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अथर्ववेद के काण्ड - 6 के सूक्त 83 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 83/ मन्त्र 2
    ऋषिः - अङ्गिरा देवता - सूर्यः, चन्द्रः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - भैषज्य सूक्त
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    एन्येका॒ श्येन्येका॑ कृ॒ष्णैका॒ रोहि॑णी॒ द्वे। सर्वा॑सा॒मग्र॑भं॒ नामावी॑रघ्नी॒रपे॑तन ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    एनी॑ । एका॑ । श्येनी॑ । एका॑ । कृ॒ष्णा । एका॑ । रोहि॑णी॒ इति॑ ।द्वे इति॑ । सर्वा॑साम् । अ॒ग्र॒भ॒म् । नाम॑ । अवी॑रऽघ्नी: । अप॑ । इ॒त॒न॒ ॥८३.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एन्येका श्येन्येका कृष्णैका रोहिणी द्वे। सर्वासामग्रभं नामावीरघ्नीरपेतन ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एनी । एका । श्येनी । एका । कृष्णा । एका । रोहिणी इति ।द्वे इति । सर्वासाम् । अग्रभम् । नाम । अवीरऽघ्नी: । अप । इतन ॥८३.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 6; सूक्त » 83; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    रोग नाश करने का उपदेश।

    पदार्थ

    (एका) एक [गण्डमाला आदि] (एनी) चितकबरी, (एका) एक (श्येनी) श्वेतवर्ण, (एका) एक (कृष्णा) काली और (द्वे) दो (रोहिणी) लाल रंग हैं। (सर्वासाम्) सब [गण्डमाला आदि पीड़ाओं] का (नाम) नाम (अग्रभम्) मैंने ग्रहण किया है, (अवीरघ्नीः) अवीरों कातरों को नाश करती हुई (अप इतन) तुम चली जाओ ॥२॥

    भावार्थ

    जिस प्रकार चिकित्सक रोग का वात पित्त श्लेष्म आदि निदान समझ कर गण्डमाला आदि रोगों की निवृत्ति करता है, उसी प्रकार बुद्धिमान् मनुष्य अपनी कुवासनाओं का कारण समझ कर उनका नाश करे ॥२॥

    टिप्पणी

    २−(एनी) हसिमृग्रिण्०। उ० ३।८६। इति इण् गतौ−तन्। वर्णादनुदात्तात्तोपधात्तो नः। पा० ४।१।३९। इति ङीप्, तस्य च नः। चित्रवर्णा (एका) गण्डमालादिपीडा (श्येनी) हृश्याभ्यामितन्। उ० ३।९३। इति श्यैङ् गतौ−इतन्। पूर्ववद्ङीप्, तस्य च नः। श्वेतवर्णा (एका) (कृष्णा) कृष्णवर्णा (एका) (रोहिणी) रोहितशब्दस्य पूर्ववद्ङीप्नकारौ। रोहिण्यौ। लोहितवर्णे वातपित्तश्लेष्मवशाद् वर्णनानात्वाद् एतासां नानात्वम् (सर्वासाम्) अपचिताम् (अग्रभम्) अहमग्रहीषम् (नाम) प्रसिद्धौ (अवीरघ्नीः) बहुलं छन्दसि। पा० ३।२।८९। इति वीर+हन वधे−क्विप्। ऋन्नेभ्यो ङीप्। पा० ४।१।५। इति ङीप्। अल्लोपोऽनः। पा० ६।४।१३४। अकारलोपः। वा च्छन्दसि। पा० ६।१।१०६। इति पूर्वसवर्णदीर्घः। अवीरान् कातरान् सत्यः (अपेतन) तप्तनप्तनथनाश्च। पा० ७।१४५। इति एतेर्लोटि तस्य तनादेशः। अपगच्छत ॥

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    विषय

    एनी श्येनी कृष्णा रोहिणी

    पदार्थ

    १. (एका) = एक गण्डमाला (एनी) = ईषत् रक्तमिश्रित श्वेत वर्णवाली है, (एका श्येनी) = एक अत्यन्त शुभ्र वर्णवाली है। (एका कृष्णा)= -एक कृष्णवर्णवाली है और द्(वे रोहिणी) = दो लोहित-रक्त वर्णवाली हैं। २. मैं (सर्वासाम्) = इन सब गण्डमालाओं के (नाम) = नमन-[दमन]-साधन-उपाय को (अग्रभम्) = ग्रहण करता हूँ। हे गण्डमालाओ! तुम (अवीरघ्नी:) = मारी वीर सन्तानों को नष्ट न करती हुई यहाँ से (अपेतन) = दूर चली जाओ।

