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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 143 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 143/ मन्त्र 8
    ऋषिः - वामदेवः, मेध्यातिथिः देवता - अश्विनौ छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त १४३
    1

    मधु॑मती॒रोष॑धी॒र्द्याव॒ आपो॒ मधु॑मन्नो भवत्व॒न्तरि॑क्षम्। क्षेत्र॑स्य॒ पति॒र्मधु॑मान्नो अ॒स्त्वरि॑ष्यन्तो॒ अन्वे॑नं चरेम ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मधु॑ऽमती: । ओष॑धी: । द्याव॑: । आप॑: । मधु॑ऽमत् । न॒: । भ॒व॒तु॒ । अ॒न्तरि॑क्षम् ॥ क्षेत्र॑स्य । पति॑: । मधु॑ऽमान: । न॒: । अ॒स्तु॒ । अरि॑ष्यन्त: । अनु॑ । ए॒न॒म् । च॒रे॒म॒ ॥१४३.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मधुमतीरोषधीर्द्याव आपो मधुमन्नो भवत्वन्तरिक्षम्। क्षेत्रस्य पतिर्मधुमान्नो अस्त्वरिष्यन्तो अन्वेनं चरेम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मधुऽमती: । ओषधी: । द्याव: । आप: । मधुऽमत् । न: । भवतु । अन्तरिक्षम् ॥ क्षेत्रस्य । पति: । मधुऽमान: । न: । अस्तु । अरिष्यन्त: । अनु । एनम् । चरेम ॥१४३.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 143; मन्त्र » 8
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    खेती के काम का उपदेश।

    पदार्थ

    (नः) हमारे लिये (ओषधीः) ओषधियाँ [चावल जौ आदि अन्न], (द्यावः) सूर्य आदि के प्रकाश, (आपः) जल [मेह, कूएँ, नदी आदि के] (मधुमतीः) मधुर आदि गुणवाले [होवें], (अन्तरिक्षम्) आकाश (मधुमत्) मधुर आदि गुणवाला (भवतु) होवे। (क्षेत्रस्य पतिः) खेत का स्वामी [किसान] (नः) हमारे लिये (मधुमान्) मधुर आदि गुणवाला (अस्तु) होवे, (अरिष्यन्तः) बिना कष्ट उठाये हुए हम (एनम् अनु) इस [किसान] के पीछे-पीछे (चरेम) चलें ॥८॥

    भावार्थ

    जैसे किसान खेत में बीज बोकर धूप, जल, भूमि आदि से काम लेता हुआ अन्न उत्पन्न करके उपकार करता है, वैसे ही विद्वान् लोग सब पदार्थों का उपयोग करके संसार का उपकार करें ॥८॥

    टिप्पणी

    यह मन्त्र ऋग्वेद में है-४।७।३ ॥ ८−(मधुमतीः) मधुमत्यः। मधुरादिगुणयुक्ताः (ओषधीः) ओषध्यः। व्रीहियवादिभोज्यपदार्थाः (द्यावः) सूर्यादिप्रकाशाः (आपः) मेघकूपनद्यादिजलानि (मधुमत्) मधुरादिगुणयुक्तम् (नः) अस्मभ्यम् (भवतु) (अन्तरिक्षम्) आकाशम् (क्षेत्रस्य) शस्याद्युत्पत्तिस्थानस्य (पतिः) स्वामी। कृषाणः (मधुमान्) मधुरादिगुणयुक्तः (नः) अस्मभ्यम् (अस्तु) (अरिष्यन्तः) रिष हिंसायाम्-शतृ, नञ्समासः। हिंसां न प्राप्नुवन्तः (अनु) अनुसृत्य (एनम्) क्षेत्रपतिम् (चरेम) गच्छेम ॥

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    विषय

    माधुर्य-ही-माधुर्य

    पदार्थ

    १. छठे मन्त्र के अनुसार प्राणसाधनों व सम्मिलित प्रार्थना के होने पर (ओषधी: मधुमती:) = ओषधियाँ हमारे लिए माधुर्यवाली हों। (द्याव:) = द्युलोक तथा (आप:) = द्युलोक से बरसनेवाले जल माधुर्यवाले हों। द्युलोकस्थ सूर्य ने ही तो हमारे क्षेत्रस्थ अन्नों को वृष्टि द्वारा उत्पन्न करना है और सन्ताप द्वारा परिपक्व करना है। २. वायु देवता का निवासस्थान यह (अन्तरिक्षम्) = अन्तरिक्ष (न:) = हमारे लिए (मधुमत्) = माधुर्यवाला हो। ३. (क्षेत्रस्य पति:) = सब क्षेत्रों का स्वामी प्रभु (नः) = हमारे लिए (मधुमान् अस्तु) = माधुर्य को प्राप्त करानेवाले हों। (अरिष्यन्तः) = अहिंसित होते हुए हम (एनम् अनुचरेम) = प्रभु की अनुकूलता में गतिवाले हों। प्रभु-स्मरण ही हमें वासनाओं से हिंसित होने से बचाएगा।

    भावार्थ

    भावार्थ ओषधियाँ-धुलोक-जल-अन्तरिक्ष और इन सबके स्वामी प्रभु हमारे लिए माधुर्य प्रदान करें।

