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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 34 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 34/ मन्त्र 9
    ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा देवता - इन्द्र: छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    स॒सानात्याँ॑ उ॒त सूर्यं॑ ससा॒नेन्द्रः॑ ससान पुरु॒भोज॑सं॒ गाम्। हि॒र॒ण्यय॑मु॒त भोगं॑ ससान ह॒त्वी दस्यू॒न्प्रार्यं॒ वर्ण॑मावत्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒सान॑ । अत्या॑न् । उ॒त । सूर्य॑म् । स॒सा॒न॒ । इन्द्रः॑ । स॒सा॒न॒ । पु॒रु॒ऽभोज॑सम् । गाम् । हि॒र॒ण्यय॑म् । उ॒त । भोग॑म् । स॒सा॒न॒ । ह॒त्वी । दस्यू॑न् । प्र । अय॑म् । वर्ण॑म् । आ॒व॒त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ससानात्याँ उत सूर्यं ससानेन्द्रः ससान पुरुभोजसं गाम्। हिरण्ययमुत भोगं ससान हत्वी दस्यून्प्रार्यं वर्णमावत्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ससान। अत्यान्। उत। सूर्यम्। ससान। इन्द्रः। ससान। पुरुऽभोजसम्। गाम्। हिरण्ययम्। उत। भोगम्। ससान। हत्वी। दस्यून्। प्र। आर्यम्। वर्णम्। आवत्॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 34; मन्त्र » 9
    अष्टक » 3; अध्याय » 2; वर्ग » 16; मन्त्र » 4

    Bhajan -

    आज का वैदिक भजन 🙏 1135

    भाग 1/2

    ओ३म् स॒सानात्याँ॑ उ॒त सूर्यं॑ ससा॒नेन्द्र॑: ससान पुरु॒भोज॑सं॒ गाम् ।
    हि॒र॒ण्यय॑मु॒त भोगं॑ ससान ह॒त्वी दस्यू॒न्प्रार्यं॒ वर्ण॑मावत् ॥
    ऋग्वेद 3/34/9

    तुम्हारी देखी कृपा
    इन्द्र इस ज़माने की 
    ना भूल पाने की

    बिना ही मूल्य दिये
    बिना ही मूल्य दिये
    अश्व-पवन पाने की
    पवन को पाने की

    हमारे प्राण भी तो 
    पवन बन बचाते हैं
    हमें बचाते हैं
    शरीर-रथ को तो हम 
    सौ बरस चलाते हैं 
    जीवन चलाते हैं
    कहीं ज़रूरत पड़ती है 
    मोल चुकाने की ?
    ना मोल चुकाने की 

    तुम्हारी देखी कृपा
    इन्द्र इस ज़माने की 
    ना भूल पाने की
    बिना ही मूल्य दिये
    अश्व-पवन पाने की
    पवन को पाने की

    ज़रा यह सोचो कि 
    सूरज प्रकाश ना मिलता
    प्रकाश ना मिलता
    ना ऋतुएँ बनतीं
    अन्न, फल, फूल ना खिलता
    केवल ही तम मिलता
    यही तो इन्द्र ने दी 
    जिन्दगी बसाने की
    ये जिन्द बसाने की

    तुम्हारी देखी कृपा
    इन्द्र इस ज़माने की 
    ना भूल पाने की
    बिना ही मूल्य दिये
    अश्व-पवन पाने की
    पवन को पाने की

    रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई
    *रचना दिनाँक :- *  २२.९.२०२१ २.३०pm
    राग :- खमाज
    गायन समय रात का दूसरा प्रहर, ताल गरबा 6 मात्रा
    आज भजन का पहला भाग ,  कल मन्त्रार्थ सहित दूसरा भाग
       स्पष्टता की लिए🎧 का प्रयोग कीजिए     

    शीर्षक :- इन्द्र प्रभु की कृपाएं भजन 714 वां
    *तर्ज :- *
    729-00130 

    अश्व = हमारे प्राण
    तम = अंधेरा
     

    आज का वैदिक भजन 🙏 1136

    भाग 2/2

    ओ३म् स॒सानात्याँ॑ उ॒त सूर्यं॑ ससा॒नेन्द्र॑: ससान पुरु॒भोज॑सं॒ गाम् ।
    हि॒र॒ण्यय॑मु॒त भोगं॑ ससान ह॒त्वी दस्यू॒न्प्रार्यं॒ वर्ण॑मावत् ॥
    ऋग्वेद 3/34/9

