Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 7 > सूक्त 89

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 89/ मन्त्र 4
    सूक्त - सिन्धुद्वीपः देवता - अग्निः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दिव्यआपः सूक्त

    एधो॑ऽस्येधिषी॒य स॒मिद॑सि॒ समे॑धिषीय। तेजो॑ऽसि॒ तेजो॒ मयि॑ धेहि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    एध॑: । अ॒सि॒ । ए॒धि॒षी॒य । स॒म्ऽइत् । अ॒सि॒ । सम् । ए॒धि॒षी॒य॒ । तेज॑: । अ॒सि॒ । तेज॑: । मयि॑ । धे॒हि॒ ॥९४.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एधोऽस्येधिषीय समिदसि समेधिषीय। तेजोऽसि तेजो मयि धेहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एध: । असि । एधिषीय । सम्ऽइत् । असि । सम् । एधिषीय । तेज: । असि । तेज: । मयि । धेहि ॥९४.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 89; मन्त्र » 4

    पदार्थ -
    [हे विद्वन् !] तू (एधः) बढ़ा हुआ (असि) है, (एधिषीय) मैं बढ़ूँ, (समित्) तू प्रकाशमान (असि) है, मैं (सम्) ठीक-ठीक (एधिषीय) प्रकाशमान होऊँ। (तेजः असि) तू तेज है, (तेजः) तेज को (मयि) मुझ में (धेहि) धारण कर ॥४॥

    भावार्थ - मनुष्य विद्यावृद्ध, तपोवृद्ध विद्वानों से सुशिक्षा पाकर उन्नति करते हुए तेजस्वी होवें ॥४॥ यह मन्त्र कुछ भेद से यजुर्वेद में है−२०।˜२३ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top