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अथर्ववेद के काण्ड - 20 के सूक्त 58 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 58/ मन्त्र 3
    ऋषिः - भरद्वाजः देवता - सूर्यः छन्दः - प्रगाथः सूक्तम् - सूक्त-५८
    2

    बण्म॒हाँ अ॑सि सूर्य॒ बडा॑दित्य म॒हाँ अ॑सि। म॒हस्ते॑ स॒तो म॑हि॒मा प॑नस्यते॒ऽद्धा दे॑व म॒हाँ अ॑सि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    बट् । म॒हान् । अ॒सि॒ । सू॒र्य॒ । बट् । आ॒दि॒त्य॒ । म॒हान् । अ॒सि॒ । म॒ह: । ते॒ । स॒त: । म॒हि॒मा । प॒न॒स्य॒ते॒ । अ॒ध्दा । दे॒व॒ । म॒हान् । अ॒सि॒ ॥५८.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    बण्महाँ असि सूर्य बडादित्य महाँ असि। महस्ते सतो महिमा पनस्यतेऽद्धा देव महाँ असि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    बट् । महान् । असि । सूर्य । बट् । आदित्य । महान् । असि । मह: । ते । सत: । महिमा । पनस्यते । अध्दा । देव । महान् । असि ॥५८.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 58; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ईश्वर विषय का उपदेश।

    पदार्थ

    (सूर्य) हे चराचर के प्रेरक [परमेश्वर] तू (बट्) सत्य-सत्य (महान्) बड़ा (असि) है, (आदित्य) हे अविनाशी ! तू (बट्) ठीक-ठीक (महान्) महान् [पूजनीय] (असि) है। (ते) तुझ (महः) महान्, (सतः) सत्यस्वरूप की (महिमा) महिमा (पनस्यते) स्तुति की जाती है, (देव) हे दिव्य गुणवाले ! तू (अद्धा) निश्चय करके (महान्) महान् (असि) है ॥३॥

    भावार्थ

    जिस परमात्मा की महिमा सब सृष्टि के पदार्थ जताते हैं, सब मनुष्य उसकी उपासना करके अपनी उन्नति करें ॥३॥

    टिप्पणी

    मन्त्र ३ कुछ भेद से आचुका है-अ० १३।२।२९। मन्त्र ३, ४ ऋग्वेद में हैं-८।१०१ [सायणभाष्य ९०]।११, १२; यजुर्वेद ३३।३९, ४–०। और सामवेद-उ० ९।१।९ ॥ ३−(बट्) सत्यम् (महान्) विशालः (असि) (सूर्य) हे चराचर-प्रेरक (बट्) (आदित्य) हे अविनाशिस्वरूप (महान्) पूजनीयः (असि) (महः) महतः (ते) तव (सतः) सत्यस्वरूपस्य (पनस्यते) स्तूयते (अद्धा) सत्यम् (देव) हे दिव्यगुणविशिष्ट (महान्) (असि) ॥

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    पदार्थ

    शब्दार्थ =  ( सूर्य ) = हे चराचर के प्रेरक परमात्मन् आप  ( बण् ) = निश्चय करके  ( महान् ) = महान् है  ( आदित्य ) =  हे अविनाशी परमात्मन्! आप  ( बट् ) = ठीक-ठीक  ( महान् ) = पूजनीय  ( असि ) = हैं  ( ते सतः ) = सत्यस्वरूप आप का  ( महिमा ) = प्रभाव  ( महः ) = बड़ा  ( पनस्यते ) = बखान किया जाता है  ( देव ) = हे दिव्य गुण युक्त प्रभो ! ( अद्धा ) = निश्चय कर के  ( महान् असि ) = आप बड़ों से भी बड़े हैं ।
     

    भावार्थ

    भावार्थ = परमेश्वर को बड़े-से-बड़ा सब महानुभाव ऋषियों ने और सब बड़े-बड़े राजा-महाराजाओं ने माना है। उस महाप्रभु की उपासना करके हम सब को अपने उद्यम से बढ़ना चाहिए ।

