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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 28 के मन्त्र
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ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 28/ मन्त्र 4
ऋषिः - इन्द्रवसुक्रयोः संवाद ऐन्द्रः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - विराट्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
इ॒दं सु मे॑ जरित॒रा चि॑किद्धि प्रती॒पं शापं॑ न॒द्यो॑ वहन्ति । लो॒पा॒शः सिं॒हं प्र॒त्यञ्च॑मत्साः क्रो॒ष्टा व॑रा॒हं निर॑तक्त॒ कक्षा॑त् ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒दम् । सु । मे॒ । ज॒रि॒तः॒ । आ । चि॒कि॒द्धि॒ । प्र॒ति॒ऽई॒पम् । शाप॑म् । न॒द्यः॑ । व॒ह॒न्ति॒ । लो॒पा॒शः । सिं॒हम् । प्र॒त्यञ्च॑म् । अ॒त्सा॒रिति॑ । क्रो॒ष्टा । व॒रा॒हम् । निः । अ॒त॒क्त॒ । कक्षा॑त् ॥
स्वर रहित मन्त्र
इदं सु मे जरितरा चिकिद्धि प्रतीपं शापं नद्यो वहन्ति । लोपाशः सिंहं प्रत्यञ्चमत्साः क्रोष्टा वराहं निरतक्त कक्षात् ॥
स्वर रहित पद पाठइदम् । सु । मे । जरितः । आ । चिकिद्धि । प्रतिऽईपम् । शापम् । नद्यः । वहन्ति । लोपाशः । सिंहम् । प्रत्यञ्चम् । अत्सारिति । क्रोष्टा । वराहम् । निः । अतक्त । कक्षात् ॥ १०.२८.४
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 28; मन्त्र » 4
अष्टक » 7; अध्याय » 7; वर्ग » 20; मन्त्र » 4
अष्टक » 7; अध्याय » 7; वर्ग » 20; मन्त्र » 4
विषय - वीर पुरुष
शब्दार्थ -
(जरितः) हे शत्रुओं का नाश करनेवाले ! आप (इदं) यह (मे) मुझ वीर का (हि) ही (सुचिकित्) सामर्थ्य जानो कि (नद्यः) नदियाँ (प्रतीपम् शापं आ वहन्ति) विपरीत दिशा को जल बहाने लगती हैं (लोपाश:) तृणचारी पशु भी (प्रत्यञ्चम् सिंहम्) सम्मुख आते हुए सिंह को (अत्सा:) नष्ट कर देता है। और (कोष्टा:) शृगालवत् रोनेवाला निर्बल भी (वराहम्) शूकर के समान बलवान् को (कक्षात निर् अतक्त) मैदान से बाहर निकाल भगाता है ।
भावार्थ - मन्त्र में वीर पुरुष की महिमा का गुणगान है । संसार में ऐसा कौन-सा कार्य है जिसे वीर पुरुष नही कर सकता ? वीर पुरुष नदियों पर इस प्रकार के बन्ध बाँध देते हैं कि नदियाँ विपरीत दशा में बहने लग जाती हैं। अथवा वीर पुरुष संसाररूपी नदी के प्रवाह को मोड़कर उलटा बहा देते हैं । वीर पुरुष तृण भक्षण करनेवाले पशुओं को ऐसा प्रशिक्षण देते हैं कि वे सम्मुख आते हुए सिंह को मार भगाते हैं । भाव यह है कि वीर पुरुष तुच्छ साधनों से महान् कार्यों को सम्पन्न कर लेते हैं। गुरु गोविन्दसिंह जी ने ठीक ही तो कहा था – चिड़ियों से मैं बाज लड़ाऊँ, तो गोविन्दसिंह नाम धराऊँ । कर्मवीर निर्बल मनुष्य में भी ऐसा पराक्रम फूंक देते हैं कि वे बलवान् शत्रु को भी मार भगाते हैं ।
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