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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 16 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 16/ मन्त्र 7
    ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः देवता - इन्द्र: छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    अ॒यं ते॒ स्तोमो॑ अग्रि॒यो हृ॑दि॒स्पृग॑स्तु॒ शंत॑मः। अथा॒ सोमं॑ सु॒तं पि॑ब॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒यम् । ते॒ । स्तोमः॑ । अ॒ग्रि॒यः । हृ॒दि॒ऽस्पृक् । अ॒स्तु॒ । शम्ऽत॑मः । अथ॑ । सोम॑म् । सु॒तम् । पि॒ब॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयं ते स्तोमो अग्रियो हृदिस्पृगस्तु शंतमः। अथा सोमं सुतं पिब॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अयम्। ते। स्तोमः। अग्रियः। हृदिऽस्पृक्। अस्तु। शम्ऽतमः। अथ। सोमम्। सुतम्। पिब॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 16; मन्त्र » 7
    अष्टक » 1; अध्याय » 1; वर्ग » 31; मन्त्र » 2

    Bhajan -

    आज का वैदिक भजन 🙏 1116 
    ओ३म् अ॒यं ते॒ स्तोमो॑ अग्रि॒यो हृ॑दि॒स्पृग॑स्तु॒ शन्त॑मः ।
    अथा॒ सोमं॑ सु॒तं पि॑ब ॥ ऋग्वेद १/१६/७

    जब से सृष्टि आई सत्ता में 
    वेद की विद्या पाई 
    तब से ज्ञान कर्म उपासना 
    प्रभु की महिमा दी सुनाई

    स्तुति समूह की दिव्य वाणी 
    ज्ञान प्रदायक शान्ति दायक 
    धार्मिक वेद-वाणी 
    तृण से ब्रह्म तक बताये
    काव्यक वाणी है मङ्गलदायी 
    स्तुति समूह की दिव्य वाणी 
    ज्ञान प्रदायक शान्ति दायक 
    धार्मिक वेद-वाणी 

    ईश-ज्ञान का प्रमाण बताये 
    वेद गुणों को ऋषि साधु सन्त गायें
    पूर्वजों का हितैषी कहाये
    भावी जगत में भी प्रेरणा जगाये 
    आदि सृष्टि का सत्य सनातन 
    प्रथम ग्रन्थ है जीव मात्र का 
    ज्ञान कर्म का दानी
    स्तुति समूह की दिव्य वाणी 
    ज्ञान प्रदायक शान्ति दायक 
    धार्मिक वेद-वाणी 

    सूर्य-चन्द्र का प्रकाश फैलाए 
    घोर अन्धकार भी दूर भगाए 
    तीन सत्ताओं का ज्ञान कराये 
    ज्ञान-विज्ञान-प्रकाश फैलाये 
    स्वात्मा से परमात्मा तक 
    दर्शन हमें कराये 
    अद्भुत वेद की वाणी 
    स्तुति समूह की दिव्य वाणी 
    ज्ञान प्रदायक शान्ति दायक 
    धार्मिक वेद-वाणी 

    जो ना पाए वेदरूपी धन को 
    वह असमर्थ है श्रवण मनन को 
    ज्ञान है वेद का हृदयस्पर्शी 
    बन जाते हैं ज्ञान के सुदर्शी 
    वेद उपदेश को समझ समझ के 
    श्रवण मनन निदिध्यासन करके 
    बनते मोक्ष के गामी
    स्तुति समूह की दिव्य वाणी 
    ज्ञान प्रदायक शान्ति दायक 
    धार्मिक वेद-वाणी 

    प्रेरणादायक सोम स्वरूप है 
    स्तुति-समूह की मोहक वाणी 
    पूर्व काल से वर्तमान तक 
    प्रामाणिक है कल्याणकारी 
    परम पवित्र ब्रह्म की वाणी 
    दु:खवारक सुखदायक वाणी 
    लाभान्वित करें जग-प्राणी 
    स्तुति समूह की दिव्य वाणी 
    ज्ञान प्रदायक शान्ति दायक 
    धार्मिक वेद-वाणी 
    तृण से ब्रह्म तक बताये
    काव्यक वाणी है मङ्गलदायी 
    स्तुति समूह की दिव्य वाणी 
    ज्ञान प्रदायक शान्ति दायक 
    धार्मिक वेद-वाणी 
    धार्मिक वेद-वाणी 

    रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई
    रचना दिनाँक :-   ०२.०९.२०२१           ९.१५ सायं
    राग :- पहाड़ी
    गायन समय सायं 5:00 से 9:00, ताल कहरवा 8 मात्रा
                          
    शीर्षक :- वेद  शान्तिप्रद है भजन 689 वां
    *तर्ज :- *
    0120-720  

    ब्रह्म = ज्ञानवान परमेश्वर
    तृण = तिनका 
    हितैषी = हित चाहने वाला
    तीन सतायें = जीव, प्रकृति और परमात्मा
    सुदर्शी = अच्छी तरह देखने वाला
    निदिध्यासन = अनवरत गहरा चिन्तन
     

