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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 93 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 93/ मन्त्र 1
    ऋषिः - शन्ताति देवता - यमः, मृत्युः, शर्वः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - स्वस्त्ययन सूक्त
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    य॒मो मृ॒त्युर॑घमा॒रो नि॑रृ॒थो ब॒भ्रुः श॒र्वोऽस्ता॒ नील॑शिखण्डः। दे॑वज॒नाः सेन॑योत्तस्थि॒वांस॒स्ते अ॒स्माकं॒ परि॑ वृञ्जन्तु वी॒रान् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य॒म: । मृ॒त्यु: । अ॒घ॒ऽमा॒र: । नि॒:ऽऋ॒थ: । ब॒भ्रु: । श॒र्व: । अस्ता॑ । नील॑ऽशिखण्ड: । दे॒व॒ऽज॒ना: । सेन॑या । उ॒त्त॒स्थि॒ऽवांस॑: । ते । अ॒स्माक॑म् । परि॑। वृ॒ञ्ज॒न्तु॒ । वी॒रान्॥९३.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यमो मृत्युरघमारो निरृथो बभ्रुः शर्वोऽस्ता नीलशिखण्डः। देवजनाः सेनयोत्तस्थिवांसस्ते अस्माकं परि वृञ्जन्तु वीरान् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यम: । मृत्यु: । अघऽमार: । नि:ऽऋथ: । बभ्रु: । शर्व: । अस्ता । नीलऽशिखण्ड: । देवऽजना: । सेनया । उत्तस्थिऽवांस: । ते । अस्माकम् । परि। वृञ्जन्तु । वीरान्॥९३.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 93; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सत्सङ्ग के लाभ का उपदेश।

    पदार्थ

    (यमः) न्यायकारी परमेश्वर [पापियों का] (अघमारः) पाप के कारण मारनेवाला, (मृत्युः) प्राण छोड़ानेवाला, (निर्ऋथः) निरन्तर पीड़ा देनेवाला और [धर्मात्माओं का] (बभ्रुः) पालन करनेवाला, (शर्वः) कष्ट काटनेवाला (अस्ता) ग्रहण करनेवाला और (नीलशिखण्डः) निधियों वा निवासों का देनेवाला है। (सेनया) अपनी सेना के साथ (उत्तस्थिवांसः) उठे हुए (ते) वे (देवजनाः) विजय चाहनेवाले पुरुष (अस्माकम्) हमारे (वीरान्) वीर लोगों को [विघ्न से] (परि) सर्वथा (वृञ्जन्तु) छुड़ावें ॥१॥

    भावार्थ

    जो शूर वीर विद्वान् स्त्री-पुरुष परमात्मा को शत्रुनाशक सुखवर्धक जान कर परोपकार करते हैं, वे ही कीर्ति पाते हैं ॥१॥

    टिप्पणी

    १−(यमः) नियन्ता परमेश्वरः (मृत्युः) पापिनां प्राणत्याजयिता (अघमारः) पुसिं संज्ञायां घः प्रायेण। पा० ३।३।११८। इति मृङ् प्राणत्यागे−घ। पापेन मारयिता (निर्ऋथः) अवे भृञः। उ० २।३। इति निर्+ऋ हिसायाम्−क्थन्। निरन्तरपीडकः (बभ्रुः) कुर्भ्रश्च। उ० १।२२। इति भृञ् भरणे−कु, द्विर्भावश्च। भर्त्ता। पालयिता (शर्वः) अ० ४।२८।१। कष्टनाशकः (अस्ता) अस ग्रहणे−तृन्। ग्रहीता (नीलशिखण्डः) अ० २।२७।६। नीलानां निधीनां वा नीडानां निवासानां प्रापकः (देवजनाः) विजिगीषवः पुरुषाः (सेनया) स्वस्वजनसंघेन (उत्तस्थिवांसः) उत्पूर्वात् तिष्ठतेर्लिटः−क्वसुः। उत्कर्षेण स्थिताः (ते) प्रसिद्धाः (अस्माकम्) धार्मिकाणाम् (परि) सर्वतः (वृञ्जन्तु) वृजी वर्जने। वर्जयन्तु विघ्नात् (वीरान्) पराक्रमिणः पुरुषान् ॥

