अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 79/ मन्त्र 2
ऋषिः - शक्तिरथवा वसिष्ठः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - प्रगाथः
सूक्तम् - सूक्त-७९
2
मा नो॒ अज्ञा॑ता वृ॒जना॑ दुरा॒ध्यो॒ माशि॑वासो॒ अव॑ क्रमुः। त्वया॑ व॒यं प्र॒वतः॒ शश्व॑तीर॒पोऽति॑ शूर तरामसि ॥
स्वर सहित पद पाठमा । न॒: । अज्ञा॑ता: । वृ॒जना॑: । दु॒:ऽआ॒ध्य॑: । मा । आशि॑वास: । अव॑ । क्र॒मु॒: । त्वया॑ । व॒यम् । प्र॒ऽवत॑: । शश्व॑ती: । अ॒प: । अति॑ । शू॒र॒ । त॒रा॒म॒सि॒ ॥७९.२॥
स्वर रहित मन्त्र
मा नो अज्ञाता वृजना दुराध्यो माशिवासो अव क्रमुः। त्वया वयं प्रवतः शश्वतीरपोऽति शूर तरामसि ॥
स्वर रहित पद पाठमा । न: । अज्ञाता: । वृजना: । दु:ऽआध्य: । मा । आशिवास: । अव । क्रमु: । त्वया । वयम् । प्रऽवत: । शश्वती: । अप: । अति । शूर । तरामसि ॥७९.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
राजा के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(नः) हमको (मा) न तो (अज्ञाताः) अनजाने हुए (वृजनाः) पापी, (दुराध्यः) दुष्ट बुद्धिवाले, और (मा) न (अशिवासः) अकल्याणकारी लोग (अव क्रमुः) उल्लङ्घन करें। (शूर) हे शूर (त्वया) तेरे साथ (वयम्) हम (प्रवतः) नीचे देशों [खाई, सुरङ्ग आदि] और (शश्वतीः) बढ़ते हुए (अपः) जलों को (अति) लाँघकर (तरामसि) पार हो जावें ॥२॥
भावार्थ
राजा ऐसा प्रबन्ध करे कि गुप्त दुराचारी लोग प्रजा को न सतावें और नौका, यान, विमान आदि से अपने लोग कठिन मार्गों को सुख से पार करें ॥२॥
टिप्पणी
यह मन्त्र ऋग्वेद में है-७।३२।२७; सामवेद-उ० ६।३।६ ॥ २−(मा) निषेधे (नः) अस्मान् (अज्ञाताः) अविदिताः। गुप्ताः (वृजनाः) पापिनः (दुराध्यः) दुर्+आङ्+ध्यै चिन्तायाम्-क्विप्। दुराधियः। दुष्टाभिप्रायाः (मा) निषेधे (अशिवासः) अकल्याणकराः (अव क्रमुः) अवक्रम्यन्तु। उल्लङ्घयन्तु (त्वया) (वयम्) (प्रवतः) निम्नान् देशान् (शश्वतीः) वर्तमाने पृषद्बृहन्महज्जगच्छतृवच्च। उ० २।८४। टुओश्वि गतिवृद्ध्योः-अति, अभ्यासवकारलोपे इकारस्य अकारः। वर्धमानाः। बह्वीः-निघ० ३।१। (अपः) जलानि (अति) अतीत्य (शूर) निर्भय (तरामसि) उल्लङ्घेमहि ॥
विषय
'न पाप, न चिन्ता, न अशुभ'
पदार्थ
१. हे प्रभो! (न:) = हमें अज्ञाता (वृजना) = अज्ञान में हो जानेवाले पाप व (दुराध्य:) = दुःखदायी आधियाँ-मानस चिन्ताएँ (मा अवक्रमः) = मत आक्रान्त करें। (अशिवास:) = अकल्याणकर विचार (न:) = हमें अभिभूत करनेवाले न हों। २. हे (शुर) = शत्रुओं को शीर्ण करनेवाले प्रभो! (वयम) = हम (त्वया) = आपके द्वारा-आपकी शक्ति से शक्ति-सम्पन्न होकर (प्रवतः) = [precipice, decling] इस जीवन-मार्ग की ढलानों तथा (शश्वती: अपः) = सनातन व तीव्र गति से बहते हुए भवसागर के जलों को (अति तरामसि) = पार कर जाएँ। आपके बिना पग-पग पर फिसलने की व बह जाने की आशंका है। आपने ही हमें बचाना है।
भावार्थ
प्रभु-स्मरण करते हुए हम 'पापों, आधियों व अशिवों से आक्रान्त न हों। प्रभु की सहायता से हम ढलानों पर फिसल न जाएँ और विषय-जलों में डूब न जाएँ। पापों, आधियों व अशिवों से ऊपर उठकर हम शान्त जीवनवाले 'शंयु' बनें। शंयु ही अगले सुक्त का ऋषि है -
भाषार्थ
हे परमेश्वर! (अज्ञाता वृजना) अज्ञात-पाप (नः) हम पर (मा अव क्रमुः) न आक्रमण करें। तथा (दुराध्यः) दुश्चिन्ताएँ (अशिवासः) और अशिव संकल्प भी हम पर (मा अवक्रमुः) आक्रमण न करें। (शूर) हे पापों पर पराक्रम-प्रदर्शन करनेवाले परमेश्वर! (त्वया) आप की सहायता द्वारा, (वयम्) हम, (शश्वतीः) शाश्वत काल से (प्रवतः) प्रवाहरूप में बहते हुए (अपः) कर्मगतिरूप नद को(अति तरामसि) पूर्णतया तैर जाएँ।
इंग्लिश (4)
Subject
lndra Devata
Meaning
O Lord Almighty beyond fear, let not the ignorant and unknown, crooked intriguers, evil designers, and malevolent opponents in ambush attack us on way to you. May we, guided, directed and protected by you, cross the universal streams of life rushing down the slopes of time.