    Vyakhya -

    प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का सन्देश :-- 👇👇
    वेद  शान्तिप्रद है 

    पक्षपात रहित सभी विद्वान इस बात में सहमत हैं कि वेद संसार में सबसे पुराना ग्रंथ है इसलिए इसे अग्रिम कहा है। यह अग्रों का पहलों का भी हितकारी है। सबसे पहला ज्ञान भगवान से मिलना चाहिए वह वेद है।  कणाद महर्षि तो इसी कारण वेद की प्रमाणिकता मानते हैं, ('तद्वचना दाम्नायस्य प्रमाण्यम्') ईश्वर वचन होने से वेद की प्रमाणिकता है।
     यह वेद  'स्तोम्'  है यानी स्तुति समूह है। तृण से ब्रह्म पर्यंत सभी पदार्थों की स्तुति गुण गाथा इसमें है। उदाहरण के लिए जीव के सम्बन्ध में कहा गया है:- 'अपश्यं गोपाम निषद्यमानम् '-- मैंने अविनाशी और गोप (अर्थात् इंद्रियों के स्वामी को देखा है। ' आत्मा को इन्द्रियों से पृथक तथा अविनाशी कहा गया है। इसी प्रकार परमात्मा के समबन्ध में कहा है वेदाहमेतं पुरुषं महानतमादित्यवर्णं...... यजुर्वेद ३१/१८ मैंने उस महान सूर्य के प्रकाशक अज्ञान अन्धकार से विरहित सर्वव्यापक के दर्शन किए हैं । प्रकृति का निरूपण इन शब्दों में हुआ है ऐषा सनत्नी.....(अथ॰ १०.८.३०)यह सदा रहने वाली प्रकृति सदा से ही विद्यमान है, यह पुरानी पुरानी होती हुई भी नई सब कार्यों में विद्यमान है। उसका इसी भांति जीवन-उपयोगी सभी पदार्थों का ज्ञान वेद में कराया गया है। और यह अत्यन्त शान्ति प्रदान करता है। शान्ति तो परमात्मा के दर्शन से होती है। जैसा कठोपनिषत् में लिखा है जो सब पदार्थों का अन्तरात्मा सब को नियंत्रण में रखने वाला अकेला ही एक प्रकृति रूपी बीज को अनेक प्रकार का बना देता है, आत्मा में रहने वाले उस परमात्मा के जो ध्यानी दर्शन करते हैं उन्हें ही शाश्वत सुख मिलता है दूसरों को नहीं ।वह नित्यों में नित्य अर्थात् सदा एकरस और चेतनों का चेतन अर्थात् सर्वज्ञ है। वह अकेला अनेकों की कामनाएं पूरी करता है। उस आत्मा के जो धीर, धैर्य वाले, दर्शन करते हैं उन्हें अखंड शान्ति मिलती है।दूसरों को नहीं।
     ठीक है शान्ति परमात्मा के दर्शन से मिलती है किन्तु परमात्मा के समबन्ध में यथार्थ ज्ञान वेद से ही मिलता है (ना वेदविन्मनुते तं बृहन्तम् )वेद ना जानने वाला उस महान भगवान का मनन नहीं कर पाता अतः वेद का श्रवण अध्ययन मनन चिंतन धारण प्रत्येक शान्ति के अभिलाषी का कर्तव्य है । इस भाव को लेकर कहा गया है, हृदय को स्पर्श करने वाला केवल वाणी से ही वेद मन्त्र को ना रटे, हृदय में उनका स्पर्श भी हो। वेद तो है ही परमात्मा का वर्णन करने के लिए कहा:- ऋचो अक्षरे परमे व्योमन्.... ऋ.१.१६४.३९  वेद सर्वव्यापक अविनाशी परमात्मा का ज्ञान कराने के लिए है। भगवान का आदेश है कि जब इस प्रकार तू इस अग्रिम ज्ञान को हृदयस्पर्शी कर ले, तब निष्पादित सोम का पान कर ।ऐश्वर्य का पान कर। 
    बहुत सुन्दर बात कही है पहले ज्ञान पीछे अनुष्ठान। 
    पहले पदार्थों को जान पश्चात् उनका यथा योग्य उपयोग कर। ऋषि, इसलिए ज्ञान को कर्म से पूर्व स्थान देते हैं ।
    ध्वनि निकलती है कि यदि तुझे पदार्थों का ज्ञान कराने के लिए तथा तदनुसार कर्म करने के लिए दिया गया है अतः तू वेद का अध्ययन करके उसके अनुसार जीवन बना और बिता ।इसी में सफलता है।
    🕉🧘‍♂️ईश भक्ति भजन
    भगवान् ग्रुप द्वारा🎧🙏
    🕉 वैदिक श्रोताओं को हार्दिक शुभकामनाएं❗❤🙏

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