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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 19

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 19/ मन्त्र 1
    सूक्त - शन्ताति देवता - चन्द्रमाः, देवजनः, मनुवंशी, समस्तप्राणिनः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - पावमान सूक्त

    पु॒नन्तु॑ मा देवज॒नाः पु॒नन्तु॒ मन॑वो धि॒या। पु॒नन्तु॒ विश्वा॑ भू॒तानि॒ पव॑मानः पुनातु मा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पु॒नन्तु॑ । मा॒ । दे॒व॒ऽज॒ना: । पु॒नन्तु॑ । मन॑व: । धि॒या । पु॒नन्तु॑ । विश्वा॑ । भू॒तानि॑ । पव॑मान: । पु॒ना॒तु॒ । मा॒ ॥१९.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पुनन्तु मा देवजनाः पुनन्तु मनवो धिया। पुनन्तु विश्वा भूतानि पवमानः पुनातु मा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पुनन्तु । मा । देवऽजना: । पुनन्तु । मनव: । धिया । पुनन्तु । विश्वा । भूतानि । पवमान: । पुनातु । मा ॥१९.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 19; मन्त्र » 1

    Bhajan -

    आज का वैदिक भजन 🙏 1114
    ओ३म् पु॒नन्तु॑ मा देवज॒नाः पु॒नन्तु॒ मन॑वो धि॒या।
    पु॒नन्तु॒ विश्वा॑ भू॒तानि॒ पव॑मानः पुनातु मा ॥
    अथर्ववेद  काण्ड 6, सूक्त 19, मन्त्र 1

    ओ३म् पु॒नन्तु॒ मां दे॑वज॒नाः पु॒नन्तु॒ वस॑वो धि॒या ।
    विश्वे॑ देवाः पुनी॒त मा॒ जात॑वेदः पुनी॒हि मा॑ ॥
    ऋग्वेद 9/67/27 पाठभेद 

    ढूँढते  हैं हम वे लोग 
    पाते हैं जिनसे बोध 
    खोज रहे हैं हम उनको 
    पाना है ज्ञान-ओज
    सानिध्य उनका हमसे 
    सार्थक कर दे 
    हे पवमान प्रभु ! धन्य हमें कर दे

    शरण देवों की करती है पावन
    बरसाती है जो ज्ञान का सावन
    देते दिखाई उन्हें ज्ञान के पिपासु
    करते अपात्रों का भी वह तर्पण 
    शुभ सत्यता की भावना से भर दे 
    हे पवमान प्रभु ! धन्य हमें कर दे

    देवगणों को क्या तुम जानते हो 
    दिव्य गुणों की क्या पहचानते हो 
    उनके अन्त:करण विनीत विशुद्ध हैं 
    ज्ञान कर्म से प्रमित प्रबुद्ध हैं 
    इनकी छाप का अमिट असर दे 
    हे पवमान प्रभु ! धन्य हमें कर दे

    देव है ये आध्यात्मिक दानी 
    ना कुछ लेते हैं, वो हैं निष्कामी 
    कर्मेन्द्रियाँ सब इनकी पवित्र हैं
    सब अपना मित्र मानते हैं 
    पदार्थ गुणों की झोली वो भरते
    हे पवमान प्रभु ! धन्य हमें कर दे
     
    श्रेयस-मार्ग में अग्रसर रहते 
    बुद्धि ज्ञान प्रभूत करते 
    कर्म आचरण मानवता के 
    आत्मसात कर प्रतिरूप करते 
    बुद्धि ज्ञान क्रतुओं में विचरते 
    हे पवमान प्रभु ! धन्य हमें कर दे

    प्राणियों को हम भी स्वसम देखें 
    दु:ख पीड़ा कष्टों को हर लें 
    ईर्ष्या-द्वेष-घृणा निन्दा-मद 
    दुर्व्यवहार दुरित ना सीचें
    छल छिद्र कपट से सदा दूर कर दे 
    हे पवमान प्रभु ! धन्य हमें कर दे

    हे प्रभु! श्रद्धा विनय के प्रार्थी 
    हर पल सङ्ग रहो - बन के साथी 
    ज्ञान विवेक से जागृत कर दे 
    अन्त:-बाह्य की शुद्धि कर दे 
    भाव अराति सर्वथा तू हर ले 
    हे पवमान प्रभु !! धन्य हमें कर दे

    ढूँढते  हैं हम वे लोग 
    पाते हैं जिनसे बोध 
    खोज रहे हैं हम उनको 
    पाना है ज्ञान-ओज
    सानिध्य उनका हमसे 
    सार्थक कर दे 
    हे पवमान प्रभु ! धन्य हमें कर दे
    धन्य हमें कर दे
    धन्य हमें कर दे

    रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई
    रचना दिनाँक :-    ३०.८.२०२१    २२.१० सायं
    राग :- खमाज
    गायन समय रात्रि का दूसरा प्रहर, ताल कहरवा 8 मात्रा
                          
    शीर्षक :- देव मुझे पवित्र करें  🎧 687 वां भजन
    *तर्ज :- *
    0119-719 

    ओज = प्रकाश, तेज, बल
    सानिध्य = निकटता
    पिपासु = प्यासा
    तर्पण = तृप्त करना
    पवमान = परम पवित्र
    प्रमित = प्रमाणित, सिद्ध किया हुआ
    प्रबुद्ध = जागा हुआ ,ज्ञानी, पंडित
     प्रभूत = अत्यधिक,पूर्ण,पक्व
    श्रेयस = शुभ, सुंदर भाग्यशाली
    प्रतिरूप = समान रूप वाला, अनुकूल
    क्रतु = मनोरथ, संकल्प
    मद = घमंड
    दुरित = बुरे काम, दुष्कृत
    अराति = स्वार्थ, अदान, प्रेम रहित
     