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    विषय

    हम यम तथा देवजनों के कोपभाजन न हों

    पदार्थ

    १. (यम:) = पापियों का नियमन करनेवाला, (मृत्यु:) = [मारयति] प्राणों को छुड़ानेवाला, (अघमार:) = [अपथेन मारयति] पाप के कारण मारनेवाला, (निर्ऋथ:) = [नि:शेषेण ऋच्छति पीडयति] पापियों को अत्यन्त पीड़ित करनेवाला, (बभुः) = भरणशील, (शर्व:) = सब अशुओं को शीर्ण करनेवाला, (अस्ता) = शत्रुओं को परे फेंकनेवाला, (नीलशिखण्ड:) = सर्वोत्तम निधि-[नील-निधि, शिखण्ड crest] रूप प्रभु तथा (सेनया उत्तस्थिवांसः) = सेना के साथ उठे हुए (देवजना:) = शत्रु-सैन्यों को पराजित करने की कामनावाले ते-वे सब लोग (अस्माकं वीरान्) = हमारे वीरों को (परिवजन्तु) = परिहत करें-बाधित न करें।

    भावार्थ

    हमारे बीरों को प्रभु का दण्ड न भोगना पड़े। सेना के साथ आक्रमण करनेवाले विजिगीषु जन हमारे वीरों पर आक्रमण करने की न सोचें। पापवृत्ति से बचते हुए हम प्रभु के कोपभाजन न हों और वीर बनकर शत्रुओं से आक्रान्त न हो।

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    भाषार्थ

    (यमः) सेना का नियन्ता, (मृत्युः) मृत्यु दण्ड का निश्चय करने वाला (अघमारः) व्यक्ति के पाप के अनुसार मृत्यु का निर्णय देने वाला (निर्ऋथः) मृत्यु से भिन्न प्रकार के कष्ट देने वाला (बभ्रुः) भरण-पोषण करने वाला (शर्वः) तलवार द्वारा मारने वाला (अस्ता) तामसास्त्र फैंकने वाला (नीलशिखण्ड:) नीली ज्वाला देने वाला (देवजनाः) ये देवजन हैं। युद्ध में (सेनया) सेना के साथ ये देवजन भी (उत्तस्थिवांसः) उठते१ हैं, (ते) वे देवजन (अस्माकम्) हमारे (वीरान्) वीरों को (परिवृञ्जन्तु) परित्यक्त कर दें। भ्रम से कहीं उन्हें न मारें।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में मुख्य रूप में देवजनों का वर्णन है और सेना का वर्णन गोण है। देवजन सेना के भिन्न-भिन्न विभागों के अध्यक्ष हैं। युद्ध में जो शत्रु पकड़ लिये जाते हैं उन के अपराधों के अनुसार का निश्चय तो "अघमार" अधिकारी करता है, और जो निश्चित किये दण्ड को क्रियात्मक रूप देता है वह "मृत्यु" संज्ञक अधिकारी है, "बभ्रुः" है। सैनिकों को भरण-पोषण अर्थात् खान-पान की सामग्री पहुंचाने वाला अधिकारी; तलवार द्वारा युद्ध का व्यवस्थापक है "शर्वः" अधिकारी "शॄ हिंसायाम्; क्र्यादिः"; अस्ता है "तामसास्त्र" को शत्रु पर फैंकने वाला अधिकारी, असु क्षेपणे; "नीलशिखण्ड" है सूर्य की नीली शिखा, ज्वालारूपा। सौर रश्मियों का देने वाला अधिकारी "नीलां शिखां ददातीति", सुर्य की नीली रश्मियां, शत्रु दल पर फैंकने से शत्रुदल जला दिया जाता है। सूर्य की शुक्ल रश्मि सात प्रकार की रश्मियों का समूहरूप होती है। ये सप्तविध रश्मियां वर्षा-ऋतु में इन्द्रधनुष् में सप्तविध, रश्मि पट्टियों में दृष्टि गोचर होती हैं। इसी लिये सूर्य को "सप्तरश्मिः" कहते हैं 'यः सप्तरश्मिः " (अथर्व० १०।३४।१३), तथा 'एकोऽश्वो वहति सप्तनामादित्यः, सप्तास्मै रश्मयो रसान् सं नामयन्ति" (निरुक्त ४।४।२७)। सप्त रश्मि का संक्षिप्तनाम है "नीलरोहित", यथा "नीललोहितेनामूनभ्यवतनोमि" (अथर्व० ८।८।२४)। सूर्य की सप्त रश्मियों में एक ओर लोहित रश्मि होती है, दूसरी ओर violet, और इन दोनों के मध्य में शेष ५ रश्मियां। तामसास्त्र यथा– असौ या सेना मरुतः परेषामस्मानभ्येत्योज सा स्पर्धमाना। तां विध्यत तमसापव्रतेन यथैषामन्यो अन्यं न जानात्"॥ (अथर्व० ३॥२।६) यह तामसास्त्र शत्रु सेना पर फैंका जाता है ताकि शत्रु सेना अन्धकाराविष्ट हो कर मिथ: हुनन करती रहे। स्वकीय सेना भी इसी अन्धकार में शत्रु सेना के साथ युद्ध कर रही है। अतः हमारे सेनाधिकारी भ्रमवश कहीं निज सैनिकों का भी वध न कर दें, इस लिये "अस्माकं परि वृजन्तु वीरान" द्वारा उन्हें सचेत किया गया है। मन्त्र में "मरुतः" हैं मारने में सिद्धहस्त सैनिक (यजु० १७।४०)]। [१. उत्त्थान' पारिभाषिक शब्द है। यथा "war, battle" (आप्टे)।]

