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अथर्ववेद > काण्ड 16 > सूक्त 2

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  • अथर्ववेद - काण्ड 16/ सूक्त 2/ मन्त्र 4
    सूक्त - वाक् देवता - त्रिपदा प्रतिष्ठार्ची छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त

    सु॒श्रुतौ॒कर्णौ॑ भद्र॒श्रुतौ॒ कर्णौ॑ भ॒द्रं श्लोकं॑ श्रूयासम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु॒ऽश्रुतौ॑ । कर्णौ॑ । भ॒द्र॒ऽश्रुतौ॑ । कर्णौ॑ । भ॒द्रम् । श्लोक॑म् । श्रू॒या॒स॒म् ॥२.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सुश्रुतौकर्णौ भद्रश्रुतौ कर्णौ भद्रं श्लोकं श्रूयासम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सुऽश्रुतौ । कर्णौ । भद्रऽश्रुतौ । कर्णौ । भद्रम् । श्लोकम् । श्रूयासम् ॥२.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 2; मन्त्र » 4

    पदार्थ -
    [मेरे] (कर्णौ) दोनोंकान (सुश्रुतौ) शीघ्र सुननेवाले, (कर्णौ) दोनों कान (भद्रश्रुतौ) मङ्गलसुननेवाले [होवें], (भद्रम्) मङ्गलमय (श्लोकम्) यश (श्रूयासम्) मैं सुना करूँ॥४॥

    भावार्थ - मनुष्य प्रयत्न करकेअभ्यास करें कि वे कान आदि इन्द्रियों को सचेत रख कर श्रेष्ठ कर्मों के करने मेंशीघ्रता करते रहें ॥४॥

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