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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 66 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 66/ मन्त्र 2
    ऋषिः - अथर्वा देवता - चन्द्रः, इन्द्रः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शत्रुनाशन सूक्त
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    आ॑तन्वा॒ना आ॒यच्छ॒न्तोऽस्य॑न्तो॒ ये च॒ धाव॑थ। निर्ह॑स्ताः शत्रवः स्थ॒नेन्द्रो॑ वो॒ऽद्य परा॑शरीत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ॒ऽत॒न्वा॒ना: । आ॒ऽयच्छ॑न्त: । अस्य॑न्त: । ये । च॒ । धाव॑थ । नि:ऽह॑स्ता: । श॒त्र॒व॒: । स्थ॒न॒ । इन्द्र॑: । व॒: । अ॒द्य । परा॑ । अ॒श॒री॒त् ॥६६.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आतन्वाना आयच्छन्तोऽस्यन्तो ये च धावथ। निर्हस्ताः शत्रवः स्थनेन्द्रो वोऽद्य पराशरीत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आऽतन्वाना: । आऽयच्छन्त: । अस्यन्त: । ये । च । धावथ । नि:ऽहस्ता: । शत्रव: । स्थन । इन्द्र: । व: । अद्य । परा । अशरीत् ॥६६.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 66; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सेनापति के लक्षणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (ये) जो तुम (आतन्वानाः) [धनुष बाण] तानते हुए (च) और (आयच्छन्तः) [तलवारें] खैंचते हुए और (अस्यन्तः) चलाते हुए (धावथ) दौड़े चले आते हो। (शत्रवः) हे शत्रुओ ! तुम सब (निर्हस्ताः) निहत्थे (स्थन) हो जाओ, (इन्द्रः) महाप्रतापी सेनापति इन्द्र ने (वः) तुम को (अद्य) आज (परा अशरीत्) मार गिराया है ॥२॥

    भावार्थ

    युद्धकुशल सेनापति शत्रुओं के धावे को रोक कर उन्हें मार गिरावे ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(आतन्वानाः) धनूंषि बाणान् च अनुसंदधतः (आयच्छन्तः) तरवारीन् आकर्षन्तः (अस्यन्तः) निक्षिपन्तः (ये) शत्रवः (च) (धावथ) शीघ्रं गच्छथ (निर्हस्ताः) लुप्तहस्तबलाः (शत्रवः) अरयः (स्थन) तप्तनप्तनथनाश्च। पा० ७।१।४५। इति अस्तेर्लोटि तस्य थनादेशः। भवत (इन्द्रः) सेनापतिः (वः) युष्मान् (अद्य) अस्मिन् दिने (परा अशरीत्) शॄ हिंसायाम्−लुङ्। पराहतान् कृतवान् ॥

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    विषय

    शत्रुओं का निर्हस्तीकरण

    पदार्थ

    १. (आतन्वाना:) = धनुर्षों पर चिल्ला चढ़ाये हुए (आयच्छन्तः) = शरसन्धान द्वारा धनुषों को तानते हुए (च) = तथा (अस्यन्त:) = तीरों को फेंकते हुए (ये) = जो तुम (धावथ) = हमारे अभिमुख शीघ्रता से आते हो, वे तुम सब (शत्रवः) = शत्रु (निर्हस्ता:) = निर्वीर्य हाथोंवाले स्थन-होओ। (इन्द्रः) = यह शत्रुविद्रावक सेनापति (व:) = तुम्हें (अद्य) = आज (पराशरीत्) = सुदूर विशीर्ण करता है।

    भावार्थ

    आक्रमण के लिए उद्यत शत्रुओं को सेनापति निर्हस्त करके सुदूर विनष्ट कर देता है।

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    भाषार्थ

    (आतन्वानाः) धनुषों को ताने हुए, (आयच्छन्तः) धनुषों पर वाण चढ़ा कर उन्हें खैंचते हुए, (च) और (अस्यन्तः) वाणों को हम पर फैंकते हुए (ये) जो तुम (शत्रवः) हे शत्रुओ !(धावथ) [फिर भी भय के कारण] दौड़ जाते हो, वे तुम (निर्हस्ताः स्थन) निहत्त्थे कर दिये गए हो, हथियारों से रहित कर दिये गए हो; (इन्द्रः) हमारा सम्राट् (अद्य) आज (वः) तुम्हारी (पराशरीत्) पराइ्मुख हुओं की हिंसा करे। [परा, अशरीत्; शॄ हिंसायाम् (क्र्यादिः)]।

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    विषय

    शत्रुओं का निःशस्त्रीकरण।

    भावार्थ

    निःशस्त्र किनको किया जाय ? (ये) जो शत्रुगण (आतन्वानाः) धनुष पर चिल्ला चढ़ाते हैं, (आ यच्छन्तः) उनकों खैंचते हैं, और (अस्यन्तः) बाण फेंकते हैं और (ये च) जो धावथ वेग से आक्रमण करते हैं, ऐसे हे (शत्रवः) शत्रु लोगो ! तुम ही (निर्हस्ताः) निहत्थे (स्थन) होकर रहो, नहीं तो (इन्द्रः) हमारा सेनापति राजा (वः) तुमको (अद्य) श्राज (पराशरीत्) मार डालेगा। आक्रमणकारी, मारने की चेष्टा करने वालों को निहत्था कर दें। नहीं तो सेनापति उनका वध कर दे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। चन्द्र उत इन्द्रो देवता। १ त्रिष्टुप्। २-३ अनुष्टुप्। तृचं सृक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Facing Incorrigible Violence

    Meaning

    O enemies who came advancing against us, your bows raised, strings drawn, shooting arrows upon us, lay down your arms and stay. Indra today has shattered your might.

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    Translation

    O enemies, who rush oon stringing (your bows), stretching and hurling, lay down your arms. The resplendent one has over-shot you today.

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    Translation

    Armless be ye, who run hither bending bows, brandishing weapon and casting missiles and let the commander of our army mangle you today.

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    Translation

    Ye who run hither bending bows, brandishing swords, and casting darts, deprived of the strength of hand be Ye, O enemies! Let Commander of the army mangle you today.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(आतन्वानाः) धनूंषि बाणान् च अनुसंदधतः (आयच्छन्तः) तरवारीन् आकर्षन्तः (अस्यन्तः) निक्षिपन्तः (ये) शत्रवः (च) (धावथ) शीघ्रं गच्छथ (निर्हस्ताः) लुप्तहस्तबलाः (शत्रवः) अरयः (स्थन) तप्तनप्तनथनाश्च। पा० ७।१।४५। इति अस्तेर्लोटि तस्य थनादेशः। भवत (इन्द्रः) सेनापतिः (वः) युष्मान् (अद्य) अस्मिन् दिने (परा अशरीत्) शॄ हिंसायाम्−लुङ्। पराहतान् कृतवान् ॥

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