    Vyakhya -

    प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का सन्देश :-- 👇👇

    देव मुझे पवित्र करें
    हे पावन परमेश्वर! मेरी हार्दिक प्रार्थना है कि इस जगत में जो देव हैं, जो दिव्यजन हैं, जो दिव्य गुण- कर्म -स्वभाव से सम्पन्न जन हैं, जो दानी हैं, जो ज्ञानी हैं, जो धर्मात्मा हैं, जो महात्मा है, जो पुण्य- आत्मा हैं, जो पवित्र आत्मा हैं, वह मुझे पवित्र करें।
    हे जगदीश्वर! मैं ऐसा सुपात्र बनूं के उन देवों का स्नेह सहानुभूति, शुभचिंतन और आशीर्वाद मुझे सहज ही मिलता रहे, ताकि मैं पवित्र होता रहूं।
    उनका आदेश, उनका संदेश, उनका उपदेश भी मुझे सतत् मिलता रहे, ताकि मैं पवित्र होता रहूं। इतना ही नहीं उनका दिव्य आदर्श-जीवन भी सदा मेरे सम्मुख बना रहे,जिससे मुझे ज्ञात होता रहे कि वह कब उठते हैं, कैसे उठते हैं, कब सोते हैं, कैसे सोते हैं, कब खाते हैं, कैसे खाते हैं, क्या खाते हैं, कितना खाते हैं, कब बोलते हैं, कैसे बोलते हैं, क्या बोलते हैं, कितना बोलते हैं, कब हंसते हैं, कैसे हंसते हैं, कब रोते हैं, कैसे रोते हैं, कितना रोते हैं, किस को स्मरण करते हैं, कब स्मरण करते हैं, कितना स्मरण करते हैं, किसको बोलते हैं, कैसे बोलते हैं, कितना बोलते हैं, क्यों बोलते हैं, कब चलते हैं, कहां चलते हैं, क्यों चलते हैं, इत्यादि इत्यादि ताकि उन्हीं के अनुसार मैं भी आहार-व्यवहार करके पवित्र हो सकूं।
    हे परमेश्वर! जो मननशील हैं, जो विचारशील हैं, जो विवेकशील हैं, जो बुद्धिमान हैं, जो अपना प्रत्येक कार्य चाहे वह खाने का हो, लिखने का हो, पढ़ने का हो, देने का हो, लेने का हो, कहीं जाने का हो, बोलने का हो, मौन रहने का हो, कहीं ठहरने का हो या विदा होने का हो, इत्यादि सब सोच विचार कर करते हैं। तभी तो ऐसे बुद्धिमान विचारशील जनों के सब कार्य बड़े पवित्र होते हैं, सुखदाई होते हैं, शान्तिप्रद होते हैं, आनन्दप्रद होते हैं।
    हे जगदीश! हमें ऐसा बनाओ कि सहज स्वभाव से कृपालु होकर यह मननशील बुद्धिमान जन मुझे भी बुद्धि और कर्म से पवित्र करें। अर्थात् मुझे अपने जीवन के अनुरूप बुद्धिमान बनाएं ताकि मेरे हाथों से भी फिर सदा पवित्र ही कर्म होते रहें, उत्तम ही कर्म होते रहें।
    हे प्रभु! समस्त प्राणी मुझे पवित्र करें। मैं इन सब प्राणियों से जिस प्रकार से स्नेह सहानुभूति सहायता और सम्मान की कामना करता हूं,वैसा ही इन्हें सहानुभूति सहायता और सम्मान में निस्वार्थ भाव से इन सब को देता रहा हूं ताकि इस प्रकार मैं सदा पवित्र बना रहे सकूं।
      हे पतित पावन! हे पतितोद्धारक!        हे  लोक-परलोक के संवारक! हे परम पवित्र प्रभु! मैंने सुना है और मेरे हृदय में भी अनुभव किया है कि तू स्वयं पवित्र है, सब प्रकार से शुद्ध पवित्र है, इसलिए जो तेरी शरण में आता है, जो तेरे द्वार पर बड़ी आशा और विश्वास से अलग जगह देता, फिर वह कितना भी पवित्र क्यों ना हो, कितना भी अधम क्यों ना हो, कितना भी अपवित्र क्यों ना हो, तू उसको उठा ही देता है, तू उसका उद्धार कर ही देता है, तू उसको ऊंचा बना ही देता है, तू उसे पवित्र कर ही देता है।
    हे कण-कण में बसने वाले विभु! मैं बड़ी श्रद्धा और विश्वास के साथ बड़ी आशा और निष्ठा के साथ अन्त में तेरे द्वार पर आया हूं, ताकि मैं सब प्रकार से शुद्ध पवित्र बन सकूं। निर्मल निस्वार्थ बन सकूं। नाथ! मुझे निराश ना करना, तेरे दर से भी मैं निराश हो गया तो तब मैं कहां का न रहूंगा।
    अतः तू कृपा करके सब प्रकार से मुझे पवित्र बनाकर अपने अनुपम प्यार और आशीर्वाद का पात्र बना। यही मेरी हार्दिक प्रार्थना है। हे प्रभु मुझे धन्य कर दे                🕉️👏🧎‍♂️ईश भक्ति भजन                           भगवान् ग्रुप द्वारा🎧🙏                   वैदिक श्रोताओं को हार्दिक शुभकामनाएं❗

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