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अथर्ववेद के काण्ड - 19 के सूक्त 42 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 42/ मन्त्र 3
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - ब्रह्म छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ब्रह्म यज्ञ सूक्त
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    अं॑हो॒मुचे॒ प्र भ॑रे मनी॒षामा सु॒त्राव्णे॑ सुम॒तिमा॑वृणा॒नः। इ॒ममि॑न्द्र॒ प्रति॑ ह॒व्यं गृ॒भाय॑ स॒त्याः स॑न्तु॒ यज॑मानस्य॒ कामाः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अं॒हः॒ऽमुचे॑। प्र। भ॒रे॒। म॒नी॒षाम्। आ। सु॒ऽत्राव्ने॑। सु॒ऽम॒तिम्। आ॒ऽवृ॒णा॒नः। इ॒मम्। इ॒न्द्र॒। प्रति॑। ह॒व्यम्। गृ॒भा॒य॒। स॒त्याः। स॒न्तु॒। यज॑मानस्य। कामाः॑ ॥४२.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अंहोमुचे प्र भरे मनीषामा सुत्राव्णे सुमतिमावृणानः। इममिन्द्र प्रति हव्यं गृभाय सत्याः सन्तु यजमानस्य कामाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अंहःऽमुचे। प्र। भरे। मनीषाम्। आ। सुऽत्राव्ने। सुऽमतिम्। आऽवृणानः। इमम्। इन्द्र। प्रति। हव्यम्। गृभाय। सत्याः। सन्तु। यजमानस्य। कामाः ॥४२.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 42; मन्त्र » 3
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    हिन्दी (3)

    विषय

    वेद की स्तुति का उपदेश।

    पदार्थ

    (सुमतिम्) सुमति (आवृणानः) माँगता हुआ मैं (अंहोमुचे) कष्ट से छुड़ानेहारे, (सुत्राव्णे) बड़े रक्षक [परमात्मा] के लिये (मनीषाम्) अपनी मननशक्ति को (आ) सब ओर से (प्र भरे) समर्पण करता हूँ। (इन्द्र) हे इन्द्र ! [परम ऐश्वर्य वाले परमात्मन्] (इमम्) इस (हव्यम्) ग्राह्य स्तुति को (प्रति गृभाय) स्वीकर कर, (यजमानस्य) यजमान के (कामाः) मनोरथ (सत्याः) सत्य [पूर्ण] (सन्तु) होवें ॥३॥

    भावार्थ

    मनुष्य को योग्य है कि परमात्मा को आत्मसमर्पण करके सुमति के साथ अपने उत्तम मनोरथ सिद्ध करे ॥३॥

    टिप्पणी

    ३−(अंहोमुचे) कष्टाद् मोचयित्रे (प्रभरे) समर्पयामि (मनीषाम्) अ०५।९।८। कृतृभ्यामीषन्। उ०४।२६। मनु अवबोधने-ईषन्, टाप्। मननशक्तिम्। प्रज्ञाम् (आ) समन्तात् (सुत्राव्णे) सु+त्रैङ् पालने-वनिप्। महारक्षकाय परमेश्वराय (सुमतिम्) कल्याणबुद्धिम् (आवृणानः) याचमानः (इमम्) (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (हव्यम्) ग्राह्यं स्तोमम् (प्रति गृभाय) प्रतिगृहाण। स्वीकुरु (सत्याः) यथार्थाः। पूर्णाः (सन्तु) (यजमानस्य) (कामाः) मनोरथाः ॥

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    भाषार्थ

    (सुमतिम्) श्रेष्ठमति (आवृणानः) चाहता हुआ मैं, (मनीषाम्) अपनी मानसिक इच्छाओं और प्रज्ञा को (अंहोमुचे) पापों से छुड़ाने वाले (सुत्राव्णे) सर्वोत्तम रक्षक परमेश्वर के प्रति (आ प्र भरे) पूर्णतया समर्पित करता हूँ। (इन्द्र) हे परमैश्वर्यसम्पन्न परमेश्वर! (इदं हव्यम्) मेरी इस मनीषारूपी हवि को (प्रतिगृभाय) स्वीकार कीजिए। आपकी कृपा से (यजमानस्य) समर्पणरूपी यज्ञ की कर्त्ता की (कामाः) कामनाएँ (सत्याः) सत्यमयी (सन्तु) हों, पूर्ण हों।

