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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 23 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 23/ मन्त्र 14
    ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः देवता - पूषा छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    पू॒षा राजा॑न॒माघृ॑णि॒रप॑गूळ्हं॒ गुहा॑ हि॒तम्। अवि॑न्दच्चि॒त्रब॑र्हिषम्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पू॒षा । राजा॑नम् । आघृ॑णिः । अप॑ऽगूळ्हम् । गुहा॑ । हि॒तम् । अवि॑न्दत् । चि॒त्रऽब॑र्हिषम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पूषा राजानमाघृणिरपगूळ्हं गुहा हितम्। अविन्दच्चित्रबर्हिषम्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पूषा। राजानम्। आघृणिः। अपऽगूळ्हम्। गुहा। हितम्। अविन्दत्। चित्रऽबर्हिषम्॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 23; मन्त्र » 14
    अष्टक » 1; अध्याय » 2; वर्ग » 10; मन्त्र » 4

    Bhajan -

    आज का वैदिक भजन+English1174
    ओ३म्  पू॒षा राजा॑न॒माघृ॑णि॒रप॑गूळ्हं॒ गुहा॑ हि॒तम् ।
    अवि॑न्दच्चि॒त्रब॑र्हिषम् ॥
    ऋग्वेद 1/23/14

    परमात्मा को पाए वही
    हो जाए जो अन्तर्मुखी
    उससे परे कोई नहीं 
    प्रभु का मिलन परागति

    ढूँढे ठिकाने ईश्वर को पाने 
    ढूँढे से भी वह कहीं ना मिला 
    विरले ही जाने हृदय की गुफा में 
    देते हैं दर्शन वह परमपिता 
    आत्मा तो राजा - करे ना गुलामी 
    इन्द्रियों की और देह की 
    आत्मा रही प्रभु के प्रति 
    आत्मा बनी ईश्वर की हवि
    परमात्मा को पाए वही
    हो जाए जो अन्तर्मुखी
    उससे परे कोई नहीं 
    प्रभु का मिलन परागति

    मन्दिर यह मन का आसन हृदय का 
    ईश्वर के भावों से चित्रित हुआ 
    हृदय की गुफा में ईश्वर को पाने 
    योग आत्मा का ईश्वर से होता 
    पथिकृत हैं ईश्वर मार्ग सुझाते 
    आत्मा को देते नित जागृति
    चित्रबर्हि आत्मा वही 
    प्रभु बिन जिसे ना सूझे कोई
    परमात्मा को पाए वही
    हो जाए जो अन्तर्मुखी
    उससे परे कोई नहीं 
    प्रभु का मिलन परागति

    अन्त: गुहा में प्रकाश को पाने 
    कर्म इन्द्रियाँ बने आकर  सखा 
    प्रभु मन को हरते आनन्द भरते 
    इससे अधिक कोई पाएगा क्या ?
    जन्मान्तरों बाद मिलती सफलता 
    तो आवागमन की न चिन्ता कोई 
    अद्भुत आनन्द - जागे स्वयं 
    जब  ईश संग आत्मा मिली 
    परमात्मा को पाए वही
    हो जाए जो अन्तर्मुखी
    उससे परे कोई नहीं 
    प्रभु का मिलन परागति
     
    रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई
    रचना दिनाँक :--     २६.१२.१९९७   २०.५० रात्रि

    राग :- मधुवंती
    गायन समय दिन का तीसरा प्रहर, ताल दादरा 6 मात्रा

    शीर्षक :- परमात्मा जीव को गुहा में मिलता है  वैदिक भजन ७५२ वां

    *तर्ज :- *एकात या जन्में जणु(मराठी भाषा) 

    परागति = मोक्ष, निस्तार
    पथिकृत = मार्गदर्शक 
    चित्रबर्हि = परमेश्वर के भावों से चित्रित, हर समय परमेश्वर के भाव मन में चित्रित करना 
    अन्तर्मुखी = अन्तर्ध्यान, बाहरी विषयों से मन हटाकर हृदय की गुफा में परमात्मा के ध्यान में आत्मा को प्रकाशित करना।
     

    Vyakhya -

    *प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का सन्देश :

    🕉🔥ईश भक्ति भजन
    भगवान् ग्रुप द्वारा🌹🙏
    🕉सभी वैदिक श्रोताओं को हार्दिक शुभकामनाएं🙏
     

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