अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 10/ मन्त्र 3
गृ॑हमे॒धी गृ॒हप॑तिर्भवति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
स्वर सहित पद पाठगृ॒ह॒ऽमे॒धी । गृ॒हऽप॑ति: । भ॒व॒ति॒ । य: । ए॒वम् । वेद॑॥१०.३॥
स्वर रहित मन्त्र
गृहमेधी गृहपतिर्भवति य एवं वेद ॥
स्वर रहित पद पाठगृहऽमेधी । गृहऽपति: । भवति । य: । एवम् । वेद॥१०.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 10;
पर्यायः » 1;
मन्त्र » 3
विषय - ब्रह्म विद्या का उपदेश।
पदार्थ -
वह [पुरुष] (गृहमेधी) घर के काम समझनेवाला (गृहपतिः) गृहपति (भवति) होता है, (यः) जो (एवम्) ऐसा (वेद) जानता है ॥३॥
भावार्थ - मन्त्र १ और २ में वर्णित विराट् की महिमा जान कर मनुष्य संसार के कामों में चतुर होता है ॥३॥
टिप्पणी -
३−(गृहमेधी) सुप्यजातौ०। पा० ३।२।७८। गृह+मेधृ वधमेधासंगमेषु-णिनि। गृहं गृहकार्यं मेधति जानाति यः स (गृहपतिः) गृहस्वामी ॥