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अथर्ववेद > काण्ड 6 > सूक्त 37

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  • अथर्ववेद - काण्ड 6/ सूक्त 37/ मन्त्र 3
    सूक्त - अथर्वा देवता - चन्द्रमाः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शापनाशन सूक्त

    यो नः॒ शपा॒दश॑पतः॒ शप॑तो॒ यश्च॑ नः॒ शपा॑त्। शुने॒ पेष्ट्र॑मि॒वाव॑क्षामं॒ तं प्रत्य॑स्यामि मृ॒त्यवे॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । न॒: । शपा॑त् । अश॑पत: । शप॑त: ।य: । च॒ । न॒: । शपा॑त् । शुने॑ । पेष्ट्र॑म्ऽइव । अव॑ऽक्षामम् । तम् । प्रति॑ । अ॒स्या॒मि॒ । मृ॒त्यवे॑ ॥३७.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो नः शपादशपतः शपतो यश्च नः शपात्। शुने पेष्ट्रमिवावक्षामं तं प्रत्यस्यामि मृत्यवे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । न: । शपात् । अशपत: । शपत: ।य: । च । न: । शपात् । शुने । पेष्ट्रम्ऽइव । अवऽक्षामम् । तम् । प्रति । अस्यामि । मृत्यवे ॥३७.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 37; मन्त्र » 3

    पदार्थ -
    (यः) जो (अशपतः) न शाप देनेवाले (नः) हम लोगों को (शपात्) शाप देवे, (च) और (यः) जो (शपतः) शाप देनेवाले (नः) हम लोगों को (शपात्) शाप देवे। (अवक्षामम् तम्) उस निर्बल को (मृत्यवे) मृत्यु के सामने (प्रति अस्यामि) मैं फैंके देता हूँ (इव) जैसे (पेष्ट्रम्) रोटी का टुकड़ा (शुने) कुत्ते के सामने ॥३॥

    भावार्थ - जो अधर्मी धर्म्मात्माओं में दोष लगावें राजा उसको यथोचित दण्ड देवे ॥३॥

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