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अथर्ववेद के काण्ड - 3 के सूक्त 26 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 26/ मन्त्र 6
    ऋषिः - अथर्वा देवता - बृहस्पतियुक्ता अवस्वन्तः छन्दः - जगती सूक्तम् - दिक्षु आत्मारक्षा सूक्त
    4

    ये॒स्यां स्थोर्ध्वायां॑ दि॒श्यव॑स्वन्तो॒ नाम॑ दे॒वास्तेषां॑ वो॒ बृह॒स्पति॒रिष॑वः। ते नो॑ मृडत॒ ते नोऽधि॑ ब्रूत॒ तेभ्यो॑ वो॒ नम॒स्तेभ्यो॑ वः॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । अ॒स्याम् । स्थ । ऊ॒र्घ्वाया॑म् । दि॒शि । अव॑स्वन्त: । नाम॑ । दे॒वा: । तेषा॑म् । व॒: । बृह॒स्पति॑: । इष॑व: । ते । न॒: । मृ॒ड॒त॒ । ते । न॒: । अधि॑ । ब्रू॒त॒ । तेभ्य॑: । व॒: । नम॑: । तेभ्य॑: । व॒: । स्वाहा॑ ॥२६.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    येस्यां स्थोर्ध्वायां दिश्यवस्वन्तो नाम देवास्तेषां वो बृहस्पतिरिषवः। ते नो मृडत ते नोऽधि ब्रूत तेभ्यो वो नमस्तेभ्यो वः स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । अस्याम् । स्थ । ऊर्घ्वायाम् । दिशि । अवस्वन्त: । नाम । देवा: । तेषाम् । व: । बृहस्पति: । इषव: । ते । न: । मृडत । ते । न: । अधि । ब्रूत । तेभ्य: । व: । नम: । तेभ्य: । व: । स्वाहा ॥२६.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 26; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    मारू गीत।

    पदार्थ

    (ये) जो तुम (अस्याम्) इस (ऊर्ध्वायाम्) ऊपरवाली (दिशि) दिशा में (अवस्वन्तः) रक्षा के अधिकारी (नाम) नाम (देवाः) विजय चाहनेवाले वीर (स्थ) हो, (तेषाम् वः) उन तुम्हारा (बृहस्पतिः) बड़ों का स्वामी, मुख्य सेनापति (इषवः) तीर हैं, (ते) वे तुम (नः) हमें (मृडत) सुखी करो, (ते) वे तुम (नः) हमारे लिए (अधि) अधिकारपूर्वक (ब्रूत) बोले, (तेभ्यः वः) उन तुम्हारे लिए (नमः) सत्कार वा अन्न होवे, (तेभ्यः वः) उन तुम्हारे लिए (स्वाहा) सुन्दर वाणी [प्रशंसा] होवे ॥६॥

    भावार्थ

    बड़े साहसी रक्षाधिकारी, युद्ध विद्या में कुशल योधा लोग ऊँचे स्थान पर रहकर मुख्य सेनापति की सहायता से वैरियों को जीतकर अपने राजा की दुहाई वा जय घोषणा करें, और राजा सत्कार पूर्वक ऊँचे-२ अधिकार देकर उनका उत्साह बढ़ावे ॥६॥

    टिप्पणी

    ६−ऊर्ध्वायाम्। उद् उपरि ध्वन्यते। ध्वन शब्दे ड। आदेरूरादेशः। टाप् उपरि वर्त्तमानायाम् (अवस्वन्तः)। अव रक्षणगतिस्पृहादिषु-असुन्, मतुप् च। अवस्वन्तः। रक्षाधिकरिणः (बृहस्पतिः) अ० १।८।२। बृहतां महतां योद्धृणां पतिः। मुख्यसेनापतिः। अन्यद् गतम्-म० १ ॥

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    विषय

    ऊर्वायां दिशि अवस्वन्तो नाम देवाः

    पदार्थ

    १. (ये) = जो (अस्याम्) = इस (ऊर्खायाम्) = उन्नति की चरमसीमारूप ऊर्ध्वा (दिशि) = दिक् में (अवस्वन्तः नाम) = 'अपना पूर्णतया रक्षण करनेवाले' अवस्वान् नामक (देवाः स्थ) = देव हैं। जो अपना पूर्ण रक्षण करते हैं, वे ही ऊर्वा दिक् के अधिपति बनते हैं-उन्नति की पराकाष्ठा तक पहुँच पाते हैं। (तेषां व:) = उन आपका (बृहस्पतिः इषवः) = ज्ञान का स्वामी प्रभु ही प्रेरक है। हृदयस्थ प्रभु से प्रेरणा प्राप्त करते हुए ये प्रभु के समान ही बनने का प्रयत्न करते हैं। वस्तुत: ज्ञान ही हमारा रक्षण करता है। ज्ञानाग्नि में सब बुराइयों भस्म हो जाती हैं। (ते नः मृडत) = वे अवस्वान् नामक देव हमपर अनुग्रह करें। (ते न: अधिबूत) = वे हमारे लिए आधिक्येन उपदेश देनेवाले हों (तेभ्य: व: नम:) = उन आपके लिए नमस्कार हो। (तेभ्यः वः स्वाहा) = उन आपके लिए हमारा समर्पण हो।