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    विषय

    सेनाओं से रक्षा।

    भावार्थ

    (यमः) सब का नियन्ता, व्यवस्था में रखने वाला, (मृत्युः) सबको मारनेवाला, (अघमारः) दुष्टों को पाप अपराधों के कारण दण्ड देने वाला, (बभ्रुः) सबका पालक, या पीली वर्दी पहनने वाला, (शर्वः) हिंसा करने वाला, (अस्ता) बाणों का फेंकने वाला (नील-शिखण्डः) सिर पर नीला तुर्रा लगा कर चलने वाला ये सब (देव-जनाः) देव = राजा के भिन्न भिन्न प्रकार के अधिकारी पुरुष हैं। ये (सेनया) कप्तान सहित सेना बनाकर (उत्-तस्थिवांसः) दूसरे राष्ट्रों पर चढ़ाई करते हुए भी (अस्माकम्) हम प्रजाओं के (वीरान्) वीर पुरुषों को (परिवृञ्जन्तु) हानि से बचाये रक्खें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शंतातिर्ऋषिः। रुद्रो देवता। १-३ त्रिष्टुभः। तृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Energy, Action, Achievement

    Meaning

    Yama, cosmic controller and law giver, Death, the destroyer of sinners, the giver of pain, the giver of nourishment, the violent force, the archer, the giver of shelter and settlement, noble people of brilliance and

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    Subject

    Yama and Others (see verses)

    Translation

    The controller, the death, the slayer of sinners, the tormentor, the tawny-coloured, the tearer, the shooter, the blue-crested, and all the enlightened people, having risen up with invading army - may all of them leave our heroes unscathed.

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    Translation

    Let the physical force consisting of yama, the time; direly fatal death; shining troublesome sharva, fire; disease-spreading Nilshakhanda, the fire vomiting black flames uprising with their army of diseases, avoid our men and heroes.

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    Translation

    God is Just, the Banisher of sin, the Bringer of Death, the Chastiser of the wicked, the Nourisher of the virtuous, the Alleviator of misery, Adorable, and the Bestower of treasures and dwellings. May these persons desirous of victory, uprisen with their army avoid our heroes on every side.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(यमः) नियन्ता परमेश्वरः (मृत्युः) पापिनां प्राणत्याजयिता (अघमारः) पुसिं संज्ञायां घः प्रायेण। पा० ३।३।११८। इति मृङ् प्राणत्यागे−घ। पापेन मारयिता (निर्ऋथः) अवे भृञः। उ० २।३। इति निर्+ऋ हिसायाम्−क्थन्। निरन्तरपीडकः (बभ्रुः) कुर्भ्रश्च। उ० १।२२। इति भृञ् भरणे−कु, द्विर्भावश्च। भर्त्ता। पालयिता (शर्वः) अ० ४।२८।१। कष्टनाशकः (अस्ता) अस ग्रहणे−तृन्। ग्रहीता (नीलशिखण्डः) अ० २।२७।६। नीलानां निधीनां वा नीडानां निवासानां प्रापकः (देवजनाः) विजिगीषवः पुरुषाः (सेनया) स्वस्वजनसंघेन (उत्तस्थिवांसः) उत्पूर्वात् तिष्ठतेर्लिटः−क्वसुः। उत्कर्षेण स्थिताः (ते) प्रसिद्धाः (अस्माकम्) धार्मिकाणाम् (परि) सर्वतः (वृञ्जन्तु) वृजी वर्जने। वर्जयन्तु विघ्नात् (वीरान्) पराक्रमिणः पुरुषान् ॥

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