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अथर्ववेद के काण्ड - 7 के सूक्त 36 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 36/ मन्त्र 1
    ऋषिः - अथर्वा देवता - अक्षि छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - अञ्जन सूक्त
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    अ॒क्ष्यौ नौ॒ मधु॑संकाशे॒ अनी॑कं नौ स॒मञ्ज॑नम्। अ॒न्तः कृ॑णुष्व॒ मां हृ॒दि मन॒ इन्नौ॑ स॒हास॑ति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒क्ष्यौ᳡ । नौ॒ । मधु॑संकाशे॒ इति॒ मधु॑ऽसंकाशे । अनी॑कम् । नौ॒ । स॒म्ऽअञ्ज॑नम् । अ॒न्त: । कृ॒णु॒ष्व॒ । माम् । हृ॒दि । मन॑: । इत् । नौ॒ । स॒ह । अस॑ति ॥३७.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अक्ष्यौ नौ मधुसंकाशे अनीकं नौ समञ्जनम्। अन्तः कृणुष्व मां हृदि मन इन्नौ सहासति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अक्ष्यौ । नौ । मधुसंकाशे इति मधुऽसंकाशे । अनीकम् । नौ । सम्ऽअञ्जनम् । अन्त: । कृणुष्व । माम् । हृदि । मन: । इत् । नौ । सह । असति ॥३७.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 36; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    परस्पर मित्रता का उपदेश।

    पदार्थ

    (नौ) हम दोनों की (अक्ष्यौ) दोनों आँखें (मधुसंकाशे) ज्ञान की प्रकाश करनेवाली और (नौ) हम दोनों का (अनीकम्) मुख (समञ्जनम्) यथावत् विकाशवाला [होवे]। (माम्) मुझको (हृदि अन्तः) अपने हृदय के भीतर (कृणुष्व) कर ले, (नौ) हम दोनों का (मनः) मन (इत्) भी (सह) एकमेल (असति) होवे ॥१॥

    भावार्थ

    मनुष्य आपस में प्रीतियुक्त रह कर सदा धर्मयुक्त व्यवहार करके प्रसन्न रहें ॥१॥

    टिप्पणी

    १−(अक्ष्यौ) अ० १।—२७।१। अक्षिणी (नौ) आवयोः (मधुसङ्काशे) काश दीप्तौ-अच्। ज्ञानप्रकाशिके (अनीकम्) अनिहृषिभ्यां किच्च। उ० ४।१७। अन जीवने-ईकन्। मुखप्रदेशः (समञ्जनम्) सम्यग्व्यक्तिकरं विकाशकम् (अन्तः) मध्ये (कृणुष्व) कुरु (माम्) मित्रम् (हृदि) हृदये (मनः) चित्तम् (इत्) एव (नौ) आवयोः (सह) परस्परमिलितम् (असति) भूयात् ॥

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    विषय

    दाम्पत्य-प्रेम

    पदार्थ

    १. पत्नी पति को सम्बोधित करती हुई कामना करती है कि (नौ अक्ष्यौ) = हम दोनों की आँखे (मधुसंकाशे) = मधुसदृश हों। जैसे मधु मधुर व स्निग्ध है, इसी प्रकार हमारी आँखें परस्पर अनुरक्त, मधुर प्रेक्षणवाली तथा अत्यन्त स्निग्ध हों। (नौ) = हम दोनों का (अनीकम्) = मुखमण्डल (समञ्जनम्) = यथावत् विकासवाला, प्रसन्नता को प्रकट करनेवाला [Smiling] हो। २. पत्नी पति से कहती है कि (माम्) = मुझे (हृदि) = हृदय में (अन्तः कृणव) = अन्दर स्थान दे। मैं तेरी हृदयंगमा व प्रिया बनूं। (नौ) = हम दोनों का (मनः) = मन (इत्) = निश्चय से (सह असति) = समान–एक जैसा हो।

    भावार्थ

    पति-पत्नी परस्पर मधुर, अनुरक्त आँखों से एक-दूसरे को देखें, उनके चेहरों पर प्रसन्नता झलके। एक-दूसरे को वे अपने हृदय में स्थान दें, उन दोनों का मन साथ-साथ हो।

