Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 21

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 21/ मन्त्र 9
    सूक्त - सव्यः देवता - इन्द्रः छन्दः - जगती सूक्तम् - सूक्त-२१

    त्वमे॒तां ज॑न॒राज्ञो॒ द्विर्दशा॑ब॒न्धुना॑ सु॒श्रव॑सोपज॒ग्मुषः॑। ष॒ष्टिं स॒हस्रा॑ नव॒तिं नव॑ श्रु॒तो नि च॒क्रेण॒ रथ्या॑ दु॒ष्पदा॑वृणक् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम् । ए॒तान् । ज॒न॒ऽराज्ञ॑: । द्वि: । दश॑ । अ॒ब॒न्धुना॑ । सु॒अव॑सा । उ॒प॒अज॒ग्मुष॑: ॥ ष॒ष्टिम् । स॒हस्रा॑ । न॒व॒तिम् । नव॑ । श्रु॒त: । नि । च॒क्रेण॑ । रथ्या॑ । दु॒:ऽपदा॑ । अ॒वृ॒ण॒क् ॥२१.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वमेतां जनराज्ञो द्विर्दशाबन्धुना सुश्रवसोपजग्मुषः। षष्टिं सहस्रा नवतिं नव श्रुतो नि चक्रेण रथ्या दुष्पदावृणक् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम् । एतान् । जनऽराज्ञ: । द्वि: । दश । अबन्धुना । सुअवसा । उपअजग्मुष: ॥ षष्टिम् । सहस्रा । नवतिम् । नव । श्रुत: । नि । चक्रेण । रथ्या । दु:ऽपदा । अवृणक् ॥२१.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 21; मन्त्र » 9

    पदार्थ -
    [हे राजन् !] (अबन्धुना) बन्धुहीन और (सुश्रवसा) बड़ी कीर्तिवाले पुरुष के साथ, (श्रुतः) विख्यात (त्वम्) तूने (एतान्) इन (द्विः दश) दो बार दश [बीस] (जनराज्ञः) नीच लोगों के राजाओं को और (षष्टिम् सहस्रा) साठ सहस्र (नव नवतिम्) नौ नब्बे [९+९०=९९ अथवा ९*९०=८१० अर्थात् ६००,९९ अथवा ६०,८१०] (उपजग्मुषः) [उनके] साथियों को (दुष्पदा) न पकड़ने योग्य [अति शीघ्रगामी] (रथ्या) रथ के पहिये के समान (चक्रेण) चक्र [हथियार विशेष] से (नि अवृणक्) उलट-पलट कर दिया है ॥९॥

    भावार्थ - प्रतापी बलवान् राजा शरणागत अनाथों और धार्मिक प्रसिद्ध पुरुषों की रक्षा करके बीसियों प्रधान शत्रुओं और उनकी सहस्रों सेनाओं को अपने चक्र आदि हथियारों से उखाड़ दे, जैसे वेग चलनेवाले रथ के पहियों से भूमि उखड़ जाती है ॥९॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top