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ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 6 के मन्त्र
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ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 6/ मन्त्र 5
स नो॑ वृ॒ष्टिं दि॒वस्परि॒ स नो॒ वाज॑मन॒र्वाण॑म्। स नः॑ सह॒स्रिणी॒रिषः॑॥
स्वर सहित पद पाठसः । नः॒ । वृ॒ष्टिम् । दि॒वः । परि॑ । सः । नः॒ । वाज॑म् । अ॒न॒र्वाण॑म् । सः । नः॒ । स॒ह॒स्रिणीः॑ । इषः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
स नो वृष्टिं दिवस्परि स नो वाजमनर्वाणम्। स नः सहस्रिणीरिषः॥
स्वर रहित पद पाठसः। नः। वृष्टिम्। दिवः। परि। सः। नः। वाजम्। अनर्वाणम्। सः। नः। सहस्रिणीः। इषः॥
ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 6; मन्त्र » 5
अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 27; मन्त्र » 5
अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 27; मन्त्र » 5
Bhajan -
वैदिक मन्त्र
स नो वृष्टिं दिवस्पपरि स नो वाजमनर्वाणम्।
स न: सहस्त्रिणीरिष:।। ऋ•२.६.५
वैदिक भजन ११०१ वां
राग काफी
गायन समय रात्रि का दूसरा प्रहर
ताल रूपक सात मात्रा
भाग १
दिव्य वृष्टि बरसाने वाला
देवे धरा को सरसता
झुलसी जा रही ताप से भूमि
कृष्ण- मेघ जल बरसता।।
दिव्य वृष्टि..........
ग्रीष्म ताप से तरसी धरती
ताल तलैया सुख रहे
मेघों बीच बिजुरिया कौंधे
वर्षा-जल लाए आतुरता।।
दिव्य वृष्टि.......
प्रसन्नता की लहर आ रही
कृषकों में उमंग छाई(छा रही)
अन्ना वनस्पति औषधियों में
आए नज़र प्रभु- कृतार्थता
दिव्य वृष्टि..........
वही प्रभु आत्मा के भीतर
आनन्द -वर्षा करते रहता
ज्ञानेंद्रिय, मन, आत्म-प्राणों को
दृष्टि से पुलकित करता
दिव्य वृष्टि........झुलसी......
भाग २
दिव्य वृष्टि बरसाने वाला
देदे धरा को सरसता
तुलसी जा रही ताप से भूमि
कृष्ण मेघ जल बरसता।।
दिव्य वृष्टि.......
आतंकवाद भी तांडव करता
गोलियां खाते निर्दोष
किसने अहिंसा में पैदा की ?
शक्ति विलक्षण निर्भयता।।
दिव्य वृष्टि.......
एक बीज से पौधा निकले
कितने दाने उसमें उपजे
कौन है शाक- फलों की उपज में?
अत अपनी लीलाएं करता
दिव्य वृष्टि..........
आओ अग्निस्वरूप प्रभु का
नतमस्तक हो गुण गाएं
उसके उज्जवल कृत्यों को
कर पाएं जीवन में प्रवरता।।
दिव्य वृष्टि.......... झूलसी.....
शब्दार्थ:-
धरा=धरती
कृष्ण मेघ =काले बादल
आतुरता= व्यग्रता
कृषक=किसान
कृतार्थता=सफलता, दक्षता
पुलकित=रोमांचित, हर्ष युक्त
विलक्षण= अद्भुत
कृत्य= किए जाने वाले कर्तव्य कर्म
अत=इससे
प्रवरता = श्रेष्ठता,उत्तमता
🕉🧘♂️
द्वितीय श्रृंखला का ९४ वां वैदिक भजन और अब तक का
११०१ वां वैदिक भजन। 🙏
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वैदिक भजन के श्रोताओं को हार्दिक धन्यवाद एवं शुभकामनाएं! 🙏
Vyakhya -
भौतिक तथा दिव्य वृष्टि बरसाने वाला
प्रचंड ग्रीष्म के ताप से भूमि झुलसी जा रही है। ताल-तलैया-सरोवर सब सूख गए हैं। दुर्भिक्ष का आतंक छा रहा है। सहसा आकाश में बादल छा जाते हैं। मानसून पवन बहने लगता है। काले मेघा के बीच बिजली को कौंधने लगती है। यह लो, प्यासी धरती पर वर्षा की पुकार गिरकर सोंधी सोंधी महक उठाने लगी है। अब देखो, मूसलाधार वर्षा होने लगी, सूखे ताल फिर से भर गए। किसानों में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई है। औषधियां वनस्पतियां हरी-भरी एवं सप्राण हो गई हैं। यह आकाश से वृष्टि करने वाला कौन है? अग्नि नामक प्रभु ही तो है। प्रभु केवल बाहर वृष्टि का ही नहीं, दिव्य दृष्टि का भी कर्ता है। वही हमारे आत्मा में आनंद की वर्षा करता है, वही आत्मा, मन, प्राण, ज्ञानेंद्रिय आदि को दिव्य दृष्टि से पुलकित एवं सरस करता है। देश में सर्वत्र हिंसा का तांडव नृत्य हो रहा है। आक्रांता लोग निर्दोष लोगों पर गोलियां बरसा रहे हैं। आतंकवाद का बोलबाला हो रहा है। ऐसे समय में स्नेह की मुस्कान मुख पर लिए, संतप्त लोगों को सान्त्वना देता हुआ, अहिंसक बल का धनी यह कौन मुहल्ले- मुहल्ले, ग्राम-ग्राम, नगर-नगर घूम रहा है?
परम प्रभु की ही यह लीला है। उसी का जादू है।
गेहूं का एक गाना बोलने पर जो पौधा निकलता है, वह कितने अधिक दाने उत्पन्न करता है। आम की गुठली बोलने पर जो पेड़ बनता है, वह अपनी सारी आयु में असंख्य आम दे देता है। सभी अन्नो, शाक- सब्जियों एवं फलों के विषय में यह बात चरितार्थ होती है।यह अद्भुत व्यवस्था किसकी है? यह आश्चर्य- भरा खेल किसका है?उस प्रभु की ही यह व्यवस्था है,उस प्रभु का ही यह खेल है।
आओ हम उसे अग्नि प्रभु के प्रति नतमस्तक हों, उसका महिमा गान करें, उसके उज्जवल कार्यों से कुछ शिक्षा ग्रहण करें, उसे अपना गुरु बनाएं। हम भी दीन दुखियों पर परोपकार की वर्षा करें, हम भी अहिंसक बल के धनी बनें, हम भी एक से सहस्त्रों उत्पन्न करें।
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