    टिप्पणी

    [मनीषाम्= मनस्+ईषाम् (इष इच्छायाम्)। अथवा (ईष गतौ) अर्थात् मानसिक प्रेरणाप्रद प्रज्ञा।]

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    विषय

    अंहोमुच्-सुत्रावा

    पदार्थ

    १. मैं (सुमतिम्) = कल्याणी मति का (आवृणान:) = वरण करता हुआ उस (अंहोमुचे) = पापों से छुड़ानेवाले (सुत्रामणे) = उत्तम रक्षक प्रभु के लिए (मनीषाम्) = मन का ईश बनानेवाली स्तुति को (आप्रभरे) = समन्तात् सम्पादित करता हैं। शुभ बुद्धिवाला पुरुष सदा प्रभु-स्तवन करता है। यह प्रभु-स्तवन उसके मन का शासक बन जाता है। उसे प्रभु-स्तवन में ही आनन्द का अनुभव होता है। इस स्तोता को प्रभु पापों से मुक्त करते हैं और उसका सम्यक त्राण [रक्षण] करते हैं। २. (इन्द्र) = हे परमैश्वर्यशालिन् प्रभो। आप (इमं हव्यं प्रतिगृभाय) = इन हव्यों को स्वीकार कीजिए। हमसे किये जानेवाले व आप में आहित किये जानेवाले ये यज्ञ हमें आपका प्रिय बनाएँ। [ब्रहाण्याधाय कर्माणि]। (यजमानस्य) = इस यज्ञशील पुरुष की (कामा:) = कामनाएँ (सत्यः सन्तु) = सदा सत्य हों। यह यजमान कभी असत्य कामनाओं को करनेवाला न हो।

    भावार्थ

    हम सुमतिबाले बनकर प्रभु-स्तवन करें। प्रभु हमें पापों से मुक्त करेंगे और हमारा रक्षण करेंगे। हम यज्ञशील बनें और सदा सत्य कामनाओंवाले हों।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Brahma, the Supreme

    Meaning

    Opting for noble thoughts and understanding by conscious choice, bearing and offering all holy thoughts and desires in adoration and service of the lord saviour from sin and evil, I pray: O lord, accept this offer of havi and bless that all desires and prayers of the yajamana be true, holy and fulfilled.

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    Translation

    Choosing favour of Him. who protects well: I offer my praises to the deliverer from sins. O resplendent Lord, may you, accept this offering. May the wishes of the sacrificer come true.

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    Translation

    Brahman is the spoons filled with ghee and the Vedi of Yajana is fixed by the Supreme Being-Brahman, the Supreme Being is the nucleolus substance and theme of yajna and also is the priest who gives oblation. Our appreciation for Yajna granting pleasure and happiness.

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    Translation

    Seeking noble and pure thoughts, I make a clean breast of my deeplaid, keen desire at the feet of the guardian-Angel, who frees man from ail sins. O Evil-Destroyer, accept this offering of mine. Let the desires of the sacrficer be true i.e., fulfilled completely.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३−(अंहोमुचे) कष्टाद् मोचयित्रे (प्रभरे) समर्पयामि (मनीषाम्) अ०५।९।८। कृतृभ्यामीषन्। उ०४।२६। मनु अवबोधने-ईषन्, टाप्। मननशक्तिम्। प्रज्ञाम् (आ) समन्तात् (सुत्राव्णे) सु+त्रैङ् पालने-वनिप्। महारक्षकाय परमेश्वराय (सुमतिम्) कल्याणबुद्धिम् (आवृणानः) याचमानः (इमम्) (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् परमात्मन् (हव्यम्) ग्राह्यं स्तोमम् (प्रति गृभाय) प्रतिगृहाण। स्वीकुरु (सत्याः) यथार्थाः। पूर्णाः (सन्तु) (यजमानस्य) (कामाः) मनोरथाः ॥

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