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    भाषार्थ

    हे अश्वियो! तुम्हारी सुमति द्वारा (नः) हमारे लिए (ओषधीः) ओषधियाँ, (द्यावः) द्युलोक किरणें और तारागण, (आपः) जल (मधुमतीः) मधुर तथा सुखदायी हों; (अन्तरिक्षम्) अन्तरिक्ष् वायु समेत हमें (मधुमत् भवतु) मधुर तथा सुखदायी हो। (क्षेत्रस्य पतिः) कृषि का स्वामी किसानवर्ग (नः) हमारे लिए (मधुमान् अस्तु) मधुर हो। (अरिष्यन्तः) हम प्रजाजन दुःखों और कष्टों की मार से हिंसित न होते हुए (एनम्) इस सम्राट् के (अनु) अनुकूल होकर (चरेम) विचरें।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Prajapati

    Meaning

    May the herbs and trees, all vegetation indeed, be full of honey for us. May the heavens of light, the skies and the oceans of earth and space be full of honey for us. May the farmer, master of the field, be gracious with honey for us. And let us join, serve and cooperate with the farmer as well as with nature as we should, without hurting, injuring and polluting.

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    Translation

    May the herbacious plants be sweet for us and may the heaven and waters be full of sweetness, may the firmament be sweet, may the master of field (peasant) be full of sweetness and may we follow him uninjured.

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    Translation

    May the herbaceous plants be sweet for us and may the heaven and waters be full of sweetness, may the firmament be sweet, may the master of field (peasant) be full of sweetness and may we follow him uninjured.

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    Translation

    May the plants and herbs be sweet (i.e., efficacious for us! May the heavens, the waters and the mid-regions be all sweet (i.e., healthful and invigorating) for us! May the land-lord (i.e., the producer of grains and vegetables) be sweet tie, friendly and helpful) for us. Let us follow him (act according to his wishes and convenience) being free from disease and trouble of any sort.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    यह मन्त्र ऋग्वेद में है-४।७।३ ॥ ८−(मधुमतीः) मधुमत्यः। मधुरादिगुणयुक्ताः (ओषधीः) ओषध्यः। व्रीहियवादिभोज्यपदार्थाः (द्यावः) सूर्यादिप्रकाशाः (आपः) मेघकूपनद्यादिजलानि (मधुमत्) मधुरादिगुणयुक्तम् (नः) अस्मभ्यम् (भवतु) (अन्तरिक्षम्) आकाशम् (क्षेत्रस्य) शस्याद्युत्पत्तिस्थानस्य (पतिः) स्वामी। कृषाणः (मधुमान्) मधुरादिगुणयुक्तः (नः) अस्मभ्यम् (अस्तु) (अरिष्यन्तः) रिष हिंसायाम्-शतृ, नञ्समासः। हिंसां न प्राप्नुवन्तः (अनु) अनुसृत्य (एनम्) क्षेत्रपतिम् (चरेम) गच्छेम ॥

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    बंगाली (2)

    मन्त्र विषय

    কৃষিকর্মোপদেশঃ

    भाषार्थ

    (নঃ) আমাদের জন্য (ওষধীঃ) ঔষধিসমূহ [চাল যব আদি অন্ন], (দ্যাবঃ) সূর্যাদির প্রকাশ, (আপঃ) জল [মেঘ/বৃষ্টি, কূপ, নদী আদির জল] (মধুমতীঃ) মধুর আদি গুণযুক্ত [হোক], (অন্তরিক্ষম্) আকাশ (মধুমৎ) মধুর আদি গুণযুক্ত (ভবতু) হোক। (ক্ষেত্রস্য পতিঃ) ক্ষেত্রপতি/ভূপতি [কৃষক] (নঃ) আমাদের জন্য (মধুমান্) মধুর আদি গুণযুক্ত (অস্তু) হোক, (অরিষ্যন্তঃ) বিনা কষ্টে উত্থিত আমরা (এনম্ অনু) এই [কৃষকের] অনুগমন করে (চরেম) চলি ॥৮॥

    भावार्थ

    কৃষক যেমন জমিতে বীজ বপন করে রোদ, জল, ভূমি আদির সহায়তায় অন্ন উৎপন্ন করে উপকার করে, তেমনই বিদ্বানগণ সমস্ত পদার্থের ব্যবহার করে সংসারের উপকার করুক ॥৮॥ এই মন্ত্র ঋগ্বেদে আছে-৪।৭।৩ ॥

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    भाषार्थ

    হে অশ্বিদ্বয়! তোমাদের সুমতি দ্বারা (নঃ) আমাদের জন্য (ওষধীঃ) ঔষধি-সমূহ, (দ্যাবঃ) দ্যুলোক কিরণ এবং তারাগণ, (আপঃ) জল (মধুমতীঃ) মধুর তথা সুখদায়ী হোক; (অন্তরিক্ষম্) অন্তরিক্ষ্ বায়ু সমেত আমাদের (মধুমৎ ভবতু) মধুর তথা সুখদায়ী হোক। (ক্ষেত্রস্য পতিঃ) কৃষির স্বামী কৃষকবর্গ (নঃ) আমাদের জন্য (মধুমান্ অস্তু) মধুর হোক। (অরিষ্যন্তঃ) আমরা প্রজাগণ দুঃখ এবং কষ্টের আঘাত দ্বারা হিংসিত না হয়ে (এনম্) এই সম্রাটের (অনু) অনুকূল হয়ে (চরেম) বিচরণ করি।

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