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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 102 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 102/ मन्त्र 2
    ऋषिः - विश्वामित्रः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-१०२
    1

    वृषो॑ अ॒ग्निः समि॑ध्य॒तेऽश्वो॒ न दे॑व॒वाह॑नः। तं ह॒विष्म॑न्त ईडते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वृषो॒ इति॑ । अ॒ग्नि: । सम् । इ॒ध्य॒ते॒ । अश्व॑: । न । दे॒व॒ऽवाह॑न: ॥ तम् । ह॒विष्म॑न्त: । ई॒ल॒ते॒ ॥१०२.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वृषो अग्निः समिध्यतेऽश्वो न देववाहनः। तं हविष्मन्त ईडते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वृषो इति । अग्नि: । सम् । इध्यते । अश्व: । न । देवऽवाहन: ॥ तम् । हविष्मन्त: । ईलते ॥१०२.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 102; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    परमेश्वर के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (अश्वः न) शीघ्रगामी घोड़े के समान (देववाहनः) उत्तम पदार्थों का पहुँचानेवाला (वृषो) बलवान् ही (अग्निः) अग्नि [प्रकाशमान परमेश्वर] (सम्) भले प्रकार (इध्यते) प्रकाश करता है। (हविष्मन्तः) ग्रहण करने योग्य वस्तुओंवाले पुरुष (तम्) उसको (ईडते) खोजते हैं ॥२॥

    भावार्थ

    जैसे घोड़े आदि वाहन द्वारा पदार्थ प्राप्त किये जाते हैं, वैसे ही परमात्मा सब संसार को वायु जल आदि उत्तम पदार्थ सदा पहुँचाता है ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(वृषो) वृषैव। बलिष्ठ एव (अग्निः) प्रकाशमानः परमेश्वरः (सम्) सम्यक् (इध्यते) दीप्यते (अश्वः) तुरङ्गः (न) इव (देववाहनः) दिव्यपदार्थवाहकः (तम्) (हविष्मन्तः) ग्राह्यपदार्थयुक्ताः पुरुषाः (ईडते) म० १। अध्येषणया प्राप्नुवन्ति ॥

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    विषय

    'हविष्मान्' उपासक

    पदार्थ

    १. (वृषा) = शक्तिशाली (अग्नि:) = अग्रणी प्रभु (उ) = ही (समिध्यते) = उपासकों से हृदयों में समिद्ध किये जाते हैं। वे प्रभु (अश्वः न) = अश्व के समान हैं। जैसे एक घोड़ा अपने सवार को लक्ष्यस्थान पर पहुँचाता है, उसी प्रकार प्रभ अपने उपासकों को लक्ष्यस्थान पर पहुँचाते हैं। (देववाहनः) = देवों से ये प्रभु धारण किये जाते हैं। देववृत्ति के पुरुष ही हृदयों में प्रभु का दर्शन करते हैं। २. (तम्) = उस प्रभु को (हविष्मन्त:) = प्रशस्त हविवाले पुरुष ही (ईडते) = पूजते हैं। प्रभु का पूजन हवि से ही होता है। [हविषा विधेम] दानपूर्वक अदन ही प्रभु-पूजन है। यही यज्ञों के द्वारा यज्ञरूप प्रभु का उपासन है।

    भावार्थ

    यज्ञशील बनकर हम प्रभु का पूजन करते हैं। प्रभु हमें शक्तिशाली व उन्नत बनाकर लक्ष्यस्थान पर पहुँचाते हैं।

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    भाषार्थ

    (वृषा उ) सुखों की वर्षा करनेवाला (अग्निः) जगन्नेता (समिध्यते) हृदय में सम्यक् प्रदीप्त किया जाता है। (अश्वः न) जैसे अश्व वहन-कार्य करता है वैसे जगन्नेता (देववाहनः) दिव्यगुणों का वहन करता है। (हविष्मन्तः) समर्पणों की हविवाले उपासक (तम्) उसकी (ईळते=ईलते) स्तुतियाँ करते हैं।

    टिप्पणी

    [वाहनः=वहन करता अर्थात् प्राप्त कराता है।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    India Devata

    Meaning

    Virile and generous, Agni is lighted and raised, it shines and blazes. It is the carrier of fragrance to the divinities of heaven and earth. Devotees bearing sacred offerings worship it in yajna.

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    Translation

    Like a horse this powerful fire which is the carrier of-natural forces is enkindled for Yajna. The men having oblations decribe the property of it.

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    Translation

    Like a horse this powerful fire which is the carrier of natural forces is enkindled for Yajna. The men having oblations describe the property of it.

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    Translation

    O Peace-showering Refulgent God, king, commander, leader, learned person or light, we, ourselves being powerful, well enhance the glory of Thee, who is All-Powerful and highly splendorous.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(वृषो) वृषैव। बलिष्ठ एव (अग्निः) प्रकाशमानः परमेश्वरः (सम्) सम्यक् (इध्यते) दीप्यते (अश्वः) तुरङ्गः (न) इव (देववाहनः) दिव्यपदार्थवाहकः (तम्) (हविष्मन्तः) ग्राह्यपदार्थयुक्ताः पुरुषाः (ईडते) म० १। अध्येषणया प्राप्नुवन्ति ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    পরমেশ্বরস্য গুণোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (অশ্বঃ ন) দ্রুতগামী ঘোড়ার ন্যায় (দেববাহনঃ) উত্তম পদার্থসমূহের প্রেরক (বৃষো) বলবানই (অগ্নিঃ) অগ্নি [প্রকাশমান পরমেশ্বর] (সম্) সম্যক (ইধ্যতে) প্রকাশ করেন। (হবিষ্মন্তঃ) গ্রহণযোগ্য পদার্থযুক্ত পুরুষ (তম্) তাঁর[সেই পরমেশ্বরের] (ঈডতে) অন্বেষণ করে ॥২॥

    भावार्थ

    যেমন ঘোড়া আদি বাহন দ্বারা পদার্থ প্রাপ্ত করা হয়, তেমনই পরমাত্মা সমস্ত সংসারকে বায়ু, জল আদি উত্তম পদার্থ সর্বদা প্রদান করেন ॥২॥

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    भाषार्थ

    (বৃষা উ) সুখের বর্ষণকারী (অগ্নিঃ) জগন্নেতা (সমিধ্যতে) হৃদয়ে সম্যক্ প্রদীপ্ত করা হয়। (অশ্বঃ ন) যেমন অশ্ব বহন-কার্য করে তেমনই জগন্নেতা (দেববাহনঃ) দিব্যগুণ-সমূহ বহন করেন। (হবিষ্মন্তঃ) সমর্পণের হবিসম্পন্ন উপাসক (তম্) উনার (ঈল়তে=ঈলতে) স্তুতি করে।

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