अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 94/ मन्त्र 2
ऋषिः - अथर्वाङ्गिरा
देवता - सरस्वती
छन्दः - विराड्जगती
सूक्तम् - सांमनस्य सूक्त
1
अ॒हं गृ॑भ्णामि॒ मन॑सा॒ मनां॑सि॒ मम॑ चि॒त्तमनु॑ चि॒त्तेभि॒रेत॑। मम॒ वशे॑षु॒ हृद॑यानि वः कृणोमि॒ मम॑ या॒तमनु॑वर्त्मान॒ एत॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒हम् । गृ॒भ्णा॒मि॒ । मन॑सा । मनां॑सि । मम॑ । चि॒त्तम् । अनु॑ । चि॒त्तेभि॑: । आ । इ॒त । मम॑ । वशे॑षु । हृद॑यानि। व॒: । कृ॒णो॒मि॒ । मम॑ । या॒तम् । अनु॑ऽवर्त्मान: । आ । इ॒त॒ ॥९४.२॥
स्वर रहित मन्त्र
अहं गृभ्णामि मनसा मनांसि मम चित्तमनु चित्तेभिरेत। मम वशेषु हृदयानि वः कृणोमि मम यातमनुवर्त्मान एत ॥
स्वर रहित पद पाठअहम् । गृभ्णामि । मनसा । मनांसि । मम । चित्तम् । अनु । चित्तेभि: । आ । इत । मम । वशेषु । हृदयानि। व: । कृणोमि । मम । यातम् । अनुऽवर्त्मान: । आ । इत ॥९४.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
शान्ति करने के लिये उपदेश।
पदार्थ
(अहम्) मैं (मनसा) अपने मन से (मनांसि) तुम्हारे मनों को (गृभ्णामि=गृह्णामि) थामता हूँ (मम) मेरे (चित्तम् अनु) चित्त के पीछे-पीछे (चित्तेभि=चित्तैः) अपने चित्तों से (आ इत) आओ। (मम वशेषु) अपने वश में (वः हृदयानि) तुम्हारे हृदयों को (कृणोमि) मैं करता हूँ, (मम यातम्) मेरी चाल पर (अनुवर्त्मानः) मार्ग चलते हुए (आ इत) यहाँ आओ ॥२॥
भावार्थ
प्रधान पुरुष अपने शुभ विचार और साहस से सब सभासदों और प्रजागणों को धर्मपथ पर चलाकर परस्पर मेल के साथ साहसी और उत्साही बनावें ॥२॥ यह मन्त्र आ चुका है−अ० ३।८।६ ॥
टिप्पणी
२−पूर्ववद् व्याख्येयः−अ० ३।८।६ ॥
भाषार्थ
(अहम्) मैं (मनसा) मन द्वारा (मनांसि) तुम्हारे मनों को (गृभ्णामि) पकड़ता हूं, (मम) मेरे (चित्तम् अनु) चित्त के अनुकूल (चित्तेभिः) चित्तों के साथ (एत) आओ। (मम) मेरे (वशेषु) वशों में (वः) तुम्हारे (हृदयानि) हृदयों को (कृणोमि) मैं करता हूं, (मम) मेरे (यातम्, अनु वर्त्मानः) मार्ग के अनुसार मार्गवाले हुए (एत) आओ, अर्थात् ममानुगामी बनो।
टिप्पणी
[मन्त्र १, २ में अथर्व० ७।१३ (१२) सूक्त की भावनाएं हैं। पकड़ता हूं= इधर-उधर भटकने नहीं देता। यह कथन सभापति का है सभासदों के प्रति। मन्त्र १ में नत कराना या झूकवाना शासक-वर्ग के व्यक्ति (whip) द्वारा है।]
विषय
एकचित्त रहने का उपदेश।
भावार्थ
(अहम्) मैं (मनसा) मन से (मनांसि) आप लोगों के मनों को (गृभ्णाणि) ग्रहण करता हूं। आप लोग (चित्तेभिः) अपने ज्ञानवान् चित्तों के साथ (मम) मेरे (चित्तम् एत) चित्त के प्रति आकर्षित होकर आओ। (वः) आप लोगों के (हृदयानि) हृदयों को मैं (मम वशेषु) अपने वशों में, अपने अभिलषित कार्यों में (कृणोमि) लगाता हूं आप लोग स्वयं (अनु-वर्त्मानः) मेरे अनुकूल मार्ग पर चलते हुए (यातम्) पूर्व आप्त पुरुषों द्वारा चले गये मार्ग पर या (मम यातम्) मेरे चले हुए मार्ग पर, मेरे पीछे (एत) गमन करो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वाङ्गिरा ऋषिः। सरस्वती देवता। १,३ अनुष्टुभौ। २ विराड् जगती। तृचं सूक्तम्।
इंग्लिश (4)
Subject
Union at Heart
Meaning
I accept your united minds with my whole heart and will. With your united minds, come and join my mind and will at the centre. I join your thoughts and feelings together into my central laws and discipline. Come, join me and follow me on the path I follow.
Translation
I hold your minds with mine; come after my intent, I put your heats in my control. Please come behind me following my foot-prints, the bracks of my movement.
Translation
I make your mind captive with my mind, all of you follow my thought and wishes with your thoughts, I make your hearts submissive to mine order and you go following the track that I tread.
Translation
I with my mind make your minds captive: with your thoughts follow my thought and wishes. I make your hearts subservient to mine order. Come after me on the path I tread.
Footnote
See Atharva, 3-8-6. I may refer to the teacher or the king. You may refer to the pupils or the subjects.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२−पूर्ववद् व्याख्येयः−अ० ३।८।६ ॥
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