अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 23/ मन्त्र 5
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - चन्द्रमाः, योनिः
छन्दः - उपरिष्टाद्भुरिग्बृहती
सूक्तम् - वीरप्रसूति सूक्त
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कृ॒णोमि॑ ते प्राजाप॒त्यमा योनिं॒ गर्भ॑ एतु ते। वि॒न्दस्व॒ त्वं पु॒त्रं ना॑रि॒ यस्तुभ्यं॒ शमस॒च्छमु॒ तस्मै॒ त्वं भव॑ ॥
स्वर सहित पद पाठकृ॒णोमि॑ । ते॒ । प्रा॒जा॒ऽप॒त्यम् । आ । योनि॑म् । गर्भ॑: । ए॒तु॒ । ते॒ । वि॒न्दस्व॑ । त्वम् । पु॒त्रम् । ना॒रि॒ । य: । तुभ्य॑म् । शम् । अस॑त् । शम् । ऊं॒ इति॑ । तस्मै॑ । त्वम् । भव॑ ॥२३.५॥
स्वर रहित मन्त्र
कृणोमि ते प्राजापत्यमा योनिं गर्भ एतु ते। विन्दस्व त्वं पुत्रं नारि यस्तुभ्यं शमसच्छमु तस्मै त्वं भव ॥
स्वर रहित पद पाठकृणोमि । ते । प्राजाऽपत्यम् । आ । योनिम् । गर्भ: । एतु । ते । विन्दस्व । त्वम् । पुत्रम् । नारि । य: । तुभ्यम् । शम् । असत् । शम् । ऊं इति । तस्मै । त्वम् । भव ॥२३.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
वीर सन्तान उत्पन्न करने के उपदेश।
पदार्थ
(ते) तेरे लिये (प्राजापत्यम्) सन्तानरक्षक कर्म [गर्भाधान, पुंसवनादि संस्कार] (कृणोमि) मैं करता हूँ, (ते) तेरा (गर्भः) गर्भ (योनिम्) गर्भाशय में (आ एतु) आवे। (नारि) हे नर की हितकारिणी ! (त्वम्) तू (पुत्रम्) कुलशोधक सन्तान (विन्दस्व) प्राप्त कर (यः) जो (तुभ्यम्) तुझको (शम्) सुखदायक (असत्) होवे, (उ) और (त्वम्) तू (तस्मै) उसको (शम्) सुखदायक (भव) हो ॥५॥
भावार्थ
सब मनुष्य वैद्यक शास्त्र के अनुसार उचित काल में उचित रीति से अमोघ गर्भाधानादि संस्कार करके सन्तान उत्पन्न करें, जिससे उस सन्तान का जन्म, आप उसको और माता पिता सबको सुखदायक हों ॥५॥
टिप्पणी
५−(कृणोमि) करोमि। (ते) तुभ्यम्। (प्राजापत्यम्) दित्यदित्यादित्यपत्युत्तरपदाण्ण्यः। पा० ४।१।८५। इति प्रजाप्रति-ण्य। प्रजापतेर्गृहस्थस्य कर्म धर्म वा। गर्भाधानपुंसवनादिसंस्कारम्। (नारि) अ० १।११।१। हे नरस्य धर्म्ये। (शम्) सुखहेतुः। (उ) अपि च। अन्यद् गतम्-म० २, ४ ॥
विषय
प्राजापत्य
पदार्थ
१. हे नारि! (ते) = तेरे साथ (प्राजापत्यम्) = ब्रह्म से निर्मित प्रजा की उत्पत्ति करनेवाले कर्म को (कृणोमि) = करता हैं। (ते) = तेरे (योनिम्) = गर्भाशय-स्थान को (गर्भ:) = गर्भ आ एतु-प्राप्त हो। २. हे नारि-स्त्रि! (त्वम्) = तू (पुत्रम्) = पुत्र को (विन्दस्व) = प्राप्त हो, (यः) = जो (पुत्र तुभ्यम्) = तेरे लिए, शम, (असत्) = शान्ति देनेवाला हो (उ) = और तस्मै उस पुत्र के लिए (त्वम्) = तू भी (शम, भव) = शान्ति देनेवाली हो।
भावार्थ
प्राजापत्य कर्म से हमें सन्तान प्राप्त हो। माता सन्तान के लिए व सन्तान माता के लिए शान्ति देनेवाली हो।
भाषार्थ
(ते) तेरे लिए (प्राजापत्यम्) प्रजोत्पादक यज्ञ (कृणोमि) मैं पति करता हूँ, [अभिप्राय है गर्भाधान संस्कार], (गर्भः) गर्भ (ते योनिम्) तेरी योनि को (आ एतु) प्राप्त हो (नारि) हे नारि! (त्वम्) तू (पुत्रम् विन्दस्व) पुत्र को प्राप्त कर, (यः) जो पुत्र कि (तुभ्यम्) तेरे लिए (शम् असत्) सुखदायी हो, (शम् उ) और सुख देनेवाली ही (तस्मै) उस पुत्र के लिए (त्वम्) तू (भव) हो।
टिप्पणी
["आ योनिं गर्भ एतु ते" द्वारा स्पष्ट है कि मन्त्र में गर्भाधान का वर्णन है। इस निमित्त किये जानेवाले यज्ञ को "प्राजापत्य" कहा है। प्रजापति है परमेश्वर। वह समग्र प्राणियों का पति है, रक्षक है। पति भी सन्तानोत्पत्ति कर, सन्तानों का पति अर्थात् रक्षक बनना चाहता है। अतः गर्भाधानसम्बन्धी यज्ञ अर्थात् संस्कार करता है। ताकि गर्भाधान के समय पति-पत्नी की भावनाएँ यज्ञमयी हों।]
विषय
उत्तम सन्तान उत्पन्न करने की विधि।
भावार्थ
हे नारि ! (ते) तेरे लिये मैं (प्राजापत्यम्) प्रजापति का कार्य अर्थात् पुत्रोत्पति या बीजवपन का कार्य (कृणोमि) करता हूं । (योनिम्) योनिस्थान में (गर्भः) गर्भ, गर्भित डिम्ब (आ एतु) आवे । हे नारि ! (त्वम् पुत्रम् विन्दस्व) तू ऐसे पुत्र को प्राप्त कर (यः) जो (तुभ्यं) तुझे (शम् असत्) कल्याण और सुख का देने हारा हो । हे नारि ! (तस्मै) उस पुत्र के लिये (त्वं उ शम् भव) तू भी शान्तिदायक, कल्याणकारिणी और सुखकारी माता हो । पुत्र माता को शान्ति दें, रोग के कारण न हों, जीवन में दुःख न दें, इसी प्रकार पुत्रों को माता कष्ट न दें, स्वयं उसके रोग का कारण न हो और शान्ति दे ।
टिप्पणी
(प्र०) ‘करोमि ते’ हि० गृ० सू० (द्वि०) ‘आगर्भो योनिमेतु ते’ इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। चन्द्रमा उत योनिर्देवता। ५ उपरिष्टाद-भुरिग्-बृहती । ६ स्कन्धोग्रीवी बृहती। १-४ अनुष्टुभः। षडृचं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Fertility, Prajapatyam
Meaning
O woman, I create fertility and motherly potential for you in your system. Let the living embryo be in your womb. Be blest with a son who may be a boon for peace and joy for you, and for him, you too be the mother of peace and joy for his soul.
