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अथर्ववेद के काण्ड - 16 के सूक्त 6 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 6/ मन्त्र 8
    ऋषिः - उषा,दुःस्वप्ननासन देवता - आसुरी जगती छन्दः - यम सूक्तम् - दुःख मोचन सूक्त
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    कु॒म्भीका॑दू॒षीकाः॒ पीय॑कान् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    कु॒म्भीका॑: । दू॒षीका॑: । पीय॑कान् ॥६.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कुम्भीकादूषीकाः पीयकान् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कुम्भीका: । दूषीका: । पीयकान् ॥६.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 16; सूक्त » 6; मन्त्र » 8
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    हिन्दी (4)

    विषय

    रोगनाश करने का उपदेश।

    पदार्थ

    (कुम्भीकाः)कुम्भीकाओं [रोग जिस में पेट बटलोही-सा बजता है], (दूषीकाः) दूषीकाओं [जिनरोगों में रोगी गिरता जाता है], (पीयकान्) अन्य दुःखदायी रोगों ॥८॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य ईश्वरनियमको छोड़कर कुपथ्य करतेहैं, वे अनेक महाक्लिष्ट रोग भोगते हैं॥७-९॥

    टिप्पणी

    ८−(कुम्भीकाः)कुम्भी+कै शब्दे-क। कुम्भी उखेव कायन्ति शब्दायन्ते यासु ताः पीडाः (पीयकान्)पीयतिर्हिंसाकर्मा-निघ० ४।२५। क्वुन्। शिल्पिसंज्ञयोरपूर्वस्यापि। उ० २।३२।पीयति-क्वुन्। हिंसकान् रोगान् ॥

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    विषय

    प्रभु-प्राप्ति के लिए वर्जनीय बातें

    पदार्थ

    १. (ते) = वे गतमन्त्र में वर्णित 'उषस्पति+वाचस्पति' बननेवाले पुरुष (अमुष्मै) = उस प्रभु की प्राप्ति के लिए-प्रभु-प्राप्ति के उद्देश्य से-निम्न दुर्गुणों को अपने से (परा वहन्तु) = सुदूर [परे] प्राप्त करानेवाले हों। सबसे प्रथम (अरायान्) = [stingy, niggard] कृपणता की वृत्तियों को दूर करें। फिर (दुर्णाम्न:) = दुष्ट नामों को-अशुभ वाणियों को अपने से दूर करें तथा (सदान्या:) = [सदा नृ-war, cry, shout, नुवति] हमेशा गालियाँ न देते रहे। २. (कुम्भीकाः) = [swelling of the eyelids] पलकों के सदा सूजे रहने को हम दूर करें। शोक में क्रन्दन के कारण हमारी पलकें सदा सूजी न रहें। (दूषीका:) = [rheum of the eyes] आँखों के मल को हम अपने से दूर करें, द्वेष आदि से आँखें मलिन न हों तथा (पीयकान्) = [पीयते to drink] अपेय द्रव्यों [शराब आदि] के पीने की वृत्ति को अपने समीप न आने दें। ३. (जाग्रद् दुःष्वन्यम्) = जगाते हुए अशुभ स्वप्नों को अपने से दूर करें तथा (स्वप्ने दु:ष्ययम्) = सोते हुए अशुभ स्वप्नों को न लेते रहें। दिन में भी अशुभ कार्यों का ध्यान न आता रहे तथा रात्रि में स्वप्नावस्था में तो अशुभ बातों का ध्यान हो ही नहीं।

    भावार्थ

    प्रभु-प्रासि के मार्ग पर चलनेवाला व्यक्ति कृपणता, अशुभवाणी व अपशब्दों से दूर रहता है। यह शोक व द्वेष में फैसकर आँखों को विकृत नहीं कर लेता। यह शराब आदि अपेय पदार्थों का ग्रहण नहीं करता। जागते व सोते यह अशुभ स्वप्नों को नहीं लेता रहता।

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    भाषार्थ

    (कुम्भीकाः) कुत्सित और भयकारक दुर्वासनाओं को, (दूषिकाः) दूषित करने वाली भावनाओं को, (पीयकान्) तथा हिंस्रकर्मों को ॥८॥

    टिप्पणी

    [पीयकान् + पीयति हिंसाकर्मा (निरु० ४।४।२५)]

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    विषय

    अन्तिम विजय, शान्ति, शत्रुशमन।

    भावार्थ

    वाणी उषा और उनके पालक लोग (कुम्भीकाः) कुम्भीक, घड़े के समान पेट बढ़ा देने वाली जलोदर आदि, (दूषिकाः) शरीर में विषका दोष उत्पन्न करने वाली और (पीयकान्) प्रारण हिंसा करने वाली व्याधियों और रोगों को और (जाग्रद्-दुष्वप्न्यम्) जागते समय के दुस्वप्न होने और (स्वप्ने दुष्वप्न्यम्) सोते समय में दुस्वप्न होने, और (वरान् अनागमिष्यतः) भविष्यत् में कभी न आने वाले उत्तम एैश्वर्य, अर्थात् उत्तम एैश्वर्यों के भविष्यत् में न आने के कष्टों को (अवित्तेः संकल्पान्) द्रव्य लाभ न होने या दरिद्रता से उठे नाना संकल्प और (अमुच्याः) कभी न छूटने वाले (द्रुहः) परस्पर के कलहों के (पाशान्) पाशों को हे (अग्ने) अग्ने, शत्रुभयदायक ! राजन् ! प्रभो ! (देवाः) विद्वान् लोग (तत्) उन सब कष्टदायी बातों को (अमुष्मै) उस शत्रु के पास (परावहन्तु) पहुंचावें। (यथा) जिससे वह शत्रुजन (वध्रिः) निर्वीर्य, बधिया (विशुरः साधुः न) तकलीफ़ में पड़े भले श्रादमी के समान (असत्) हो जाय।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    यम ऋषिः। दुःस्वप्ननाशन उषा च देवता, १-४ प्राजापत्यानुष्टुभः, साम्नीपंक्ति, ६ निचृद् आर्ची बृहती, ७ द्विपदा साम्नी बृहती, ८ आसुरी जगती, ९ आसुरी, १० आर्ची उष्णिक, ११ त्रिपदा यवमध्या गायत्री वार्ष्यनुष्टुप्। एकादशर्चं षष्ठं पर्याय सूक्तम्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Atma-Aditya Devata

    Meaning

    All swellings, contagions and fatalities ...

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    Translation

    eye-troubles (kumbhika), malignant and septic diseases;

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    Translation

    To Kumbhikah, the diseases which make the stomach like jug, Dushikah, the diseases which affect the boby and Peeyakan, the diseases which cause fatality.

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    Translation

    Dropsy, poisonous, and deadly diseases.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ८−(कुम्भीकाः)कुम्भी+कै शब्दे-क। कुम्भी उखेव कायन्ति शब्दायन्ते यासु ताः पीडाः (पीयकान्)पीयतिर्हिंसाकर्मा-निघ० ४।२५। क्वुन्। शिल्पिसंज्ञयोरपूर्वस्यापि। उ० २।३२।पीयति-क्वुन्। हिंसकान् रोगान् ॥

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