    तुम्हारी देखी कृपा 
    इन्द्र इस जमाने की 
    ना भूल पाने की 
    बिना ही मूल्य दिए 
    अश्व-पवन पाने की 
    पवन को पाने की 

    तो और देखो के 
    गौएँ भी पुरुभोजा हैं
    ये पुरुभोजा हैं
    बस चारा-घास ही खातीं
    अमृत की शोभा हैं 
    अमृत की शोभा हैं
    यह गौ तो वाणी भी है 
    मधुर शब्द सुनाने की 
    मधुरता लाने की 

    तुम्हारी देखी कृपा 
    इन्द्र इस जमाने की 
    ना भूल पाने की 

    यह सोना चाँदी जवाहर 
    हीरे हैं इन्द्र की भेंट 
    हैं इन्द्र की भेंट 
    यह इन्द्र ही बनाता है 
    हमें घरों में सेठ 
    हमें घरों में सेठ 
    यही तो हो रही कृपा 
    सुखी बनाने की 
    सुखी बनाने की 

    तुम्हारी देखी कृपा 
    इन्द्र इस जमाने की 
    ना भूल पाने की 

    मगर जो दस्यु हैं
    हमको सताया करते हैं 
    सताया करते हैं 
    हमारी सुख शान्ति धन 
    मिटाया करते हैं 
    मिटाया करते हैं 
    तो गाज मिटने की पड़े 
    या तो आर्य बनाने की 
    बदलाव लाने की 

    तुम्हारी देखी कृपा 
    इन्द्र इस जमाने की 
    ना भूल पाने की 

    हे इन्द्र कैसे भूलें 
    हम तेरे उपकारों को 
    तेरे उपकारों को 
    जो दिवस-रात हमें 
    दान दिए बहारों के 
    सुखद बहारों के 
    ना वाणी में शक्ति 
    महिमा को बताने की 
    कृपा बताने की 

    तुम्हारी देखी कृपा 
    इन्द्र इस जमाने की 
    ना भूल पाने की 
    बिना ही मूल्य दिए 
    अश्व-पवन पाने की 
    पवन को पाने की 

    रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई
    *रचना दिनाँक :- *  २२.९.२०२१ २.३०pm
    राग :- खमाज
    गायन समय रात का दूसरा प्रहर, ताल गरबा 6 मात्रा
    कल पहला भाग श्रोताओं ने पढ़ा और सुना।
    आज  दूसरा अन्तिम भाग
    स्पष्टता की लिए🎧 का प्रयोग कीजिए     

    शीर्षक :- इन्द्र प्रभु की कृपाएं भजन 714 वां B 
    *तर्ज :- *
    730-00131

    पुरुभोजा = भोजन देने वाली
    अश्व-पवन = प्राणों की शक्ति
    दस्यु = राक्षस,
    गाज = लानत, उलाहना, बिजली,
     

    Vyakhya -

    प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का सन्देश :-- 👇👇

    इन्द्र प्रभु की कृपाएं
                   मन्त्रोपदेश
    देखो हम इन्द्र प्रभु के कितने ऋणी हैं। उसने हमें बिना कुछ मूल्य लिए हमें घोड़े रच कर दिए हैं। संसार का बड़े से बड़ा शिल्पी भी करोड़ों मोहरें पाकर और सारा जन्म लगाकर भी एक जानदार घोड़ा बनाकर नहीं दे सकता। पवन रूप घोड़ों को भी उसने बिना मूल्य के दिया है। शरीर में यह घोड़े प्राण हैं। पवन और प्राण कैसे चमत्कारिक हैं कि वर्षों तक शरीर के सभी अंगों को सजीव रखते हुए शरीर रथ को वहन करते रहते हैं। 
    इन्द्र प्रभु ने हमें सूर्य दिया है। जरा कल्पना करो कि यह प्रकाश का पुञ्ज हमसे छीन जाए तो हमारी क्या गति होगी? सूर्य से दिन-रात महीने बनते हैं सूर्य से ऋतुएं बनती हैं। सूर्य अन्न फल कंदों को पकाता है। सूर्य लोक-लोकान्तरों को धारण करता है।  सूर्य हम तेरा मूल्य नहीं आंक सकते ! 
    तू अमोल है। 

