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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 107 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 107/ मन्त्र 2
    ऋषिः - शन्ताति देवता - विश्वजित् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - विश्वजित् सूक्त
    1

    त्राय॑माणे विश्व॒जिते॑ मा॒ परि॑ देहि। विश्व॑जिद्द्वि॒पाच्च॒ सर्वं॑ नो॒ रक्ष॒ चतु॑ष्पा॒द्यच्च॑ नः॒ स्वम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्राय॑माणे । वि॒श्व॒ऽजिते॑। मा॒ । परि॑ । दे॒हि॒ । विश्व॑ऽजित् । द्वि॒ऽपात् । च॒ । सर्व॑म् । न॒: । रक्ष॑ । चतु॑:ऽपात् । यत् । च॒ । न॒: । स्वम् ॥१०७.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्रायमाणे विश्वजिते मा परि देहि। विश्वजिद्द्विपाच्च सर्वं नो रक्ष चतुष्पाद्यच्च नः स्वम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्रायमाणे । विश्वऽजिते। मा । परि । देहि । विश्वऽजित् । द्विऽपात् । च । सर्वम् । न: । रक्ष । चतु:ऽपात् । यत् । च । न: । स्वम् ॥१०७.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 107; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सब सुख की प्राप्ति के लिये उपदेश।

    पदार्थ

    (त्रायमाणे) हे त्रायमाणा, रक्षा करनेवाली ! (विश्वजिते) संसार के जीतनेवाले परमेश्वर को (मा) मुझे (परिदेहि) सौंप। (विश्वजित्) हे संसार के जीतनेवाले परमेश्वर (नः) हमारे (सर्वम्) सब... म० १ ॥२॥

    भावार्थ

    मनुष्य उत्तम घर और औषध के सेवन से परमेश्वर की आज्ञा पालन करके सब पदार्थों की यथावत् रक्षा करें ॥२॥

    टिप्पणी

    २−यथा व्याख्यातम्−म० १ ॥

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    विषय

    विश्वजिते

    पदार्थ

    १.हे (त्रायमाणे) = रक्षा करनेवाली शाले। तू (मा) = मुझे (विश्वजिते) = सम्पूर्ण संसार का विजय करनेवाले प्रभु के लिए (परिदेहि) = अर्पित कर। तुझमें निवास करता हुआ मैं प्रभु का स्मरण करनेवाला बनूं। २. हे (विश्वजित्) = संसार के विजेता प्रभो! (न:) = हमारे (सर्वम्) = सब (द्विपात्) = दो पाँवोवाले मनुष्यों तथा (चतुष्यात्) = चार पाँववाले गवादि पशुओं का (रक्ष) = रक्षण कीजिए, (च) = और (यत्) =-जो (नः) = हमारा (स्वम्) = धन है, उसका भी रक्षण कीजिए।

    भावार्थ

    सुरक्षित घरों में निवास करते हुए हम प्रभु का स्मरण करें। प्रभु हमारे मनुष्यों, पशुओं व धनों को सुरक्षित करें।

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    भाषार्थ

    (त्रायमाणे) हे पालक शक्ति ! (मा) मुझे (विश्वजिते) विश्वविजयी परमेश्वर के प्रति (परिदेहि) प्रदान कर, सुपुर्द कर, समर्पित कर। (विश्वजित्) हे विश्वविजयी परमेश्वर ! (शेष पूर्ववत्, मन्त्र १)

    टिप्पणी

    [धन अन्न आदि के हो जाने पर मनुष्य परिपालित हो कर प्रायः निज पालक परमेश्वर को भूल जाते हैं, उस से पराङ्मुख हो जाते हैं। अतः मन्त्र में प्रार्थना की गई है कि परमेश्वरप्रद पालक शक्तियां हमें विश्वजित् के आधीन ही रखे, उस से विमुख न होने दे।]

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    विषय

    विश्वविजयिनी राजशक्ति का वर्णन।

    भावार्थ

    हे (त्रायमाणे) राजा की रक्षाकारिणी शक्ति! तू (मा) मुझे, मुझ प्रजाको (विश्वजिते परिदेहि) विश्वजित् राजा के अधीन रख और इस नाते हे (विश्वजित्) सर्वविजयी राजन् ! तू (नः) हमारे (द्विपात् च) दोपाये, भृत्य आदि और (चतुष्पात्) चौपाये पशु (यत् च नः स्वम्) और जो हमारा धन है उस (सर्व रक्ष) सबकी रक्षा कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शंतातिर्ऋषिः। विश्वजित् देवता। अनुष्टुभः। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Of Safety and Security

    Meaning

    O Trayamana, divine power of cosmic protection and promotion, deliver me unto Vishvajit, divine spirit of courage and universal victory. O Vishvajit, divine spirit of courage and universal victory at heart, protect all our people, all our animals, and all that is our wealth, power and excellence in the world.

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    Translation

    O rescuing power, entrust me to the conqueror of all O conqueror of all, may you protect all our bipeds, and quadrupeds which are our wealth.

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    Translation

    Let this Trayamans hand over me to Vishvajit, the All-prevailing God or the Vishvajit yajna and let this Vishvajit protect all our biped and quadrupeds and whatever is thrown as our own Vitality.

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    Translation

    O protecting power, entrust me to the All-conquering God. O All-conquering God, guard all our men, guard all our quadrupeds, and our wealth!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−यथा व्याख्यातम्−म० १ ॥

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