Translation
O bold one grant us that no powerful enemy unknown, malevolent, unhollowed tread us to the ground. May we engaged in affort cross over all the acts and their consequences running on from the time long in duration-with your assistance.
Translation
O bold one grant us that no powerful enemy unknown, malevolent, unhallowed tread us to the ground. May we engaged in affort cross over all the acts and their consequences running on from the time long in duration-with your assistance.
Translation
O Mighty Lord or king, the Destroyer of the wicked forces of evil and ignorance, let not the unknown, the violent irresistible and the wicked forces of the foes or evil, overpower us. We, the devotees, being prospered by Thee, may cross all hurdles of actions bringing us for so long, like the waters of the perpetual streams.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
यह मन्त्र ऋग्वेद में है-७।३२।२७; सामवेद-उ० ६।३।६ ॥ २−(मा) निषेधे (नः) अस्मान् (अज्ञाताः) अविदिताः। गुप्ताः (वृजनाः) पापिनः (दुराध्यः) दुर्+आङ्+ध्यै चिन्तायाम्-क्विप्। दुराधियः। दुष्टाभिप्रायाः (मा) निषेधे (अशिवासः) अकल्याणकराः (अव क्रमुः) अवक्रम्यन्तु। उल्लङ्घयन्तु (त्वया) (वयम्) (प्रवतः) निम्नान् देशान् (शश्वतीः) वर्तमाने पृषद्बृहन्महज्जगच्छतृवच्च। उ० २।८४। टुओश्वि गतिवृद्ध्योः-अति, अभ्यासवकारलोपे इकारस्य अकारः। वर्धमानाः। बह्वीः-निघ० ३।१। (अपः) जलानि (अति) अतीत्य (शूर) निर्भय (तरामसि) उल्लङ्घेमहि ॥
बंगाली (2)
मन्त्र विषय
রাজকর্তব্যোপদেশঃ
भाषार्थ
(নঃ) আমাদের (মা) না তো (অজ্ঞাতাঃ) গুপ্ত (বৃজনাঃ) পাপী, (দুরাধ্যঃ) দুষ্ট বুদ্ধিযুক্ত এবং (মা) না তো (অশিবাসঃ) অকল্যাণকারী লোক (অব ক্রমুঃ) উল্লঙ্ঘন করতে পারে। (শূর) হে বীর (ত্বয়া) আপনার সহিত (বয়ম্) আমরা (প্রবতঃ) নিম্নদেশ [গভীর খাল, সুরঙ্গ আদি] এবং (শশ্বতীঃ) বর্ধিষ্ণু (অপঃ) জলকে (অতি) লঙ্ঘন করে (তরামসি) পার হয়ে যাবো ॥২॥
भावार्थ
রাজা এরূপ ব্যবস্থা করুক যাতে, গুপ্ত দুরাচারী লোক প্রজাকে উৎপীড়িত না করে এবং নৌকা, যান, বিমান আদি দ্বারা প্রজাগণ কঠিন মার্গকে অনায়াসে অতিক্রম করে ॥২॥ এই মন্ত্র ঋগ্বেদে আছে-৭।৩২।২৭; সামবেদ-উ০ ৬।৩।৬ ॥
भाषार्थ
হে পরমেশ্বর! (অজ্ঞাতা বৃজনা) অজ্ঞাত-পাপ (নঃ) আমাদের ওপর যেন (মা অব ক্রমুঃ) না আক্রমণ করে। তথা (দুরাধ্যঃ) দুশ্চিন্তা (অশিবাসঃ) এবং অশিব সঙ্কল্পও যেন আমাদের ওপর (মা অবক্রমুঃ) আক্রমণ না করে। (শূর) হে পাপের ওপর পরাক্রম-প্রদর্শক পরমেশ্বর! (ত্বয়া) আপনার সহায়তা দ্বারা, (বয়ম্) আমরা, (শশ্বতীঃ) শাশ্বত কাল থেকে (প্রবতঃ) প্রবাহরূপে বাহিত হয়ে (অপঃ) কর্মগতিরূপ নদ (অতি তরামসি) পূর্ণরূপে পার/অতিক্রম করি।
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