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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 18

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 18/ मन्त्र 5
    सूक्त - वसिष्ठः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-१८

    मा नो॑ नि॒दे च॒ वक्त॑वे॒ऽर्यो र॑न्धी॒ररा॑व्णे। त्वे अपि॒ क्रतु॒र्मम॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मा । न॒: । नि॒दे । च॒ । वक्त॑वे । अ॒र्य: । र॒न्धी॒: । अरा॑व्णे ॥ त्वे इति॑ । अपि॑ । क्रतु॑: । मम॑ ॥१८.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मा नो निदे च वक्तवेऽर्यो रन्धीरराव्णे। त्वे अपि क्रतुर्मम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मा । न: । निदे । च । वक्तवे । अर्य: । रन्धी: । अराव्णे ॥ त्वे इति । अपि । क्रतु: । मम ॥१८.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 18; मन्त्र » 5

    पदार्थ -
    [हे राजन् !] (अर्यः) स्वामी तू (नः) हमको (निदे) निन्दक के, (च) और (वक्तवे) बकवादी (अराव्णे) अदानी पुरुष के (मा रन्धीः) वश में मत कर। (त्वे) तुझमें (अपि) ही (मम) मेरी (क्रतुः) बुद्धि है ॥॥

    भावार्थ - राजा प्रजा में श्रेष्ठ कर्मों का प्रचार करे और गुणों में दोष लगानेवाले निन्दकों को हटावे ॥॥

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