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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 13

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 13/ मन्त्र 3
    सूक्त - कुत्सः देवता - अग्निः छन्दः - जगती सूक्तम् - सूक्त-१३

    इ॒मं स्तोम॒मर्ह॑ते जा॒तवे॑दसे॒ रथ॑मिव॒ सं म॑हेमा मनी॒षया॑। भ॒द्रा हि नः॒ प्रम॑तिरस्य सं॒सद्यग्ने॑ स॒ख्ये मा रि॑षामा व॒यं तव॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒मम् । स्तोम॑म् । अर्ह॑ते । जा॒तऽवे॑दसे । रथ॑म्ऽइव । सम् । म॒हे॒म॒ । म॒नी॒षया॑ ॥ भ॒द्रा । ह‍ि । न॒: । प्रऽम॑ति: । अ॒स्य॒ । स॒म्ऽसदि॑ । अग्ने॑ । स॒ख्ये । मा । रि॒षा॒म॒ । व॒यम् । तव॑ ॥१३.२३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इमं स्तोममर्हते जातवेदसे रथमिव सं महेमा मनीषया। भद्रा हि नः प्रमतिरस्य संसद्यग्ने सख्ये मा रिषामा वयं तव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इमम् । स्तोमम् । अर्हते । जातऽवेदसे । रथम्ऽइव । सम् । महेम । मनीषया ॥ भद्रा । ह‍ि । न: । प्रऽमति: । अस्य । सम्ऽसदि । अग्ने । सख्ये । मा । रिषाम । वयम् । तव ॥१३.२३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 13; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    (अर्हते) योग्य, (जातवेदसे) उत्पन्न पदार्थों के जाननेहारे [पुरुष] के लिये (इमम्) इस (स्तोमम्) गुणकीर्तन को (रथम् इव) रथ के समान (मनीषया) बुद्धि से (सम्) यथावत् (महेम) हम बढ़ावें। (हि) क्योंकि (अस्य) इस [विद्वान्] की (प्रमतिः) उत्तम समझ (संसदि) सभा के बीच (नः) हमारे लिये (भद्रा) कल्याण करनेवाली है। (अग्ने) हे अग्नि ! [तेजस्वी विद्वान्] (ते) तेरी (सख्ये) मित्रता में (वयम्) हम (मा रिषाम) न दुखी होवें ॥३॥

    भावार्थ - जैसे उत्तम बने हुए यान विमान आदि की चाल और योग्यता से उपकार लेकर मनुष्य गुण गाते हैं, वैसे ही लोग विज्ञान के आविष्कार करनेवाले विद्वान् के गुणों से उपकार लेकर सुख प्राप्त करें ॥३॥

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