अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 8/ मन्त्र 2
ऋषिः - अध्यात्म अथवा व्रात्य
देवता - प्राजापत्या अनुष्टुप्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त
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स विशः॒सब॑न्धू॒नन्न॑म॒न्नाद्य॑म॒भ्युद॑तिष्ठत् ॥
स्वर सहित पद पाठस:। विश॑: । सऽब॑न्धून् । अन्न॑म् । अ॒न्न॒ऽअद्य॑म् । अ॒भि॒ऽउद॑तिष्ठत् ॥८.२॥
स्वर रहित मन्त्र
स विशःसबन्धूनन्नमन्नाद्यमभ्युदतिष्ठत् ॥
स्वर रहित पद पाठस:। विश: । सऽबन्धून् । अन्नम् । अन्नऽअद्यम् । अभिऽउदतिष्ठत् ॥८.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
परमेश्वर की प्रभुता का उपदेश।
पदार्थ
(सः) वह [व्रात्यपरमात्मा] (सबन्धून्) बन्धुओं सहित [कुटुम्बियों] सहित (विशः) मनुष्यों पर, (अन्नम्) अन्न [जौ चावल आदि] पर और (अन्नाद्यम्) अनाज [रोटी पूरी आदि] पर (अभ्युदतिष्ठत्) सर्वथा अधिष्ठाता हुआ ॥२॥
भावार्थ
परमात्मा मनुष्य आदिसब पदार्थों का अधिष्ठाता होकर सबकी रक्षा करता है ॥२॥
टिप्पणी
२−(सः) व्रात्यः परमात्मा (विशः) पु० लि०। मनुष्यान्-निघ० २।३। (सबन्धून्) बन्धुभिः सहितान् (अन्नम्)सस्यम् (अन्नाद्यम्) अदनीयं संस्कृतं पदार्थम् (अभ्युदतिष्ठत्) अभीत्यअधिष्ठितवान् ॥
विषय
राजन्य
पदार्थ
१. (सः अरज्यत) = इस व्रात्य ने प्रजाओं का रञ्जन किया। तत: उस रञ्जन के कारण (राजन्य:) = राजन्य (अजायत) = हो गया। 'राजति' दीप्त जीवनवाला बना। (स:) = वह प्रजा का रजन करनेवाला व्रात्य (सबन्धून विश:) = बन्धुओंसहित प्रजाओं का तथा (अन्नं अन्नाद्यं अभि) = अन्न और अन्नाद्य का लक्ष्य करके (उदतिष्ठत) = उत्थानवाला हुआ। उसने बन्धुओं व प्रजाओं की स्थिति को उन्नत करने का प्रयत्न किया कि अन्न व अन्नाद्य की कमी न हो। कोई भी भूखा न मरे। २. (यः एवं वेद) = जो इसप्रकार समझ लेता है कि उसने बन्धुओं व प्रजाओं को उन्नत करना है और अन्न व अन्नाद्य की कमी नहीं होने देनी, (सः) = वह व्रात्य (वै) = निश्चय से (सबन्धूनां च) = अपने समान बन्धुओं का (विशाम् च) = प्रजाओं का तथा (अन्नस्य अन्नाद्यस्य च) = अन्न और अन्नाद्य का प्(रियं धाम भवति) = प्रिय स्थान बनता है।
भावार्थ
एक व्रात्य लोकहित के कार्यों में प्रवृत्त हुआ-हुआ बन्धुओं व प्रजाओं को उन्नत करने का प्रयत्न करता है, अन्न व अन्नाद्य की कमी न होने देने के लिए यत्नशील होता है। इसप्रकार प्रजाओं का रञ्जन करता हुआ यह राजन्य होता है।
भाषार्थ
(सः) उस ने (सबन्धून्) बन्धु-बान्धवों सहित (विशः अभिः) प्रजाओं को लक्ष्य करके, तथा (अन्नम्, अन्नाद्यम्) पेय-लेह्य-चूष्य अन्नों और खाद्यान्नों को लक्ष्य करके (उदतिष्ठत्१) उत्थान किया, प्रयत्न किया। इन की समुन्नति के लिए यत्न किया।
टिप्पणी
[१. उदतिष्ठत्(अथर्व० १५, सू० २)। उत्थान= EFFORT(आप्टे)।]
विषय
व्रात्य राजा।
भावार्थ
(सः) वह व्रात्य प्रजापति (सबन्धून् विशः) अपने बन्धुओं सहित समस्त प्रजाओं के और (अन्नम् अन्नाद्यम्) अन्न और अन्न के समान समस्त भोग्य पदार्थों या भोग सामर्थ्यों के (अभि-उत्-प्रतिष्ठत्) प्रति उठा। सबका अधिष्ठाता स्वामी हो गया।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
१ साम्नी उष्णिक्, २ प्राजापत्यानुष्टुप् ३ आर्ची पंक्तिः। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Vratya-Prajapati daivatam
Meaning
He rose to control, organise and socially rule the people, his own fraternity, and to provide them with food and delicacies of life with good health.
Translation
He rose up to gain people along with the kinsmen, food and edibles.
Translation
He becomes the possessor of subject with their kinsmen, grain and nourishment.
Translation
He became the Lord of men with their kinsmen, of cereals and nourishing meals.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(सः) व्रात्यः परमात्मा (विशः) पु० लि०। मनुष्यान्-निघ० २।३। (सबन्धून्) बन्धुभिः सहितान् (अन्नम्)सस्यम् (अन्नाद्यम्) अदनीयं संस्कृतं पदार्थम् (अभ्युदतिष्ठत्) अभीत्यअधिष्ठितवान् ॥
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