Translation
I perform an operation on you facilitating child-birth. May an embryo come to your womb. O woman, may you get a son, who will be a bliss to you. Let you also be a bliss to him.
Translation
O’ Woman; I perform the task of bringing progeny and let embryo enter into your womb. O woman obtain a son who bring happiness to you and you be a blessing to him.
Translation
I give the power to bear a child: within thee pass the germ of life! Obtain a son, O woman, who shall be a blessing unto thee. Be thou a blessing unto him.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
५−(कृणोमि) करोमि। (ते) तुभ्यम्। (प्राजापत्यम्) दित्यदित्यादित्यपत्युत्तरपदाण्ण्यः। पा० ४।१।८५। इति प्रजाप्रति-ण्य। प्रजापतेर्गृहस्थस्य कर्म धर्म वा। गर्भाधानपुंसवनादिसंस्कारम्। (नारि) अ० १।११।१। हे नरस्य धर्म्ये। (शम्) सुखहेतुः। (उ) अपि च। अन्यद् गतम्-म० २, ४ ॥
बंगाली (2)
भाषार्थ
(তে) তোমার জন্য (প্রজাপত্যম্) প্রজোৎপাদক যজ্ঞ (কৃণোমি) আমি [পতি] করি, [অভিপ্রায় হলো গর্ভাধান সংস্কার], (গর্ভঃ) গর্ভ (তে যোনিম) তোমার যোনিকে (আ এতু) প্রাপ্ত হোক। (নারি) হে নারী! (ত্বম্) তুমি (পুত্রম্ বিন্দস্ব) পুত্র প্রাপ্ত করো, (যঃ) যে পুত্র (তুভ্যম্) তোমার জন্য (শম্ অসৎ) সুখদায়ী হবে, (শম্ উ) এবং সুখদায়ী ই (তস্মৈ) সেই পুত্রের জন্য (ত্বম্) তুমি (ভব) হবে/হও।
टिप्पणी
["আ যোনিং গর্ভ এতু তে" দ্বারা এটা স্পষ্ট যে, মন্ত্রে গর্ভাধান-এর বর্ণনা রয়েছে। এরজন্য যে যজ্ঞ করা হয় সেই যজ্ঞকে বলা হয়েছে "প্রজাপত্য"। প্রজাপতি হলেন পরমেশ্বর। তিনি সমস্ত প্রাণীর পতি, রক্ষক। পতিও সন্তানোৎপত্তি করে, সন্তানদের পতি অর্থাৎ রক্ষক হতে চায়। অতঃ, গর্ভাধানসম্বন্ধী যজ্ঞ অর্থাৎ সংস্কার করে। যাতে গর্ভধারণের সময় পতি-পত্নীর ভাবনাসমূহ যজ্ঞময়ী হয়।]
मन्त्र विषय
বীরসন্তানোৎপাদনোপদেশঃ
भाषार्थ
(তে) তোমার জন্য (প্রাজাপত্যম্) সন্তান রক্ষক কর্ম [গর্ভাধান, পুংসবনাদি সংস্কার] (কৃণোমি) আমি করি, (তে) তোমার (গর্ভঃ) গর্ভ (যোনিম্) গর্ভাশয়ে (আ এতু) আসুক। (নারি) হে নরের হিতকারিণী ! (ত্বম্) তুমি (পুত্রম্) কুলশোধক সন্তান (বিন্দস্ব) প্রাপ্ত করো (যঃ) যে (তুভ্যম্) তোমার জন্য (শম্) সুখদায়ক (অসৎ) হবে, (উ) এবং (ত্বম্) তুমি (তস্মৈ) তাঁর জন্য (শম্) সুখদায়ক (ভব) হও ॥৫॥
भावार्थ
সকল মনুষ্য বৈদ্যক শাস্ত্রের অনুসারে সঠিক সময়ে যথারীতিতে অমোঘ গর্ভাধানাদি সংস্কার দ্বারা সন্তান উৎপন্ন করুক, যাতে সেই সন্তানের জন্ম, তাঁর মাতা পিতা সকলের জন্য সুখদায়ক হয় ॥৫॥
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