभः। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Spirit of Love,
Meaning
We excite the passion in your heart, we excite your mind. Let your mind follow me as the smoke follows the wind. (This is the call of life to love for living.)
Translation
We incite your heart, we incite your mind. May your mind follow me straight, as smoke follows the wind.
Translation
I stir up your feelings of heart, I estimulate your spirit and like the smoke that takes the direction of wind let your mind follow me in my company.
Translation
We enkindle the feelings of thy heart, we animate thy mind with love. O wife, as smoke accompanies the wind, so let thy fancy follow me!
Footnote
We: the relatives. Thy: Husband or wife. Husband and wife should mutually say to each other, to live in amity and accord and hold mutual counsel. Husband should follow the advice of the wife and vice versa.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(मनः) सङ्कल्पविकल्पात्मकं मननसामर्थ्यम् (वातम्) वायुम् (धूमः) (इव) यथा (सध्र्यङ्) अ० ३।३०।५। सह अञ्चतीति, सहस्य सध्रि। वातेन सह गन्ता (माम्) पुरुषार्थिनम् (एव) अवश्यम् (अनु) अनुसृत्य (एतु) गच्छतु। अन्यत् पूर्ववत् ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal