अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 1
वाञ्छ॑ मे त॒न्वं पादौ॒ वाञ्छा॒क्ष्यौ॒ वाञ्छ॑ स॒क्थ्यौ॑। अ॒क्ष्यौ॑ वृष॒ण्यन्त्याः॒ केशा॒ मां ते॒ कामे॑न शुष्यन्तु ॥
स्वर सहित पद पाठवाञ्छ॑ । मे॒ । त॒न्व᳡म् । पादौ॑ । वाञ्छ॑ । अ॒क्ष्यौ᳡ । वाञ्छ॑ । स॒क्थ्यौ᳡ । अ॒क्ष्यौ᳡ । वृ॒ष॒ण्यन्त्या॑: । केशा॑: । माम् । ते॒ । कामे॑न । शु॒ष्य॒न्तु॒ ॥९.१॥
स्वर रहित मन्त्र
वाञ्छ मे तन्वं पादौ वाञ्छाक्ष्यौ वाञ्छ सक्थ्यौ। अक्ष्यौ वृषण्यन्त्याः केशा मां ते कामेन शुष्यन्तु ॥
स्वर रहित पद पाठवाञ्छ । मे । तन्वम् । पादौ । वाञ्छ । अक्ष्यौ । वाञ्छ । सक्थ्यौ । अक्ष्यौ । वृषण्यन्त्या: । केशा: । माम् । ते । कामेन । शुष्यन्तु ॥९.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
गृहस्थ आश्रम का उपदेश।
पदार्थ
(मे) मेरे (तन्वम्) शरीर की और (पादौ) दोनों पैरों की (वाञ्छ) कामना कर, (अक्ष्यौ) दोनों नेत्रों की (वाञ्छ) कामना कर (सक्थ्यौ) दोनों जङ्घाओं की (वाञ्छ) कामना कर। (वृषण्यन्त्याः) ऐश्वर्यवान् पुरुष की इच्छा करती हुयी (ते) तेरी (अक्ष्यौ) दोनों आँखें और (केशाः) केश (कामेन) सुन्दर कामना से (माम्) मुझ को (शुष्यन्तु) सुखावें ॥१॥
भावार्थ
स्त्री पुरुष सब अङ्गों से हृष्ट-पुष्ट और पुरुषार्थी होकर पूर्ण युवा अवस्था में गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करने की इच्छा करें ॥१॥
टिप्पणी
१−(वाञ्छ) कामयस्व। इच्छ (मे) मम (तन्वम्) शरीरम् (पादौ) (अक्ष्यौ) अ० १।२७।१। अक्षिणी (सक्थ्यौ) सक्थिनी जङ्घे। ई च द्विवचने। पा० ७।१।७७। इति ईकारः (वृषण्यन्त्याः) अ० ५।५।१। वृषाणमिन्द्रम् ऐश्वर्यवन्तम् आत्मन इच्छन्त्याः (केशाः) (माम्) पुरुषम् (ते) तव (कामेन) इष्टमनोरथेन (शुष्यन्तु) शोषयन्तु ॥
विषय
प्रेम व सौन्दर्य
पदार्थ
१. (मे) = मेरे (तन्वम्) = शरीर को तू (वाञ्छ) = चाह-तुझे मेरा शरीर प्रिय लगे। (पादौ अक्ष्यौ वाञ्छ) = मेरे पाँव व नेत्र तुझे अच्छे लगें। (सक्थ्यौ वाञ्छ) = मेरी जंघाओं की तू इच्छा कर-वे तुझे प्रिय हों। पत्नी का पति के प्रति प्रेम होने से उसे पति के सब अङ्ग सुन्दर प्रतीत होते हैं। प्रेम सौन्दर्य पैदा कर देता है। २. पति कहता कि (माम्) = मुझे भी (वृषण्यन्त्याः) = मेरी कामना करनेवाली तेरी (अक्ष्यौ) = आँखें तथा (केशा:) = बाल (ते कामेन) = तेरे प्रति कामना से (शष्यन्तु) = सुखाया करें, अर्थात् मैं भी तेरे बिना प्रीति का अनुभव न करूँ।
भावार्थ
पति-प्रेम के कारण पत्नी को पति के सब अङ्ग प्रिय लगें और पति भी पत्नी के वियोग में प्रीति का अनुभव न करे।
भाषार्थ
(मे) मेरे (तन्वम्) शरीर को, (पादौ) पैरों को, [हे पत्नी !](वाञ्छ) तू चाह, (अक्ष्यौ) दोनों आंखों को (वाञ्छ) तू चाह, (सक्थ्यौ) दोनों ऊरूओं [thighs] को (वाञ्छ) चाह। (वृषण्यन्त्याः) सेचनसमर्थ मुझ को चाहती हुई के, (ते ) अर्थात् तेरी ( अक्ष्यौ ) दोनों आंखें, (केशा:) और केश (माम् कामेन) मेरे प्रति कामना के कारण (शुष्यन्तु) सूख जांय।
टिप्पणी