    भावार्थ

    हम ज्ञान के द्वारा अपना पूर्णतया रक्षण करते हुए ऊर्ध्वा दिक् के अधिपति बनें। अगले सूक्त का ऋषि भी 'अथर्वा' ही है।

     

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    भाषार्थ

    (ये) जो (अस्याम् ऊर्ध्वायाम् दिशि) इस ऊर्ध्व दिशा में (अवस्वन्तः) रक्षा करनेवाले, (नाम) अर्थात् इस नामवाले, (देवा: स्थ) विजिगीषु सैनिक तुम हो, (तेषाम् वः) उन तुम्हारे (इषवः) इषु (बृहस्पति:) बृहद्-ब्रह्माण्ड-का पति परमेश्वर है। (ते) वे तुम (नः मृडत) हमें सुखी करो, (ते) वे तुम (नः) हमें (अधिबूत) राष्ट्र रक्षा के सम्बन्ध में अधिक ज्ञान का कथन करो, (तेभ्यः वः) उन तुम के लिए (नमः) नमस्कार हो, (तेभ्यः वः) उन तुम के लिए (स्वाहा) हमारी सम्पत्तियों की आहुति हो, प्रदान हो। (स्वाहा) उनकी रक्षा के लिए सर्वस्व समर्पण हो।

    टिप्पणी

    [ऊर्ध्वादिशा द्युलोक की ओर अपरिमित परिमाण में विस्तृत है, अत: उसका पति बृहस्पति कहा है, जबकि "बृहतामपि-पति" है। वह ही इषुरूप होकर सबकी रक्षा कर रहा है। अवस्वन्तः= अवनं रक्षणं तद्वन्तः (सायण)]

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    विषय

    प्रबल शक्तिधारी देव के छः रूप ।

    भावार्थ

    हे (देवाः) देवगण ! (ये देवाः) तुम जो देवगण (अस्यां ऊर्ध्वायां स्थ) इस ऊर्ध्व दिशा में हो वे (अवस्वन्तः) बड़े भारी पालक हो। आप लोगों के (इषवः) प्रहार का साधन भी (बृहस्पतिः) महान् ब्रह्माण्ड का पालक है। वे आप हमारी रक्षा करें। हमें उपदेश करें और हमारा आप को नमस्कार है और आप का हम स्वागत करते हैं। इस सूक्त का रहस्य अगले सूक्त में स्पष्ट करेंगे।

    टिप्पणी

    अन्ते ‘इति रक्षामन्त्रम्’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। रुद्रः अग्न्यादयो वा बहवो देवताः। १–६ पञ्चपदा विपरीतपादलक्ष्म्या त्रिष्टुप। १ त्रिष्टुप्। २, ५, ६ जगती। ३, ४ भुरिग्। षडृर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Divine Protection, and Progress

    Meaning

    O Devas who abide on the heights above in the upper quarters, your name, action and comprehensive essence being ‘Avasvantah’, all-over protectors as total cover, your weapon and power being ‘Brhaspati’, supreme commander, pray be kind and gracious to us, speak to us for total security. Honour and salutations to you in homage in truth of thought, word and deed!

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    Translation

    O enlightened ones, defenders (Avasvantah) by name, who are posted in the zenith region (ūrdhava) the Lord supreme (brhaspati) is your arrows. As such may you grant us happiness; may you speak to us encouraging words. Our homage be to you. To you as such we hereby dedicate.

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    Translation

    Those wonderful physical forces which dwell in the direction above, who bear the name of Avasvantah, conducive to affection whose arrows are Brihaspatih, the cloud, be etc.

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    Translation

    Ye learned persons who dwell in this upmost region, Nourishers by name, Commander-in-Chief forms your arrow. Be kind and gracious unto us and instruct us. To you be reverence, to you be welcome.

