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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 131

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 131/ मन्त्र 2
    सूक्त - अथर्वा देवता - स्मरः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - स्मर सूक्त

    अनु॑मतेऽन्वि॒दं म॑न्य॒स्वाकू॑ते॒ समि॒दं नमः॑। देवाः॒ प्र हि॑णुत स्म॒रम॒सौ मामनु॑ शोचतु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अनु॑ऽमते । अनु॑ । इ॒दम् । म॒न्य॒स्व॒ । आऽकू॑ते । सम् । इ॒दम् । नम॑: । देवा॑: । प्र । हि॒णु॒त॒ । स्म॒रम् । अ॒सौ । माम् । अनु॑ । शो॒च॒तु॒ ॥१३१.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अनुमतेऽन्विदं मन्यस्वाकूते समिदं नमः। देवाः प्र हिणुत स्मरमसौ मामनु शोचतु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अनुऽमते । अनु । इदम् । मन्यस्व । आऽकूते । सम् । इदम् । नम: । देवा: । प्र । हिणुत । स्मरम् । असौ । माम् । अनु । शोचतु ॥१३१.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 131; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    (अनुमते) हे अनुकूल बुद्धि ! तू (इदम्) इसको (अनु मन्यस्व) प्रसन्नता से स्वीकार कर, (आकूते) हे उत्साह शक्ति ! (इदम्) यह (नमः) अन्न (सम्) ठीक रीति से [हमारे लिये हो]। (देवाः) हे विद्वानों ! (स्मरम्) स्मरण सामर्थ्य को (प्र) अच्छे प्रकार (हिणुत) बढ़ाओ, (असौ) वह [स्मरण सामर्थ्य] (माम् अनु) मुझमें व्यापकर (शोचतु) शुद्ध रहे ॥२॥

    भावार्थ - मनुष्य बुद्धि और उत्साह के साथ अपने सब काम ठीक-ठीक सिद्ध करें ॥२॥

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