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    विषय

    सूर्य-आदित्य

    पदार्थ

    १. हे (सुर्य) = सम्पूर्ण जगत् के उत्पादक प्रभो। आप (वट्) = सचमुच (महान् असि) = महान् हैं। हे (आदित्य) = प्रलय के समय सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को अपने अन्दर ले-लेनेवाले [आदानात] प्रभो! आप (वट्) = सचमुच (महान् असि) = पूजनीय हैं। २. (महः सतः ते) = महान् होने हुए आपकी (महिमा)= महत्ता (पनस्यते) = हमसे स्तुत होती है। हम आपकी महिमा का गायन करते हैं। हे (देव) = सब-कुछ देनेवाले, ज्ञानदीप्त व उपासकों को दीप्त करनेवाले प्रभो! आप (अद्धा) = सचमुच ही (महान् असि) = महान् हैं।

    भावार्थ

    सम्पूर्ण जगत् को उत्पन्न करनेवाले प्रभु 'सूर्य' हैं। अन्त में सारे ब्रह्माण्ड को अपने अन्दर ले-लेनेवाले प्रभु 'आदित्य' हैं। उस महान् प्रभु की महिमा का हम सदा गायन करें।

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    भाषार्थ

    (सूर्य) हे सूर्य! (बट्) सत्य है कि आप (महान् असि) महान् हैं, (आदित्य) हे आदित्य! (बट्) सत्य है कि आप (महान् असि) महान् है। (ते) आप (महः) महान् की ही (महिमा पनस्यते) महिमा सर्वत्र गाई जाती है। (देव) हे दिव्यप्रकाशी (अद्धा) सत्य है कि आप (महान् असि) महान् हैं।

    टिप्पणी

    [बट्=सत्यम् (निघं০ ३.१०)। अद्धा=सत्यम् (निघं০ ३.१०)। परमेश्वर की महिमा के द्योतन के लिए परमेश्वर का स्मरण तीन नामों द्वारा किया गया है। “सूर्य” के उदय होने पर सूर्य से किरणें निकलती हैं। इसी प्रकार परमेश्वर जब सृष्टि-रचना के लिए उद्यत होता है, तब इससे सृष्टि भिन्न-भिन्न रूपों में प्रकट होती है। तथा “आदित्य” शब्द द्वारा प्रलय को सूचित किया है। आदित्य का अर्थ है—“आदत्ते”। अर्थात् परमेश्वर जब प्रलय में सृष्टि का “आदान” करता है तब वह आदित्य है। इसी प्रकार “देव” शब्द द्वारा सृष्टि की स्थिति को सूचित किया है, जब कि सृष्टि का प्रकाश हो रहा है। इस प्रकार सृष्टि की उत्पत्ति, प्रलय, और स्थिति की सूचना, सूर्य आदित्य और देव इन शब्दों द्वारा दी गई है। जगत् की तीनों परिस्थितियाँ परमेश्वर की महिमा को सूचित करती हैं।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Indra Devata

    Meaning

    O Surya, light of life, you are truly great, lord indestructible, you are undoubtedly great. O lord of reality, highest real, great is your glory, adorable. In truth, you are great, refulgent and generous.

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    Translation

    This sun is grand and this shining one is truly grand. Its grandeur is admired by all and verily this wonderful sun is great.

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    Translation

    This sun is grand and this shining one is truly grand. Its grandeur is admired by all and verily this wonderful sun is great.