    Footnote

    The connection of six devas with six regions is not so clear to me.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−ऊर्ध्वायाम्। उद् उपरि ध्वन्यते। ध्वन शब्दे ड। आदेरूरादेशः। टाप् उपरि वर्त्तमानायाम् (अवस्वन्तः)। अव रक्षणगतिस्पृहादिषु-असुन्, मतुप् च। अवस्वन्तः। रक्षाधिकरिणः (बृहस्पतिः) अ० १।८।२। बृहतां महतां योद्धृणां पतिः। मुख्यसेनापतिः। अन्यद् गतम्-म० १ ॥

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    हिंगलिश (1)

    Subject

    Below us under ground ऊर्ध्वा –हमारे नीचे की दिशा में

    Word Meaning

    पृथ्वी पर उन्नति के शिखर पर पहुंचने के लिए सब दिशाओं की परिस्थितियों से सचेत रह कर ज्ञान और उत्तम वाणी के द्वारा बृहस्पति जीवन में उन्नति का साधन होता है. बृहस्पति हमारे सुख और आनंद की रक्षा करता है. उस के लिए हम बृहस्पति को नमन करते हैं. विद्वत्जन हमरे सुख और हर्ष केलिए सदैव ज्ञान का उपदेश करें और हम सदैव अग्निहोत्र द्वारा प्रगति करें . यहां पर अग्निहोत्र का प्रसिद्ध मंत्र:- यां मेधां देवगणा: पितरश्चोपासते | तया मामद्य मेधयाsग्ने मेधाविनं कुरु स्वाहा || भी इसी उपलक्ष से देखा जाता है. The strategies that provide for our rising high in life are keen awareness about what is happening about us in all the directions. For this Brihaspati बृहस्पति knowledge and appropriate articulation are the enablers. Brihaspati provides for our comforts and happiness. We should always get wise education and counsel to this effect. We express our obeisance for this and dedicate Agnihotras for this. Here to the same effect reference can seen in very important Agnihotra mantra: - यां मेधां देवगणा: पितरश्चोपासते | तया मामद्य मेधयाsग्ने मेधाविनं कुरु स्वाहा ||

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    बंगाली (2)

    भाषार्थ

    (যে) যে (অস্যাম্ ঊর্ধ্বায়াম্ দিশি) এই উর্ধ্ব দিশায় (অবস্বন্তঃ) রক্ষাকারী, (নাম) অর্থাৎ এই নামের, (দেবাঃ স্থ) বিজিগীষু সৈনিক তোমরা হও, (তেষাম বঃ) সেই তোমাদের (ইষবঃ) তীর হলো (বৃহস্পতিঃ) বৃহদ্-ব্রহ্মাণ্ডের-পতি পরমেশ্বর। (তে) সেই তোমরা (নঃ মৃডত) আমাদের সুখী করো, (তে) সেই তোমরা (নঃ) আমাদের (অভিব্রূত) রাষ্ট্র-রক্ষা সম্বন্ধে অধিক জ্ঞানের কথন করো, (তেভ্যঃ বঃ) সেই তোমাদের জন্য (নমঃ) নমস্কার। (তেভ্যঃ বঃ) সেই তোমাদের জন্য (স্বাহা) আমাদের সম্পত্তির আহুতি হোক, প্রদান হোক।

    टिप्पणी

    [উর্ধ্বদিক দ্যুলোকের দিকে অপরিমিত পরিমাণে বিস্তৃত রয়েছে, অতঃ তার স্বামী বৃহস্পতি বলা হয়েছে, যিনি "বৃহতামপি-পতি"। তিনিই বাণরূপ হয়ে সকলকে রক্ষা করছেন। অবস্বন্তঃ = অবনং রক্ষণং তদ্বন্তঃ (সায়ণ)।]

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    मन्त्र विषय

    যুদ্ধগীতিঃ

    भाषार्थ

    (যে) যে তোমরা (অস্যাম্) এই (ঊর্ধ্বায়াম্) ঊর্ধ্ব (দিশি) দিশায় (অবস্বন্তঃ) রক্ষার অধিকারী (নাম) নাম (দেবাঃ) বিজয় অভিলাষী বীর (স্থ) হও, (তেষাম্ বঃ) সেই তোমাদের (বৃহস্পতিঃ) বৃহৎ-মহৎদের স্বামী, মুখ্য সেনাপতি হলো (ইষবঃ) তীর, (তে) সেই তোমরা (নঃ) আমাদের (মৃডত) সুখী করো, (তে) সেই তোমরা (নঃ) আমাদের জন্য (অধি) অধিকার পূর্বক (ব্রূত) বলো, (তেভ্যঃ বঃ) সেই তোমাদের জন্য (নমঃ) সৎকার বা অন্ন হোক, (তেভ্যঃ বঃ) সেই তোমাদের জন্য (স্বাহা) সুন্দর বাণী [প্রশংসা] হোক ॥৬॥

    भावार्थ

    অত্যন্ত সাহসী রক্ষাধিকারী, যুদ্ধ বিদ্যায় কুশল যোদ্ধারা ঊঁচু স্থানে থেকে মুখ্য সেনাপতির সহায়তায় শত্রুদের জয় করে নিজের রাজার জয়জয়কার ঘোষণা করুক, এবং রাজা সৎকারপূর্বক উচ্চ অধিকার প্রদান করে তাঁদের উৎসাহ বৃদ্ধি করুক ॥৬।।

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