[पति कहता है रुष्ट हुई पत्नी के प्रति, कि विवाह से पूर्व तूने मुझे पसन्द कर लिया था और मेरे शरीर और शरीर के प्रत्येक अङ्ग को तुने पर्ख लिया था। अब भी तदनुसार तू मेरे शरीर और शरीर के प्रत्येक अङ्ग को चाह, मेरे किसी अङ्ग को विकृत हुआ जानकर, मुझ से रुष्ट होकर विरक्त न हो। तेरी विरक्ति के कारण, तुझे त्याग कर, मैं कहीं चला गया तो भी मैं परमेश्वर से प्रार्थना करता हूं कि मुझे स्मरण करती हुई की तेरी आंखें तथा केश सूख जाय। पति के वियोग में दुःख के कारण अतिशय रोती हुई की आंखें सुख जाय, और तैल न लगाने से केश सूख जाय। जिनके परिणामभूत मेरा पुनरागमन हो और पुनः सुखपूर्वक सहवास कर सकें। यह अभिप्राय मन्त्र का प्रतीत होता है। इस अभिप्राय को अगले दो मन्त्रों में स्पष्ट किया है, यथा–
विषय
स्त्री पुरुषों का परस्पर प्रेम करने का कर्तव्य।
भावार्थ
स्त्री पुरुषों को परस्पर के प्रति प्रेम और अभिलाषा करने का उपदेश करते हैं। हे प्रियतमे ! तू (मे) मेरे (तन्वं) शरीर को (वांछ) मन से चाह। (पादौ वांछ) मेरे पैरों को चाह, (अक्ष्यौ) मेरी आंखों की (वाञ्छ) चाह कर, (सक्थ्यौ बांद्र) मेरे अंगों की चाह कर। अर्थात् मेरे प्रत्येक अंग पर प्रेम भरी दृष्टि से देख। (वृषण्यन्त्याः) मेरे प्रति कामना करने हारी तेरी (अक्ष्यौ) आंखें और (केशाः) केश भी (मां) मुझको (कामेन) तेरी प्रबल कामना से (शुष्यन्तु) सुखाया करें अर्थात् पति भी पत्नी के चक्षुओं और केश आदि अंगों को देखकर प्रबलता से कामना करे तब वह भी उसके अंगों पर सप्रेम दृष्टिपात करे और दोनों पति पत्नी परस्पर को देखने के लिये सदा उत्सुक रहें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
जमदग्निर्ऋषिः। कामात्मा देवता। १-३ अनुष्टुभः। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Love
Meaning
Love my body, love my feet, love my eyes, love my thighs. Overwhelmed with my exuberant love, let your eyes and hair afflict me with your love.
Subject
Kama (Love) - Atman
Translation
May you long for my body, for my feet; may you long for my eyes and my thighs. Let eyes and hair of yours, passionately desirous of me, parch me (Susyantu) with an intense desire for you.
Translation
O wife! desire my body, desire to love my feet. desire my eyes, desire my legs and let the eyes and hair of yours, O fond-lady ! be dried through love of me.
Translation
Desire my body, love my feet, love thou mine eyes, and love my legs. Let both thine eyes and hair, fond girl! be dried and parched through love of me.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१−(वाञ्छ) कामयस्व। इच्छ (मे) मम (तन्वम्) शरीरम् (पादौ) (अक्ष्यौ) अ० १।२७।१। अक्षिणी (सक्थ्यौ) सक्थिनी जङ्घे। ई च द्विवचने। पा० ७।१।७७। इति ईकारः (वृषण्यन्त्याः) अ० ५।५।१। वृषाणमिन्द्रम् ऐश्वर्यवन्तम् आत्मन इच्छन्त्याः (केशाः) (माम्) पुरुषम् (ते) तव (कामेन) इष्टमनोरथेन (शुष्यन्तु) शोषयन्तु ॥
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