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    Translation

    O All-Impeller and All-Creator, Thou art truly Great. G God, the Annihilator and Controller of all Creation, Thou art truly Great. O Lord of Everlasting Existence, Thy renown is verily sung to be highly grand. O source of all fine qualities and lights, Thou art really great and mighty.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    मन्त्र ३ कुछ भेद से आचुका है-अ० १३।२।२९। मन्त्र ३, ४ ऋग्वेद में हैं-८।१०१ [सायणभाष्य ९०]।११, १२; यजुर्वेद ३३।३९, ४–०। और सामवेद-उ० ९।१।९ ॥ ३−(बट्) सत्यम् (महान्) विशालः (असि) (सूर्य) हे चराचर-प्रेरक (बट्) (आदित्य) हे अविनाशिस्वरूप (महान्) पूजनीयः (असि) (महः) महतः (ते) तव (सतः) सत्यस्वरूपस्य (पनस्यते) स्तूयते (अद्धा) सत्यम् (देव) हे दिव्यगुणविशिष्ट (महान्) (असि) ॥

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    बंगाली (3)

    পদার্থ

    বণ্মহাঁ অসি সূর্য় বডাদিত্য মহাঁ অসি।

    মহস্তে সতো মহিমা পনস্যতেদ্ধা দেব মহাঁ অসি ।।৫৮।।

    (অথর্ব ২০।৫৮।৩)

    পদার্থঃ হে (সূর্য়ঃ) সম্পূর্ণ জগত উৎপাদক পরমাত্মা! তুমি (বট্) সত্যিই (মহান্ অসি) মহান। হে (আদিত্য) অবিনাশী পরমাত্মা! তুমি (বট্) প্রকৃতপক্ষে (মহান্ অসি) পূজনীয়। (মহঃ সতঃ তে) মহান হওয়ার জন্যই তোমার (মহিমা) মহিমা (পনস্যতে) আমাদের দ্বারা স্তুত হয়। হে (দেব) সবকিছুর দাতা, জ্ঞানদীপ্ত তথা উপাসককে দীপ্তকারী পরমাত্মা! তুমি (অদ্ধা) সত্যিই (মহান্ অসি) মহান।

     

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ পরমাত্মা সমস্ত জগতের উৎপাদক এবং অবিনাশী। তিনিই সমস্ত কিছু দান করেন, তিনিই উপাসকের মাঝে জ্ঞানের দীপ্তি প্রদান করেন। এই মহান পরমাত্মাই আমাদের পূজনীয় ।।৫৮।।

     

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    मन्त्र विषय

    ঈশ্বরবিষয়োপদেশঃ

    भाषार्थ

    (সূর্য) হে চরাচর প্রেরক [পরমেশ্বর] আপনি (বট্) সত্য-সত্যই (মহান্) মহান (অসি) হন, (আদিত্য) হে অবিনাশী ! আপনি (বট্) সত্যিই (মহান্) মহান্ [পূজনীয়] (অসি) হন। (তে) আপনার (মহঃ) মহান্, (সতঃ) সত্যস্বরূপ এর (মহিমা) মহিমা (পনস্যতে) স্তুতি করা হয়, (দেব) হে দিব্য গুণসম্পন্ন ! আপনি (অদ্ধা) নিশ্চিতরূপে (মহান্) মহান্ (অসি) হন ॥৩॥

    भावार्थ

    যে পরমাত্মার মহিমা সৃষ্টির সকল পদার্থ কীর্তন করে, মনুষ্যগণ সেই পরমেশ্বরের উপাসনা করে নিজ উন্নতি সাধন করুক ॥৩॥ মন্ত্র ৩ কিছু ভেদপূর্বক আছে-অ০ ১৩।২।২৯। মন্ত্র ৩, ৪ ঋগ্বেদে আছে-৮।১০১ [সায়ণভাষ্য ৯০]।১১, ১২; যজুর্বেদ ৩৩।৩৯, ৪০। এবং সামবেদ-উ০ ৯।১।৯ ॥

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    भाषार्थ

    (সূর্য) হে সূর্য! (বট্) ইহা সত্য যে, আপনি (মহান্ অসি) মহান্ হন, (আদিত্য) হে আদিত্য! (বট্) সত্য যে, আপনি (মহান্ অসি) মহান্। (তে) আপনার (মহঃ) মহানের/মহানতার (মহিমা পনস্যতে) মহিমা সর্বত্র গান করা হয়। (দেব) হে দিব্যপ্রকাশী (অদ্ধা) সত্য যে, আপনি (মহান্ অসি) মহান্।

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