अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 2
ऋषिः - अथर्वा
देवता - द्यावापथिवी, ग्रावा, सोमः, सरस्वती, अग्निः
छन्दः - जगती
सूक्तम् - आत्मगोपन सूक्त
1
पा॒तां नो॒ द्यावा॑पृथि॒वी अ॒भिष्ट॑ये॒ पातु॒ ग्रावा॒ पातु॒ सोमो॑ नो॒ अंह॑सः। पातु॑ नो दे॒वी सु॒भगा॒ सर॑स्वती॒ पात्व॒ग्निः शि॒वा ये अ॑स्य पा॒यवः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठपा॒ताम् ।न॒: । द्यावा॑पृथि॒वी इति॑ । अ॒भिष्ट॑ये । पातु॑ । ग्रावा॑ । पातु॑ । सोम॑: । न॒: । अंह॑स: । पातु॑ । न॒: । दे॒वी । सु॒ऽभगा॑ । सर॑स्वती । पातु॑ । अ॒ग्नि: । शि॒वा: । ये । अ॒स्य॒ । पा॒यव॑: ॥३.२॥
स्वर रहित मन्त्र
पातां नो द्यावापृथिवी अभिष्टये पातु ग्रावा पातु सोमो नो अंहसः। पातु नो देवी सुभगा सरस्वती पात्वग्निः शिवा ये अस्य पायवः ॥
स्वर रहित पद पाठपाताम् ।न: । द्यावापृथिवी इति । अभिष्टये । पातु । ग्रावा । पातु । सोम: । न: । अंहस: । पातु । न: । देवी । सुऽभगा । सरस्वती । पातु । अग्नि: । शिवा: । ये । अस्य । पायव: ॥३.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
वृद्धि करने के लिये उपदेश।
पदार्थ
(द्यावापृथिवी) सूर्य और पृथिवी (नः) हमें (अभिष्टये) अभीष्ट सिद्धि के लिये (पाताम्) बचावें (ग्रावा) मेघ (नः) हमें (अंहसः) कष्ट से (पातु) बचावे और (सोमः) जल (पातु) बचावे। (देवी) व्यवहारवाली, (सुभगा) सुन्दर ऐश्वर्य देनेवाली (सरस्वती) विज्ञानवाली वेदविद्या (नः) हमें (पातु) बचावे (अग्निः) अग्नि विद्या (पातु) बचावे और (ये) जो (अस्य) इसके (शिवाः) सुखदायक (पायवः) रक्षक गुण हैं [वे भी बचावें] ॥२॥
भावार्थ
मनुष्य सूर्य पृथिवी आदि और वेद द्वारा अनेक शिल्प आदि पदार्थविद्यायें सिद्ध करके आनन्द भोगें ॥२॥
टिप्पणी
२−(पाताम्) रक्षताम् (नः) अस्मान् (द्यावापृथिवी) सूर्यभूमी (अभिष्टये) अ० १।६।१। पररूपम्। अभीष्टसिद्धये (पातु) रक्षतु (ग्रावा) अ० ३।१०।५। मेघः−निघ० १।१०। (पातु) (सोमः) जलम् (नः) (अंहसः) अ० २।४।३। कष्टात् (पातु) (नः) (देवी) व्यवहारिणी (सुभगा) शोभनानि भगानि धनानि यस्याः सा सुष्ठ्वैश्वर्यप्रदा (सरस्वती) विज्ञानवती वेदविद्या (पातु) (अग्निः) अग्निविद्या (शिवाः) सुखकराः (ये) (अस्य) अग्नेः (पायवः) कृवापा०। उ० १।१। इति पा रक्षणेण् युक् च। रक्षका गुणाः ॥
विषय
द्यावापृथिवी अग्निः
पदार्थ
१. (द्यावापृथिवी) = धुलोक तथा पृथिवीलोक (न:) = हमें (अभिष्टये) = इष्ट-प्राप्ति के लिए (पाताम्) = रक्षित करें। अध्यात्म में ज्ञानसूर्य से दीस मस्तिष्क 'छौ' है तथा पाषाण-तुल्य दृढ़ शरीर 'पृथिवी' है। ये दोनों हमारे लिए इष्ट-साधक हों। (ग्रावा पातु) = उपदेष्टा आर्चाय हमारा रक्षण करे। आचार्य से दिये गये निर्देश हमारा कल्याण करें। (सोमः) = शरीर में सुरक्षित सोम (न:) = हमें अंहसः पातु-[Trouble, anxiety, care] कष्ट ब चिन्ता से रक्षित करें। २. (सुभगा) = उत्तम ज्ञानेश्वर्यवाली देवी (सरस्वती) = प्रकाशमयी, सब व्यवहारों को सिद्ध करनेवाली-विद्या की अधिष्ठात्री देवता (नः पातु) = हमें रक्षित करे। हम सरस्वती की आराधना करते हुए पाप आदि में प्रवृत्त न हों। अन्ततः वह (अग्नि:) = अग्रणी प्रभु (पातु) = हमें रक्षित करे। ये अस्य पायवः जो प्रभु के रक्षण हैं, वे( शिवा) = हमारा कल्याण करनेवाले हैं।
भावार्थ
हमारा मस्तिष्क ज्ञान-दीप्त और शरीर दृढ़ हो। उत्तम आचार्यों के निर्देश हमें प्राप्त हों। हम शरीर में सोम का रक्षण करें, सरस्वती की अराधना करें और प्रभु की उपासना में प्रवृत्त हों।
भाषार्थ
(अभिष्टये) अभीष्ट फल की प्राप्ति के लिये (द्यावापृथिवी) द्युलोक और पृथिवी (नः) हमारी (पाताम्) रक्षा करें, (ग्रावा) सोम ओषधि के पीसने की शिला (नः) हमारी (अंहसः) हत्या से (पातु) रक्षा करे, और (सोमः) सोम ओषधि (पातु) हत्या से रक्षा करे। (सुभगा) उत्तम भगों से सम्पन्ना (देवी सरस्वती) दिव्या ज्ञानवती वेदवाणी (नः पातु) हमारो रक्षा करे, (अग्निः) यज्ञिय अग्नि ( पातु) रक्षा करे, तथा (अस्य) इस यज्ञियाग्नि के (ये) जो (शिवाः) कल्याणकारी (पायवः) रक्षक गुण हैं वे हमारी रक्षा करें।