     

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    भाषार्थ

    (नौ) हम दोनों की (अक्ष्यौ) दोनों-दोनों आखें [मधुसंकाशे] मधु के सदृश [मधुर] हों, (नौ) हम दोनों के (अनीकम्) मुख (समञ्जनम्) सम्यक् कान्तिसम्पन्न हों। (माम्) मुझे (हृदि अन्तः) हृदय के भीतर (कृणुष्व) कर, (नौ) हम दोनों का (मनः इत्) मन भी (सह) परस्पर सहकारी (असति) हो।

    टिप्पणी

    [यह सूक्त विवाह संस्कार में विनियुक्त हुआ है। पति-पत्नी के जीवनों में मधुरता, प्रसन्नता तथा अनुराग दर्शाया है। समञ्जनम्= सम् (सम्यक्) + अञ्जू (व्यतिम्रक्षणकान्तिगतिषु; रुधादि)। इस द्वारा वर-वधू में पारस्परिक प्रसन्नता प्रकट की है। 'हृदि अन्तः' द्वारा वर और वधू दोनों एक दूसरे को सदा अपने-अपने हृदय के भीतर रखने का संकल्प करते हैं। इस द्वारा पारस्परिक अनुराग द्योतित किया है। असति=अस् (भुवि), लेट् लकार + अट् का आगम]।

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    विषय

    पति पत्नी की परस्पर प्रेम वृद्धि की साधना।

    भावार्थ

    वर वधू, पति पत्नी परस्पर प्रेम-व्यवहार बढ़ाने के लिए उक्त विचार सदा अपने चित्त में करें। हम पति और पत्नी हैं (नौ) हमारी (अक्ष्यो) आंखें (मधु-संकाशे) मधुर मधु के समान प्रेममय अमृत से सिची हों। (नौ) हमारा (सम् अञ्जनं) एक दूसरे के प्रति निःसंकोच व्यवहार और चित्त के भावों का स्पष्ट रूप में प्रकाश करना और परस्पर मिलना भी और (अनीकम्) सुखपूर्ण जीवन हो। हे प्रियतम ! और प्रियतमे ! (मां) मुझको तू (अन्तः हृदि) भीतर हृदय में (कृणुष्व) रख ले और (नौ) हम दौनों का (मनः इत्) मन भी (सह असति) सदा साथ रहे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। अक्षि देवता। अनुष्टुप् छन्दः। एकर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Union of Hearts

    Meaning

    Our eyes are honey sweet, alike in mutual expression, our complexions, creamy smooth, pray be you in my heart and keep me in yours, and let our minds be one in unanimity.

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    Subject

    Aksi - Manas

    Translation

    May the eyes of both of us be shining sweet. May our faces be attracting to each other. May you place me within your heart, May our minds remain united for ever.

    Comments / Notes

    MANTRA NO 7.37.1AS PER THE BOOK

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    Translation

    The glances of both of us, the wife and husband are sweet like honey, our faces are as smooth as smooth as ointment, let each of us make the place of each other in our heart and let our mind also be one and unanimous.

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    Translation

    Sweet like honey be the lovely glances of the husband and wife, may our faces look equally beautiful. Within thy bosom harbour me; may one spirit dwell in both of us.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १−(अक्ष्यौ) अ० १।—२७।१। अक्षिणी (नौ) आवयोः (मधुसङ्काशे) काश दीप्तौ-अच्। ज्ञानप्रकाशिके (अनीकम्) अनिहृषिभ्यां किच्च। उ० ४।१७। अन जीवने-ईकन्। मुखप्रदेशः (समञ्जनम्) सम्यग्व्यक्तिकरं विकाशकम् (अन्तः) मध्ये (कृणुष्व) कुरु (माम्) मित्रम् (हृदि) हृदये (मनः) चित्तम् (इत्) एव (नौ) आवयोः (सह) परस्परमिलितम् (असति) भूयात् ॥

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