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अथर्ववेद > काण्ड 7 > सूक्त 49

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  • अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 49/ मन्त्र 1
    सूक्त - अथर्वा देवता - देवपत्नी छन्दः - आर्षी जगती सूक्तम् - देवपत्नी सूक्त

    दे॒वानां॒ पत्नी॑रुश॒तीर॑वन्तु नः॒ प्राव॑न्तु नस्तु॒जये॒ वाज॑सातये। याः पार्थि॑वासो॒ या अ॒पामपि॑ व्र॒ते ता नो॑ देवीः सु॒हवाः॒ शर्म॑ यच्छन्तु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒वाना॑म् । पत्नी॑: । उ॒श॒ती: । अ॒व॒न्तु॒ । न॒: । प्र । अ॒व॒न्तु॒ । न॒: । तु॒जये॑ । वाज॑ऽसातये । या: । पार्थि॑वास: । या: । अ॒पाम् । अपि॑ । व्र॒ते । ता: । न॒: । दे॒वी॒: । सु॒ऽहवा॑: । शर्म॑ । य॒च्छ॒न्तु॒ ॥५१.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवानां पत्नीरुशतीरवन्तु नः प्रावन्तु नस्तुजये वाजसातये। याः पार्थिवासो या अपामपि व्रते ता नो देवीः सुहवाः शर्म यच्छन्तु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    देवानाम् । पत्नी: । उशती: । अवन्तु । न: । प्र । अवन्तु । न: । तुजये । वाजऽसातये । या: । पार्थिवास: । या: । अपाम् । अपि । व्रते । ता: । न: । देवी: । सुऽहवा: । शर्म । यच्छन्तु ॥५१.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 49; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (याः) जो (उशतीः) [उपकार की] इच्छा करती हुई (देवानाम्) विद्वानों वा राजाओं की (पत्नीः) पत्नियाँ (नः) हमें (अवन्तु) तृप्त करें और (तुजये) बल वा स्थान के लिये और (वाजसातये) अन्न देनेवाले संग्राम [जीतने] के लिये (नः) हमारी (प्र) अच्छे प्रकार (अवन्तु) रक्षा करें। और (अपि) भी (याः) जो (पार्थिवासः) और जो पृथिवी की रानियाँ (अपाम्) जलों के (व्रते) स्वभाव में [उपकारवाली] हैं, (ताः) वे सब (सुहवाः) सुन्दर बुलावे योग्य (देवीः) देवियाँ (नः) हमें (शर्म) घर वा सुख (यच्छन्तु) देवें ॥१॥

    भावार्थ - विद्वान् और राजा लोगों के समान उनकी स्त्रियाँ भी उपकार करके प्रजा पालन करें ॥१॥ मन्त्र १, २ कुछ भेद से ऋग्वेद में है−५।४६।७, ८; और निरुक्त में भी व्याख्यात हैं-१२।४५, ४६ ॥

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