टिप्पणी
[इस मन्त्र में भी प्राकृतिक साधनों द्वारा रक्षा की प्रार्थना परमेश्वर से की गई है। मन्त्रस्थ साधनों में मुख्य साधन है यज्ञियाग्नि, और उसमें आहुत सोम ओषधि और सोमरस तथा शब्दमयी वेदवाणी की शिक्षा। आहुतियों द्वारा उत्थित धूम पृथिवी और पृथिवी के वायुमण्डल में फैल कर स्वास्थ्य प्रदान कर, हत्या से रक्षा करता है, और द्युलोक द्वारा प्राप्त प्रकाश और ताप इसमें सहायक होता है। रोगनिवारण और स्वास्थ्य प्रदान में सोम ओषधि, तथा सोमरस के अद्भुत गुण वेदों में वर्णित हुए हैं। अहसः=अंहतिः च, अंह: च, अंहुः च, हन्तेः निरूढोपधात् विपरीतात्" (निरुक्त ४।४।२४; पद ५७, तूताव)। सुभगा= "ऐश्वर्यस्य समग्रस्य धर्मस्य यशसः श्रियः। ज्ञानवैराग्ययोश्चैव षण्णां भग इतीरणा"। वेदवाणी में इन षड्विध भगों का वर्णन है, अतः वेदवाणी को सुभगा कहा है]।
विषय
रक्षा की प्रार्थना ।
भावार्थ
(द्यावापृथिवी) सूर्य और पृथिवी (अभिष्टये) अभीष्ट फल प्राप्त करने के निमित्त (नः) हमें (अंहसः) नाशकारी पाप से (पाताम्) सुरक्षित रखें। (ग्रावा) विद्वान् पुरुष जो उत्तम ज्ञान का उपदेश करे वह (अंहसः) पाप से हमें (पातु) सुरक्षित रखे। और (सोमः) सोम, सबका प्रेरक उत्पादक प्रभु (नः) हमें (अंहसः पातु) पाप से बचावे। (सुभगा) सुख सौभाग्यमय (सरस्वती) ज्ञानमयी वेदवाणी (देवी) आनन्द को देनेहारी होकर (नः पातु) हमें पाप से बचावे। और (अग्निः) अग्नि, ज्ञानमय, स्वप्रकाश परमात्मा और (अस्य) इस प्रभु के बनाये (ये) जो और भी (पायवः) पवित्र करने हारे (शिवाः) कल्याणकारी पदार्थ और विद्वान् हैं वे भी हमें नाश या पापों से बचावें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
स्वस्त्ययनकामोऽथर्वा ऋषिः। नाना देवताः। १ पथ्याबृहती। २-३ जगत्यौ। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Prayer for Protection
Meaning
May heaven and earth protect us for our well being. May the cloud and soma, the moon, protect us from sin and violence. May Sarasvati, divine and glorious spirit of knowledge and culture, protect us. May Agni, all virtues of which are blissful, protect us.
Translation
May heaven and earth protect us for assistance (abhistaye); may the mountain (grava) protect; may the devotional bliss protect us from sin. May the heavenly learning divine, full of good fortune, protect us. May the adorable Lord, and his benign protecting powers preserve us.
Translation
May the heaven and earth protect us for attaining our desirable ends, may cloud and herb save us from disease, may the Vedic speech full of al! knowledge and endowed with all performances of merits protect us on, may the impelling force of the world and the pleasant and protective forces of which it contains be our guarding factors.
Translation
May Sun and Earth protect us for reaping the desired fruit. May a learned fellow and God save us from sin. May the auspicious Vedic speech, the giver of joy protect us. May God and His Kind protecting powers pre serve us.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(पाताम्) रक्षताम् (नः) अस्मान् (द्यावापृथिवी) सूर्यभूमी (अभिष्टये) अ० १।६।१। पररूपम्। अभीष्टसिद्धये (पातु) रक्षतु (ग्रावा) अ० ३।१०।५। मेघः−निघ० १।१०। (पातु) (सोमः) जलम् (नः) (अंहसः) अ० २।४।३। कष्टात् (पातु) (नः) (देवी) व्यवहारिणी (सुभगा) शोभनानि भगानि धनानि यस्याः सा सुष्ठ्वैश्वर्यप्रदा (सरस्वती) विज्ञानवती वेदविद्या (पातु) (अग्निः) अग्निविद्या (शिवाः) सुखकराः (ये) (अस्य) अग्नेः (पायवः) कृवापा०। उ० १।१। इति पा रक्षणेण् युक् च। रक्षका गुणाः ॥
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