अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 8/ मन्त्र 2
ऋषिः - जमदग्नि
देवता - सुपर्णः
छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः
सूक्तम् - कामात्मा सूक्त
1
यथा॑ सुप॒र्णः प्र॒पत॑न्प॒क्षौ नि॒हन्ति॒ भूम्या॑म्। ए॒वा नि ह॑न्मि ते॒ मनो॒ यथा॒ मां का॒मिन्यसो॒ यथा॒ मन्नाप॑गा॒ असः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठयथा॑ । सु॒ऽप॒र्ण: । प्र॒ऽपत॑न् । प॒क्षौ । नि॒ऽहन्ति॑ । भूम्या॑म् । ए॒व । नि । ह॒न्मि॒ । ते॒ । मन॑: । यथा॑ । माम् । का॒मिनी॑ । अस॑: । यथा॑ । मत् । न । अप॑ऽगा: । अस॑: ॥८.२॥
स्वर रहित मन्त्र
यथा सुपर्णः प्रपतन्पक्षौ निहन्ति भूम्याम्। एवा नि हन्मि ते मनो यथा मां कामिन्यसो यथा मन्नापगा असः ॥
स्वर रहित पद पाठयथा । सुऽपर्ण: । प्रऽपतन् । पक्षौ । निऽहन्ति । भूम्याम् । एव । नि । हन्मि । ते । मन: । यथा । माम् । कामिनी । अस: । यथा । मत् । न । अपऽगा: । अस: ॥८.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
विद्या की प्राप्ति का उपदेश।
पदार्थ
(यथा) जैसे (प्रपतन्) उड़ता हुआ (सुपर्णः) शीघ्रगामी पक्षी (पक्षौ) दोनों पंखों को (भूम्याम्) भूमि पर (निहन्ति) जमा देता है। (एव) वैसे ही (ते) तेरे लिये (मनः) अपना मन (नि हन्मि) मैं जमाता हूँ, (यथा) जिस से तू (माम् कामिनी) मेरी कामना करनेवाली म० १ ॥२॥
भावार्थ
विद्यार्थी पूरा मन लगा कर विद्या प्राप्त करके उसकी सफलता करे ॥२॥
टिप्पणी
२−(यथा) येन प्रकारेण (सुपर्णः) सुपर्णाः सुपतनाः−निरु० ४।३। शीघ्रगामी पक्षी (प्रपतन्) उड्डीयमानः (पक्षौ) खगानां पतत्रौ (निहन्ति) नितरां प्राप्नोति स्थापयति (भूम्याम्) पृथिव्याम् (एव) तथा (नि हन्मि) स्थापयामि (ते) तुभ्यम् (मनः) स्वहृदयम्। अन्यत् पूर्ववत्−म० १ ॥
विषय
पक्षी भूमि पर, पत्नी पति पर
पदार्थ
१. (यथा) = जैसे (सुपर्ण:) = पक्षी (प्रपतन्) = उड़ता हुआ (भूभ्यां पक्षौ निहन्ति) = भूमि पर पड़ों को जमा देता है, (एव) = उसी प्रकार (ते मन:) = तेरे मन को (निहन्मि) = मैं जमा देता हूँ। २. मैं तेरे मन को अपने में ऐसे निश्चल करता हूँ, (यथा) = जिससे (मां कामिनी असः) = तू मुझे चाहनेवाली हो, यथा जिससे (मत्) = मुझसे (अप-गा:) = दूर जानेवाली (न असः) = न हो।
भावार्थ
उड़ता हुआ पक्षी अन्तत: अपने पाँवों को भूमि पर जमा देता है, इसीप्रकार सब व्यवहारों को करती हुई पत्नी पति को ही अपना आधार बनाए।
भाषार्थ
(यथा) जिस प्रकार (सुपर्णः) गरुड (प्रपतन्) प्रपात करता हुआ (भूम्याम् ) पृथिवी पर (पक्षौ) दोनों पंखों को (निहन्ति) गतिरहित कर देता है (एवा) इसी प्रकार [हे पत्नी] (ते) तेरे (मनः) मन को (निहन्मि) मैं गतिरहित कर देता हूं, (यथा) ताकि (माम्) मुझे (कामिनी ) चाहने वाली (असः) तू हो, (यथा) ताकि (मत्) मुझ से (अपगाः) अलग हो जाने वाली, छोड़ जाने वाली (न असः) तू न हो।
टिप्पणी
[गरुड पक्षी अधिक वेगवाला और शक्तिशाली होता है। पृथिवी पर प्रपात करने पर वह निज पक्षों को गतिरहित कर देता है, इसी प्रकार पति रुष्ट पत्नी के मन को विचारशून्य करता है ताकि वह पति को छोड़ कर चले जाने की सोच भी न सके। यह पति का, रुष्ट पत्नी के साथ सद्-व्यवहार और प्रेम का परिणाम है]।
विषय
पति-पत्नी की परस्पर प्रेम प्रतिज्ञा।
भावार्थ
(यथा) जिस प्रकार (सुपर्णः) पक्षी (भूम्याम्) भूमि पर (प्रपतन्) वेग से आता हुआ (पक्षौ निहन्ति) पंखों को शिथिल कर देता हैं (एवा) इसी प्रकार (ते मनः) तेरे विचलित हृदय को मैं (निहन्मि) अपने प्रति निश्वल करता हूं। (यथा) जिससे (मां कामिनी असः) तू मुझे सदा चाहती रहे और (मत् अपगा न असः) मुझे छोड़कर जाने का संकल्प न करे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
जमदग्निर्ऋषिः। कामात्मा देवता। १-३ पथ्या पंक्तिः। तृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Love
Meaning
Just as the eagle, flying, presses its wings down earthward, so do I press down upon your mind so that you may be mine loving me and never go away from me.
Translation
As an eagle, when taking off, strikes his wings down on the earth, so I strike your mind, so that you may be desirous of me, so that you may never be deserting (going away from) me.
Translation
As the eagle mounting strikes its wings downwards on the earth so I (your husband) strike your spirit down, so you may remain my darling and never be separated from me.
Translation
As, when he mounts, the cagle strikes his pinions downward on the earth, so do I, O knowledge, concentrate my mind on thee, that thou mayst be in love with me, my darling, never to depart.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−(यथा) येन प्रकारेण (सुपर्णः) सुपर्णाः सुपतनाः−निरु० ४।३। शीघ्रगामी पक्षी (प्रपतन्) उड्डीयमानः (पक्षौ) खगानां पतत्रौ (निहन्ति) नितरां प्राप्नोति स्थापयति (भूम्याम्) पृथिव्याम् (एव) तथा (नि हन्मि) स्थापयामि (ते) तुभ्यम् (मनः) स्वहृदयम्। अन्यत् पूर्ववत्−म० १ ॥
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