अथर्ववेद - काण्ड 5/ सूक्त 16/ मन्त्र 1
सूक्त - विश्वामित्रः
देवता - एकवृषः
छन्दः - साम्न्युष्णिक्
सूक्तम् - वृषरोगनाशमन सूक्त
यद्ये॑कवृ॒षोऽसि॑ सृ॒जार॒सोऽसि॑ ॥
स्वर सहित पद पाठयदि॑ । ए॒क॒ऽवृ॒ष: । असि॑ । सृ॒ज । अ॒र॒स: । अ॒सि॒ ॥१६.१॥
स्वर रहित मन्त्र
यद्येकवृषोऽसि सृजारसोऽसि ॥
स्वर रहित पद पाठयदि । एकऽवृष: । असि । सृज । अरस: । असि ॥१६.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 5; सूक्त » 16; मन्त्र » 1
विषय - पुरुषार्थ का उपदेश।
पदार्थ -
(यदि) जो तू (एकवृषः) एक [परमेश्वर] के साथ ऐश्वर्यवान् (असि) है, [सुख] (सृज) उत्पन्न कर, [नहीं तो] तू (अरसः) निर्बल (असि) है ॥१॥
भावार्थ - एक परमात्मा के ज्ञान से मनुष्य संसार का उपकार कर सकता है, ईश्वरज्ञान के विना मनुष्यजन्म व्यर्थ है ॥१॥
टिप्पणी -
१−(यदि) पक्षान्तरे (एकवृषः) वृषु प्रजननैश्ययोः−क। एकेन परमेश्वरेण सहैश्वर्य्यवान् (असि) (सृज) उत्पादय सुखम् [नोचेत्] इति शेषः (अरसः) असमर्थः (असि) ॥