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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 41 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 41/ मन्त्र 7
    ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    व॒यमि॑न्द्र त्वा॒यवो॑ ह॒विष्म॑न्तो जरामहे। उ॒त त्वम॑स्म॒युर्व॑सो॥

    स्वर सहित पद पाठ

    व॒यम् । इ॒न्द्र॒ । त्वा॒ऽयवः॑ । ह॒विष्म॑न्तः । ज॒रा॒म॒हे॒ । उ॒त । त्वम् । अ॒स्म॒ऽयुः । व॒सो॒ इति॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वयमिन्द्र त्वायवो हविष्मन्तो जरामहे। उत त्वमस्मयुर्वसो॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वयम्। इन्द्र। त्वाऽयवः। हविष्मन्तः। जरामहे। उत। त्वम्। अस्मऽयुः। वसो इति॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 41; मन्त्र » 7
    अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 4; मन्त्र » 2

    Bhajan -

    आज का वैदिक भजन 🙏 1154
    ओ३म् व॒यमि॑न्द्र त्वा॒यवो॑ ह॒विष्म॑न्तो जरामहे ।
    उ॒त त्वम॑स्म॒युर्व॑सो ॥
    ऋग्वेद 3/41/7

    हे इन्द्र! परमेश्वर्यशालिन्
    तुझको ही पाने की मन में लगन
    तुम्हारे प्रति प्यार की उमड़न
    रस-भीने भाव के भक्ति-भजन
    ले लो यह उपहार भावुक भगवन् !
    हे इन्द्र! परमेश्वर्यशालिन्

    सोने के माँगे कोई आभूषण 
    कोई हरियाली भरे धान्य अन्न
    कोई अति लाभ का माँगे व्यापार 
    कोई शत्रु विजय का माँगे अधिकार 
    माँगी किसी ने जी भर के विद्या 
    धर्माचरण माँगा, माँग ली प्रज्ञा
    इन सबका हमको, क्या लाभ है 
    यदि तू हमारे पास नहीं 
    तेरे बिना इनका क्या करें हम 
    हे इन्द्र! परमेश्वर्यशालिन्
    तुझको ही पाने की मन में लगन
    तुम्हारे प्रति प्यार की उमड़न
    रस-भीने भाव के भक्ति-भजन
    ले लो यह उपहार भावुक भगवन् !
    हे इन्द्र! परमेश्वर्यशालिन्

    झाँक कर तो देखो हमारे हृदयों में 
    प्रीति की हवियाँ हैं तेरे अर्पण 
    दम्भ, दर्प अहंभाव नहीं है इनमें 
    अन्त:स्तल का है अतिपन्न पूजन 
    कर रहे हैं तुमको प्यार प्रभुजी 
    तुम भी करो हम हमसे प्रीत-प्रवण 
    नहला रहे हैं तुम्हें भक्ति रस से
    नहलाओ आनन्द रस में भगवन्
    हृदय में बसे रहो सच्चिदानन्द
    हे इन्द्र! परमेश्वर्यशालिन्
    तुझको ही पाने की मन में लगन
    तुम्हारे प्रति प्यार की उमड़न
    रस-भीने भाव के भक्ति-भजन
    ले लो यह उपहार भावुक भगवन् !
    हे इन्द्र! परमेश्वर्यशालिन्
    तुझको ही पाने की मन में लगन

    रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई
    रचना दिनाँक :--   ९.७.२०११  १९.३० सायं

    राग :- केदार
    गायन समय रात्रि का पहला प्रहर, ताल दादरा 6 मात्रा

    शीर्षक :- हम तुझे तू हमें भजन ७३१वां

    *तर्ज :- *
    00140-740

    परमेश्वर्यशालिन् = अत्यंत ऐश्वर्यों से भरे आचरणशील परमेश्वर
    प्रज्ञा = बुद्धि
    दर्प = अहंकार, घमंड
    दम्भ = पाखंड ऊपरी दिखावट
    अतिपन्न = बीता हुआ, पहले का
    प्रवण = विनम्र

    Vyakhya -


    प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का सन्देश :-- 👇👇
    हम तुझे तू हमें

    संसार में सभी मनुष्य किसी ना किसी वस्तु की कामना करते हैं। एक महात्मा ने एक बड़े जन समुदाय से अपनी अपनी इच्छा के अनुरूप वर मांगने के लिए कहा। किसी ने सोने की हवेली मांगी, किसी ने खेतों की हरियाली मांगी, किसी ने व्यापार में असीम लाभ मांगा, किसी ने शत्रु विजय मांगी, किसी ने विद्या मांगी, किसी ने धर्म आचरण मांगा, पर जो सब धर्मों का धन है और जिसके मिलते ही सब धन अपने आप खिंचे चले आते हैं, उस इन्द्र प्रभु को किसी ने नहीं मांगा। पहले भी हम सांसारिक संपत्तियों को ही संपत्ति समझते थे, और उन्हें पाने को लालायित रहते थे। पर अब तो हमें इन्द्र प्रभु को पाने की लालसा लग गई है। हम उसी की कामना कर रहे हैं, उसी से प्रीति जोड़ रहे हैं।
    हे इन्द्र! हे परम ऐश्वर्यशालीन! हे वीरता के देव! हमारे अन्दर झांक कर देखो, हमारे हृदय में तुम्हारे प्रति प्यार उमड़ रहा है, हम तुम्हारी अर्चना कर रहे हैं। हम जानते हैं, पत्र, पुष्प, फल, पंचामृत आदि वस्तुएं तुम्हें तृप्ति प्रदान करने वाली नहीं हैं। अतैव भौतिक वस्तुओं का उपहार लेकर हम तुम्हारे पास नहीं आते, किन्तु भक्ति-भाव की रस-भीनी प्रशस्त हवियों से ही हम तुम्हारी परिचर्या करते हैं। यह हमारी हवियां, दम्भ दर्प, अहंभाव आदि से दूषित नहीं, बल्कि सर्वात्मना निर्मल और शुद्ध हैं। तुम शुद्ध को हम अपने अन्तरात्मा की शुद्ध हवियां समर्पित करते हैं। इस तुच्छ भेंट को हे प्रभु! तुम स्वीकार करो।
    हे आराध्य देव! हमारा छोटा-सा भावभीना उपहार तुम्हें स्वीकार हुआ या नहीं, इसकी पहचान यह है कि हमारी प्रीति के प्रत्युत्तर में तुम भी हमसे प्रीति करने लगे हो या नही। हमारी ओर से पूजा अर्चना के होते हुए भी यदि तुम हम में कोई रुचि नहीं ले रहे, हमारी ओर उदासीन हो, तो हम समझेंगे कि हमारी पूजा में ही कोई त्रुटि है। हमारे स्तोत्र, हमारे पूजा गीत शायद अंतःस्तल से निकले हुए नहीं हैं।
    अतएव वे तुम्हें नहीं रीझा पा रहे। हे हमारे अधिष्ठाता देव! हम तुम्हें हृदय की पूर्ण शुचिता के साथ अपना भक्ति -रस का उपहार अर्पित कर रहे हैं। हम तुम्हें प्यार कर रहे हैं, तुम भी हमें प्यार करो। हम तुम्हें भक्ति रस से नहला रहे हैं, तुम हमें अपने आनन्द रस से नहलाओ।
     हे वसो!तुम निवासक हो, हमें निवास प्रदान करो।

    🕉🧘‍♂️ईश भक्ति भजन
    भगवान् ग्रुप द्वारा🌹🙏
    वैदिक श्रोताओं को हार्दिक धन्यवाद🙏💕
     

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