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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 69

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 69/ मन्त्र 6
    सूक्त - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-६९

    त्वां स्तोमा॑ अवीवृध॒न्त्वामु॒क्था श॑तक्रतो। त्वां व॑र्धन्तु नो॒ गिरः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वाम् । स्तोमा॑: । अ॒वी॒वृ॒ध॒न् । त्वाम् । उ॒क्था । श॒त॒क्र॒तो॒ ‍इति॑ शतऽक्रतो ॥ त्वाम् । व॒र्ध॒न्तु॒ । न॒: । गिर॑: ॥६९.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वां स्तोमा अवीवृधन्त्वामुक्था शतक्रतो। त्वां वर्धन्तु नो गिरः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वाम् । स्तोमा: । अवीवृधन् । त्वाम् । उक्था । शतक्रतो ‍इति शतऽक्रतो ॥ त्वाम् । वर्धन्तु । न: । गिर: ॥६९.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 69; मन्त्र » 6

    पदार्थ -
    (शतक्रतो) हे सैकड़ों व्यवहारों में बुद्धिवाले मनुष्य (त्वाम्) तुझको (स्तोमाः) बड़ाई योग्य गुणों ने और (त्वाम्) तुझको (उक्था) कहने योग्य कर्मों ने (अवीवृधन्) बढ़ाया है। (त्वाम्) तुझको (नः) हमारी (गिरः) स्ततियाँ (वर्धन्तु) बढ़ावें ॥६॥

    भावार्थ - श्रेष्ठकर्मी मनुष्य सदा विद्वानों के सत्सङ्ग से उपकार शक्ति बढ़ाते रहें ॥६॥

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