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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 26

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 26/ मन्त्र 1
    सूक्त - शुनःशेपः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-२६

    योगे॑योगे त॒वस्त॑रं॒ वाजे॑वाजे हवामहे। सखा॑य॒ इन्द्र॑मू॒तये॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    योगे॑ऽयोगे । त॒व:ऽत॑रम् । वाजे॑ऽवाजे । ह॒वा॒म॒हे॒ ॥ सखा॑य: । इन्द्र॑म् । ऊ॒तये॑ ॥२६.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    योगेयोगे तवस्तरं वाजेवाजे हवामहे। सखाय इन्द्रमूतये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    योगेऽयोगे । तव:ऽतरम् । वाजेऽवाजे । हवामहे ॥ सखाय: । इन्द्रम् । ऊतये ॥२६.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 26; मन्त्र » 1

    भाषार्थ -
    (সখায়ঃ) হে যোগাভ্যাসের সাথীগণ! (ঊতয়ে) আত্মরক্ষার্থে (যোগে-যোগে) প্রত্যেককালের যোগাভ্যাসে, বা যোগ-এর প্রত্যেক ভূমিতে, তথা (বাজে-বাজে) প্রত্যেক দেবাসুর-সংগ্রামে, (তবস্তরম্) প্রগতি তথা বৃদ্ধি প্রদানকারী (ইন্দ্রম্) পরমেশ্বরের (হবামহে) আমরা আহ্বান করি।

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