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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 79 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 79/ मन्त्र 3
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - उषाः छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अभू॑दु॒षा इन्द्र॑तमा म॒घोन्यजी॑जनत्सुवि॒ताय॒ श्रवां॑सि । वि दि॒वो दे॒वी दु॑हि॒ता द॑धा॒त्यङ्गि॑रस्तमा सु॒कृते॒ वसू॑नि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अभू॑त् । उ॒षाः । इन्द्र॑ऽतमा । म॒घोनी॑ । अजी॑जनत् । सु॒वि॒ताय॑ । श्रवां॑सि । वि । दि॒वः । दे॒वी । दु॒हि॒ता । द॒धा॒ति॒ । अङ्गि॑रःऽतमा । सु॒ऽकृते॑ । वसू॑नि ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभूदुषा इन्द्रतमा मघोन्यजीजनत्सुविताय श्रवांसि । वि दिवो देवी दुहिता दधात्यङ्गिरस्तमा सुकृते वसूनि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अभूत् । उषाः । इन्द्रऽतमा । मघोनी । अजीजनत् । सुविताय । श्रवांसि । वि । दिवः । देवी । दुहिता । दधाति । अङ्गिरःऽतमा । सुऽकृते । वसूनि ॥ ७.७९.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 79; मन्त्र » 3
    अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 26; मन्त्र » 3
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथोक्तज्ञानप्राप्त्यर्थं परमात्मा प्रार्थ्यते।

    पदार्थः

    (इन्द्रतमा) भो ज्ञानस्वरूप परमात्मन् ! त्वदीयं (वि) विस्तृतं ज्ञानं (सुविताय) नः कल्याणाय (उषाः अभूत्) प्रकाशितं भवेत् (मघोनी) हे अखिलैश्वर्ययुक्त भवान् ! त्वं (श्रवांसि) स्वज्ञानशक्तिं (अजीजनत्) प्रकाशय, हे ज्योतिःस्वरूप ! (दिवः देवी) द्युलोकस्य देवी (दुहिता) तव दुहितृरूपा या दिव्यशक्तिः (अङ्गिरः तमा) अत्यन्तगमनशीला तमोहन्त्री चास्ति, सा (सुकृते) अस्मत्पुण्यकर्मणे (वसूनि दधाति) धनानि धारयतु ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब उस दिव्यज्ञान की प्राप्ति के लिये परमात्मा से प्रार्थना करते हैं।

    पदार्थ

    (इन्द्रतमा) हे ज्ञानस्वरूप परमात्मन् ! आपका (वि) विस्तृत ज्ञान (सुविताय) हमारे कल्याणार्थ (उषाः अभूत्) प्रकाशित हो, (मघोनी) हे सर्वैश्वर्य्यसम्पन्न भगवन् ! आप (श्रवांसि) अपनी ज्ञानशक्ति को (अजीजनत्) प्रकाशित करें, हे ज्योतिःस्वरूप ! (दिवः देवी) द्युलोक की देवी (दुहिता) तुम्हारी दुहिताख्य दिव्यशक्ति जो (अङ्गिरः तमा) अत्यन्त गमनशील तमनाशक है, वह (सुकृते) हमारे पुण्यों के लिये (वसूनि दधाति) धनों को धारण करावे ॥३॥

    भावार्थ

    हे सर्वशक्तिसम्पन्न परमात्मन् ! आपकी दुहितारूप विद्युदादि शक्तियें हमारे लिये कल्याणकारी होकर हमें अनन्त प्रकाश का धन धारण करावें और आपका ज्ञान हमारे हृदय को प्रकाशित करे ॥ इस मन्त्र में परमात्मरूप शक्ति को “दुहिता” इस अभिप्राय से कथन किया गया है कि “दुहिता दुर्हिता” इस वैदिकोक्ति के समान परमात्मा की विद्युदादि दिव्यशक्तियें दूर देशों में जाकर हित उत्पन्न करती हैं और जो दूर देशों में जाकर हित उत्पन्न करे, उसको दुहिता कहते हैं, इसलिये “दुहिता” शब्द से यहाँ विद्युदादि शक्तियों का ग्रहण है। जहाँ दुहिता शब्द का दिवः शब्द के साथ सम्बन्ध होता है, वहाँ यह अर्थ होते हैं कि जो द्युलोकादि दूर देशों में जाकर हित उत्पन्न करे, उसका नाम ‘दिवो दुहिता’ है। यहाँ दुहिता शब्द के अर्थ शक्ति के हैं, पुत्री के नहीं ॥३॥