    इन गौंओं की ओर भी दृष्टि डालो। इन्द्र प्रभु ने हमें गौएं दीं हैं,जो पुरुभोजा हैं। दूध आदि प्रमुख भोजन देती हैं। प्रभु की बनाई हुई यह चलती फिरती मशीनें सचमुच अद्भुत है, जो घास चारा पानी खाती पीती हैं और देती हैं अमृतोपान,अमृतमय दूध। इन्द्र प्रभु ने हमें गौ शब्द वाच्य वाणी,इन्द्रियां, भूमि आदि वस्तुएं भी निशुल्क प्रदान की हैं। इन्द्र प्रभु ने हमें एक हिरण्यभोग दिए हैं। वो हैं सोना, चांदी, मणि, मुक्ता, हीरे,जवाहर आदि। चमकीले बहुमूल्य पदार्थ दिए है। उसके इन उपहारों को हम कभी नहीं भूल सकते।
    इसके अतिरिक्त वह इन्द्र प्रभु दस्यूओं(राक्षसों) को मारकर आर्य वर्ण की रक्षा करता है। दस्यु वह है जो रचनात्मक कार्यों को करने के स्थान पर ध्वंसात्मक कार्यों में आनंद लेते हैं। जगत का उपक्षय करते हैं। (नुकसान करते हैं) सज्जनों के सुख शान्ति के साम्राज्य का विनाश करते हैं। इसके विपरीत,आर्य सर्जनात्मक कार्यों में संलग्न रहता है। वह प्रयास करता है आगे बढ़ता है और पुनः प्रयास में जुट जाता है,जुड़ जाता है। इस प्रकार आर्य आगे ही आगे प्रगति करता जाता है।  दस्यु आर्यों के मार्ग में विघ्न डालते हैं और सात्विकता पर तामसिकता की विजय कराना चाहते हैं।  इन्द्र प्रभु उनके प्रयत्नों को सफल नहीं होने देते। यदि इन्द्र प्रभु की रक्षा का वरद हस्त हमारे ऊपर ना हो तो दस्यु इतने बढ़ जाए कि आर्यजनों का जीवन दूभर हो जाए। वहीं आर्यों को दस्युओं पर विजय पाने का बल भी देता है। 
    कभी-कभी तो वह ऐसा चमत्कार करता है कि दस्युओं की दस्युता पर ही प्रहार कर उन्हें भी आर्य बना देता है। 
    हे इन्द्र ! हम तुम्हारे उपकारों को कभी नहीं भूल सकते हम तुम्हारे परम कृतज्ञ हैं।

    oday's Vedic Bhajan 🙏

     Part 1/2

     O3m sasanatyam uta suryam sasanendra: sasana purubhojasam gam.
     The deer, who killed the thieves with pleasure, became the color of the rain.
     Rigveda 3/34/9

     Your seen grace
     Indra of this age
     Not to be forgotten

     Without giving values
     Without giving values
     to get the horse-wind
     to get the wind

     Our lives too
     Save the wind forest
     He saves us
     We are the body-chariot
     They run for a hundred years
     They run their lives
     Somewhere you need it
     What to pay the price?
     Not to pay the price

     Your seen grace
     Indra of this age
     Not to be forgotten
     Without giving values
     to get the horse-wind
     to get the wind

     Just think about it
     The sunlight is not available
     The light is not available
     No seasons would be formed
     Food, fruit, flowers do not bloom
     Only the darkness would be found
     That is what Indra gave
     of building life
     This is to build life

     Your seen grace
     Indra of this age
     Not to be forgotten
     Without giving values
     to get the horse-wind
     to get the wind

     Composer and Voice :- Pujya Shri Lalit Mohan Sahni Ji – Mumbai
     *Composition Date :- * 22.9.2021 2.30pm
     Raag :- Khamaj
     Singing time Second hour of the night, Rhythm Garba 6 volumes
     Today the first part of the bhajan , tomorrow the second part with the mantra
        Use🎧 for clarity

     Title:- Graces of Lord Indra Psalm 714th
     *Tarj :- *
     729-00130

     Horse = our life
     Tama = darkness

     Part 2/2

     O3m sasanatyam uta suryam sasanendra: sasana purubhojasam gam.
     
