अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 15/ मन्त्र 2
ऋषिः - उद्दालक
देवता - वनस्पतिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - शत्रुनिवारण सूक्त
1
सब॑न्धु॒श्चास॑बन्धुश्च॒ यो अ॒स्माँ अ॑भि॒दास॑ति। तेषां॒ सा वृ॒क्षाणा॑मिवा॒हं भू॑यासमुत्त॒मः ॥
स्वर सहित पद पाठसऽब॑न्धु: । च॒ । अस॑बन्धु: । च॒ । य: । अ॒स्मान् । अ॒भि॒ऽदास॑ति । तेषा॑म् । सा । वृ॒क्षाणा॑म्ऽइव । अ॒हम् । भू॒या॒स॒म् । उ॒त्ऽत॒म: ॥१५.२॥
स्वर रहित मन्त्र
सबन्धुश्चासबन्धुश्च यो अस्माँ अभिदासति। तेषां सा वृक्षाणामिवाहं भूयासमुत्तमः ॥
स्वर रहित पद पाठसऽबन्धु: । च । असबन्धु: । च । य: । अस्मान् । अभिऽदासति । तेषाम् । सा । वृक्षाणाम्ऽइव । अहम् । भूयासम् । उत्ऽतम: ॥१५.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
उत्तम गुणों की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थ
(यः) जो शत्रुसमूह (सबन्धुः) बन्धुओं सहित (च च) और (असबन्धुः) बिना बन्धुओं के होकर (अस्मान्) हमें (अभिदासति) सतावे। (वृक्षाणाम्) श्रेष्ठ पदार्थों में (सा इव) लक्ष्मी के समान, (अहम्) मैं (तेषाम्) उनके बीच (उत्तमः) उत्तम (भूयासम्) हो जाऊँ ॥२॥
भावार्थ
मनुष्य अपने सब प्रकार की उलझनें हटाकर विद्या सुवर्ण आदि उत्तम पदार्थ प्राप्त करे ॥२॥
टिप्पणी
२−(सबन्धुः) बन्धुभिः सहितः (च च) समुच्चये (असबन्धुः) समानबन्धुरहितः (यः) शत्रुसमूहः (अस्मान्) धार्मिकान् (अभिदासति) अ० ४।१९।५। अभितो हिनस्ति (तेषाम्) शत्रूणाम् (सा) स्यति दारिद्र्यम्। षो अन्तकर्मणि ड, टाप्। लक्ष्मीः (वृक्षाणाम्) वरणीयानां पदार्थानाम् (इव) यथा (अहम्) (भूयासम्) (उत्तमः) श्रेष्ठः ॥
विषय
सबन्धुश्च, असबन्धुश्च
पदार्थ
१. (सबन्धुः च) = समान बन्धुत्ववाला (च असबन्धुः) = अथवा (बन्धुत्वरहित यः) = जो कोई भी (अस्मान्) = हमें (अभिदासति) = उपक्षीण करना चाहता है, (वृक्षाणाम्) = दोष-छेदक उपासकों में सा (इव) = जैसे ब्रह्मौषधि सर्वोत्तम है, उसी प्रकार (तेषाम्) = उनमें (अहम्) = मैं (उत्तमः भूयासम्) = उत्तम होऊँ। किसी भी बन्धु व अबन्धु का मैं शिकार न हो जाऊँ।
भावार्थ
ब्रह्मौषधि का सेवन करता हुआ में किसी भी शत्रु का शिकार न बनूँ और उत्तम बना रहूँ।
भाषार्थ
(सबन्धुः) समान नाभिबन्धन वाला, (च) और (असबन्धुः) परकीय नाभिबन्धन वाला (यः) जो (च) भी (अस्मान्) हमें (अभि दासति) उपलक्ष्य करके हमारा उपक्षय करता है, (इव) इसी प्रकार ( तेषाम् ) उनमें (अहम्) मैं (उत्तमः) उत्कृष्ट शक्ति वाला ( भूयासम्) हो जाऊं, (सा) वह ओषधि जैसे (वृक्षाणाम् ) वृक्षों में उत्तम है ।
विषय
सर्वोत्तम होने की साधना।
भावार्थ
(स बन्धुः च) हमारा बन्धु और (अबन्धुः च) वह जो हमारा सम्बन्धी नहीं है (यः) जो कोई भी (अस्मान्) हमें (अभिदासति) विनाश करना चाहता है, हमसे द्वेष बुद्धि करता है (वृक्षाणां सा इव) वृक्षों में से जिस प्रकार ओषधि उत्तम है और देहधारियों में जैसे वह ब्रह्मोषधि उत्तम है, उसी प्रकार (तेषां) उन सम्बन्धी और असम्बन्धी लोगों में (अहम्) मैं उत्तम (भूयासम्) हो जाऊं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
उद्दालक ऋषिः। वनस्पतिर्देवता। अनुष्टुप्। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
To be the Best
Meaning
Whoever, whether with friends and brothers and relatives or without friends and brothers and relatives, wants to boss over us, let me be the highest over them like the soma herb which is the best even over trees.
Translation
Whosoever, whether with kinsmen or without kinsmen, want to enslave us, among them, may I become uppermost, just as that herb is among the trees.
Translation
May I be excellent of all whoever seeks to injure me with his kinsmen or without kinsmen like the plant Balasa which is the most excellent of all trees.
Translation
Whoever seeks to injure us, be he our relative or not; may I be uppermost of all of them, just as this plant is the queen of trees.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(सबन्धुः) बन्धुभिः सहितः (च च) समुच्चये (असबन्धुः) समानबन्धुरहितः (यः) शत्रुसमूहः (अस्मान्) धार्मिकान् (अभिदासति) अ० ४।१९।५। अभितो हिनस्ति (तेषाम्) शत्रूणाम् (सा) स्यति दारिद्र्यम्। षो अन्तकर्मणि ड, टाप्। लक्ष्मीः (वृक्षाणाम्) वरणीयानां पदार्थानाम् (इव) यथा (अहम्) (भूयासम्) (उत्तमः) श्रेष्ठः ॥
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