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    विषय

    पत्नी घर की रानी ।

    भावार्थ

    यदि (उषा) उषा के समान कान्तिमती कन्या ( इन्द्र-तमा) अति अधिक ऐश्वर्यवती, रानी के समान सम्पन्न और ( मधोनी ) उत्तम घनैश्वर्यं से युक्त ( अभूत् ) हो तो वह ( सुविताय ) और भी अधिक ऐश्वर्य प्राप्ति करने वा ( सुविताय ) जगत् का उत्तम कल्याण करने के लिये ही ( श्रवांसि ) नाना अन्न, यशों और धनों को ( अजीजनत् ) और भी उत्पन्न करे । वह ( दिवः दुहिता ) तेजस्वी सूर्य की पुत्रीवत् प्रभा के समान उज्ज्वल कान्तियुक्त ( दिवः दुहिता ) कामनावान् पति के मनोरथों को पूर्ण करने वाली वा ( दिवः ) व्यवहारों, व्यापारादि तथा ज्ञान विज्ञानों का दोहन करने वाली, वार्त्ताचतुर वा ज्ञानवती स्त्री (अंगिरस्तमा) अति विदुषी होकर भी ( सुकृते ) शुभ कर्म, पुण्यादि की वृद्धि के लिये ही ( वसूनि ) समस्त नाना ऐश्वर्यों को ( दधाति ) धारण करे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः॥ उषा देवता॥ छन्दः—१, ४ निचृत् त्रिष्टुप्। २, ३ विराट् त्रिष्टुप् । ५ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप्॥ पञ्चर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    विदुषी वधू

    पदार्थ

    पदार्थ- (उषा) = उषा के तुल्य कान्तिमती कन्या (इन्द्र-तमा) = ऐश्वर्यवती, रानी के तुल्य और (मघोनी) = धनैश्वर्य से युक्त (अभूत) = हो । वह (सुविताय) = ऐश्वर्य प्राप्त करने के लिये (श्रवांसि) = यशों और धनों को (अजीजनत्) = उत्पन्न करे। वह (दिवः दुहिता) = सूर्य की पुत्रीवत् प्रभा के तुल्य उज्ज्वल कामनावान् पति के मनोरथों को पूर्ण करनेवाली, ज्ञानवती स्त्री (अंगिरस्तमा) = अति विदुषी होकर (सुकृते) = पुण्यादि की वृद्धि के लिये (वसूनि) = ऐश्वर्यों को (दधाति) = धारण करे।

    भावार्थ

    भावार्थ- विदुषी स्त्री पति के घर जाकर पति के मनोरथों को पूर्ण करे। अपने ज्ञान और विद्या के द्वारा ऐश्वर्य प्राप्त करके श्रेष्ठ कर्मों द्वारा पुण्य की वृद्धि करे।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    The dawn arises, most potent and regenerative, wealthy and munificent, and creates and recreates food, energy, wealth, honour and excellence for the goodness and well being of humanity. May the divine dawn, child born of the eternal light of life, bring us the most inspiring and rejuvenating wealths of life for the good life and well being of noble humanity.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे सर्व शक्तिसंपन्न परमात्मा! तुझ्या दुहितारूपी विद्युत इत्यादी शक्ती आमच्यासाठी कल्याणमय व्हाव्या, त्यांनी आम्हाला प्रकाशाचे धन धारण करवावे. तुझ्या ज्ञानाने आमचे हृदय प्रकाशित व्हावे.

    टिप्पणी

    या मंत्रात परमात्मरूपी शक्तीला ‘दुहिता’ या नावाने संबोधलेले आहे. ‘दुहिता दुर्हिता’ या वैदिकोक्तीप्रमाणे परमात्म्याच्या विद्युत इत्यादी दिव्य शक्ती दूर देशी जाऊन हित करतात. जी दूर देशात जाऊन हितकारक कार्य करते तिला दुहिता म्हणतात. त्यासाठी ‘दुहिता’ शब्दाने येथे विद्युत इत्यादी शक्तीचे ग्रहण केलेले आहे. दुहिता शब्दाचा दिव: शब्दाबरोबर संबंध आहे. दूर देशात जाऊन हित करते त्यामुळे तिचे नाव ‘दिवोदुहिता’ आहे. येथे दुहिता शब्दाचा अर्थ शक्ती असा आहे. पुत्री हा अर्थ नाही. ॥३॥

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