     Rigveda 3/34/9

     Your seen grace
     Indra of this age
     Not to be forgotten
     Without giving values
     to get the horse-wind
     to get the wind

     So let's look at more
     Cows are also Purubhojas
     These are Purubhojas
     Just eat fodder and grass
     They are the beauty of nectar
     They are the beauty of nectar
     This cow is also the voice
     of telling sweet words
     to bring sweetness

     Your seen grace
     Indra of this age
     Not to be forgotten

     This gold silver jewelry
     Diamonds are the gift of Indra
     are the gift of Indra
     It is Indra who makes it
     Seth in us houses
     Seth in us houses
     That's what's happening grace
     to make happy
     to make happy

     Your seen grace
     Indra of this age
     Not to be forgotten

     But those who are thieves
     They torment us
     They torment
     Our happiness peace wealth
     They erase
     They erase
     So Gaz had to be erased
     either to make Aryan
     to bring about change

     Your seen grace
     Indra of this age
     Not to be forgotten

     O Indra, how can you forget?
     We your favors
     to your benefactions
     who day and night us
     Donated springs
     of pleasant springs
     No power in speech
     to tell the glory
     Please tell me

     Your seen grace
     Indra of this age
     Not to be forgotten
     Without giving values
     to get the horse-wind
     to get the wind

     Composer and Voice :- Pujya Shri Lalit Mohan Sahni Ji – Mumbai
     *Composition Date :- * 22.9.2021 2.30pm
     Raag :- Khamaj
     Singing time Second hour of the night, Rhythm Garba 6 volumes
     Yesterday the first part was read and heard by the audience.
     Today is the second finale
     Use🎧 for clarity

     Title:- Graces of Lord Indra Psalm 714th B
     *Tarj :- *
     730-00131

     Purubhoja = giving food
     Horse-wind = the power of the souls
     Dasyu = demon,
     Gaz = curse, rebuke, lightning,
     

     Message of Pujya Shri Lalit Sahni Ji regarding the presented bhajan :-- 👇👇

     The graces of Lord Indra
                    Mantra preaching
     Look how much we owe Lord Indra.  He has created us horses for nothing of value.  Even the greatest craftsman in the world cannot make a living horse after getting millions of stamps and putting in all the birth.  Even the wind form horses he has given without price.  These horses are the life force in the body.  How miraculous are the wind and life force to carry the body chariot keeping all the parts of the body alive for years.
     Lord Indra has given us the sun.  Just imagine what would happen to us if this beam of light were taken away from us?  The sun makes day and night and the months. The sun makes the seasons.  The sun ripens the grain fruit tubers.  The sun holds the worlds and the worlds.  Sun, we cannot estimate your value!
     You are priceless.

    1135.   page 2
     In addition, he, Lord Indra, protects the Aryan caste by killing the dasyus (demons).  A thief is one who takes pleasure in destructive activities instead of doing constructive ones.  They destroy the world.  (They harm) the pleasures of the righteous and destroy the empire of peace.  In contrast, Arya is engaged in creative activities.  He tries, goes forward and tries again, tries again.  Thus Arya continues to progress.  The thieves obstruct the path of the Aryans and want to make the Tamasic triumph over the Sattvic.  Lord Indra does not allow their efforts to succeed.  If the blessed hand of Lord Indra's protection is not upon us, the thieves will increase so much that the life of the Aryans will become difficult.  He also gives the Aryans the strength to defeat the bandits.
     Sometimes he performs such a miracle that he strikes the robbers' robbery and makes them Aryans too.
     O Indra!  We can never forget your kindnesses we are most grateful to you.

     

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