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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 31 के मन्त्र
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ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 31/ मन्त्र 13
ये चा॒कन॑न्त चा॒कन॑न्त॒ नू ते मर्ता॑ अमृत॒ मो ते अंह॒ आर॑न्। वा॒व॒न्धि यज्यूँ॑रु॒त तेषु॑ धे॒ह्योजो॒ जने॑षु॒ येषु॑ ते॒ स्याम॑ ॥१३॥
स्वर सहित पद पाठये । चा॒कन॑न्त । चा॒कन॑न्त । नु । ते । मर्ताः॑ । अ॒मृ॒त॒ । मो इति॑ । ते । अंहः॑ । आ । अ॒र॒न् । व॒व॒न्धि । यज्यू॑न् । उ॒त । तेषु॑ । धे॒हि॒ । ओजः॑ । जने॑षु । येषु॑ । ते॒ । स्याम॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ये चाकनन्त चाकनन्त नू ते मर्ता अमृत मो ते अंह आरन्। वावन्धि यज्यूँरुत तेषु धेह्योजो जनेषु येषु ते स्याम ॥१३॥
स्वर रहित पद पाठये। चाकनन्त। चाकनन्त। नु। ते। मर्ताः। अमृत। मो इति। ते। अंहः। आ। अरन्। ववन्धि। यज्यून्। उत। तेषु। धेहि। ओजः। जनेषु। येषु। ते। स्याम ॥१३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 31; मन्त्र » 13
अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 31; मन्त्र » 3
अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 31; मन्त्र » 3
Bhajan -
हे दयानिधान !
क्या करूं जीवन, तेरे बिना, दया निधान!
दीप जले, ज्ञान के, जब किया, तेरा ध्यान।।
क्या करूं......
मैं राह देखूं तेरी, निज मन के द्वार पे
और इंतजार में पल-पल गुज़रे
आके दरस दिखा दे मेरे मन के दर्पण में
तेरी याद में भुला दूं, मैं सुध अपनी।।
क्या करूं......
मैं एक वस्तु मांगू, तू कई हज़ार दे
बदले में कुछ ना मांगे प्रभु तू इसके
क्या वस्तु मेरी तुझको मैं दूं उपहार में
करू भेंट प्रार्थना स्तुति श्रद्धा भक्ति। ।
क्या करूं........
तुझमें दया है जितनी उतना ही प्यार है
ऋषि साधु संत योगी तुझको भजते
आया शरण में तेरी चरणों में स्थान दे
मां की व्यथा प्रभु जी होगी सुननी।।
क्या करूं.......
जीवन प्रभुजी मेरा तुझपे निसार है
पाने को प्रेम तेरा यह मन तरसे
दिया ज्ञान का जला तू, अद्भुत प्रकाश दे
अनबुझ रहे यह मन की, जलती अग्नि।।
क्या करूं...
Vyakhya -
हे भगवन् तेरे बिना इस जीवन का क्या करूं? तेरे साथ रहूं तो तेरे ध्यान में ज्ञान का दीपक जला सकूं
मैं जन्म जन्मांतर से मन के द्वार पर तेरी बात जोह रहा हूं, अब और इंतजार मत करा।
मैं मांगू या ना मांगू तो निरंतर मुझे वस्तुएं प्रदान करता रहता है उसपर भी तुम्हारा कोई स्वार्थ नहीं सब कुछ हम जीवो के लिए ही है। मैं भौतिक वस्तुएं क्या मांगू वह तो तू अपने आप दे देता है, पर मैं तुझे क्या दे दूं सब कुछ तो तेरा ही है इसलिए देने के लिए मेरे पास प्रार्थना स्तुति श्रद्धा भक्ति है, और अटूट प्रेम है।
तेरी दया की भी तो कोई सीमा नहीं जिसमें प्यार ही प्यार है इसलिए साधु संत योगी तेरा ध्यान करते हैं, मैं भी तेरी शरण के लिए तरस रहा हूं मेरे इस व्यथित हृदय को
अपने संदर्शन से संतुष्टि दो।
इस प्रेम के लिए मैं अपना सर्वस्व जीवन निसार देना चाहता हूं । प्रभु कृपा करो ! दया करो !तुझे पाने के लिए मुझे अद्भुत प्रकाश दो ! हे अग्नि स्वरूप परमात्मा ! मेरे अंत:करण में भी अग्नि का प्रकाश करो यह अग्नि सर्वदा जलती ही रहे। जगमगाती रहे।
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