    भावार्थ

    हम विविध गण्डमालाओं को दूर करने के साधनों का ग्रहण करते हुए इन्हें अपने जीवनों से दूर करें।

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    भाषार्थ

    (एनी) ईषद्रक्तमिश्रित श्वेतरक्तवाली [सायण] गण्डमाला (एका) एक प्रकार की होती है, (श्येनी) अत्यन्त शुभ्रवर्णवाली गण्डमाला (एका) एक प्रकार की होती है, (कृष्णा) काली गण्डमाला (एका) एक प्रकार की होती है, (रोहिणी) लाल गण्डमालाएं (द्वे) दो प्रकार की होती हैं। (सर्वासाम्) उन सब गण्डमालाओं के (नाम) नाम (अग्रभम्) मैंने कथित कर दिये हैं, (अवीरघ्नीः) हे अवीरों अर्थात् निर्बलों की हत्या करनेवाली गण्डमालाओ ! (अपेतन) तुम अपगत हो जाओ, हट जाओ।

    टिप्पणी

    [गण्डमाला क्षय रोग है जो कि निर्बलों का हनन करती है। अतः पौष्टिक अन्न और औषधों के सेवन करने का विधान हुआ है]।

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    विषय

    अपची या गण्डमाला रोग की चिकित्सा।

    भावार्थ

    उक्त गण्डमालाओं में से (एका) एक (एनी) हलकी लाल श्वेत रंग की स्फोटाला होती है और (एका) दूसरी एक (श्येनी) श्वेत फुन्सी वाली होती है। (एका) तीसरी एक (कृष्णा) काली फुन्सियों वाली होती है। और (द्वे) दो प्रकार की (रोहिणी) लाल रंग की होती हैं। उनको क्रम से ऐनी, श्येनी, कृष्णा और रोहिणी नाम से कहा जाता है। इस प्रकार (अहम्) मैं (सर्वासाम्) इन सबके (नाम) नाम और लक्षणों का अथवा इनके नमन या दमन या वश करने के उपाय का (अग्रभम्) उपदेश करता हूं। जिससे ये (अवीरघ्नीः) पुरुष का जीवन विनाश किये बिना ही (अपेतन) दूर होजाया करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अंगिरा ऋषिः। मन्त्रोक्ता देवता। १-३ अनुष्टुप्। ४ एकावसाना द्विपदा निचृद् आर्ची अनुष्टुप्। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Cure of Scrofulous Inflammation

    Meaning

    One is spotted, another is white, another is black, two are red. I have diagnosed and determined all the types for sure. Be out without damaging the patient’s health.

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    Translation

    One is spotted; one is white; one is black; and two are reddish. I have pronounced the names of all of you. May you go away, without injuring our heroes.

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    Translation

    I, the physician declare the names of all these excrescences which consists of one bright with variegated tints; one white, one black and two of red tint. Let them fly away without injuring men.

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    Translation

    One of them is bright with variegated tints, one pure white, one black, a couple red-the names of all sores have I declared. Begone, and injure not our men.

    Footnote

    The words Surya and Chandrama may mean the rays of the Sun and the light of Moon which cure the disease.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(एनी) हसिमृग्रिण्०। उ० ३।८६। इति इण् गतौ−तन्। वर्णादनुदात्तात्तोपधात्तो नः। पा० ४।१।३९। इति ङीप्, तस्य च नः। चित्रवर्णा (एका) गण्डमालादिपीडा (श्येनी) हृश्याभ्यामितन्। उ० ३।९३। इति श्यैङ् गतौ−इतन्। पूर्ववद्ङीप्, तस्य च नः। श्वेतवर्णा (एका) (कृष्णा) कृष्णवर्णा (एका) (रोहिणी) रोहितशब्दस्य पूर्ववद्ङीप्नकारौ। रोहिण्यौ। लोहितवर्णे वातपित्तश्लेष्मवशाद् वर्णनानात्वाद् एतासां नानात्वम् (सर्वासाम्) अपचिताम् (अग्रभम्) अहमग्रहीषम् (नाम) प्रसिद्धौ (अवीरघ्नीः) बहुलं छन्दसि। पा० ३।२।८९। इति वीर+हन वधे−क्विप्। ऋन्नेभ्यो ङीप्। पा० ४।१।५। इति ङीप्। अल्लोपोऽनः। पा० ६।४।१३४। अकारलोपः। वा च्छन्दसि। पा० ६।१।१०६। इति पूर्वसवर्णदीर्घः। अवीरान् कातरान् सत्यः (अपेतन) तप्तनप्तनथनाश्च। पा० ७।१४५। इति एतेर्लोटि तस्य तनादेशः। अपगच्छत ॥

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