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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 42 के मन्त्र
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ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 42/ मन्त्र 11
तमु ष्टुहि यः स्वि॒षुः सु॒धन्वा॒ यो विश्व॑स्य॒ क्षय॑ति भेष॒जस्य॑। यक्ष्वा॑ म॒हे सौ॑मन॒साय॑ रु॒द्रं नमो॑भिर्दे॒वमसु॑रं दुवस्य ॥११॥
स्वर सहित पद पाठतम् । ऊँ॒ इति॑ । स्तु॒हि॒ । यः । सु॒ऽइ॒षुः । सु॒ऽधन्वा॑ । यः । विश्व॑स्य । क्षय॑ति । भे॒ष॒जस्य॑ । यक्ष्व॑ । म॒हे । सौ॒म॒न॒साय॑ । रु॒द्रम् । नमः॑ऽभिः । दे॒वम् । असु॑रम् । दु॒व॒स्य॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
तमु ष्टुहि यः स्विषुः सुधन्वा यो विश्वस्य क्षयति भेषजस्य। यक्ष्वा महे सौमनसाय रुद्रं नमोभिर्देवमसुरं दुवस्य ॥११॥
स्वर रहित पद पाठतम्। ऊँ इति। स्तुहि। यः। सुऽइषुः। सुऽधन्वा। यः। विश्वस्य। क्षयति। भेषजस्य। यक्ष्वा। महे। सौमनसाय। रुद्रम्। नमःऽभिः। देवम्। असुरम्। दुवस्य ॥११॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 42; मन्त्र » 11
अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 19; मन्त्र » 1
अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 19; मन्त्र » 1
Bhajan -
https://youtu.be/r2yRFxnXdhY?si=HIOv7_KWf1YsqK0Q
गीतकार वादक एवं गायक;-
ललित मोहन साहनी
विडियो निर्माण:-
अदिति शेठ
प्रिय वैदिक श्रोताओ आज बिटिया अदिति नै 88 वें वैदिक भजन का निर्माण किया है जो आप सबके साथ शेयर कर रहा हूँ।
🙏 आज का वैदिक भजन 🙏 1065
रुद्र की स्तुति कर
ओ३म् तमु॑ ष्टुहि॒ यः स्वि॒षुः सु॒धन्वा॒ यो विश्व॑स्य॒ क्षय॑ति भेष॒जस्य॑ ।
यक्ष्वा॑ म॒हे सौ॑मन॒साय॑ रु॒द्रं नमो॑भिर्दे॒वमसु॑रं दुवस्य ॥
ऋग्वेद 5/42/11
प्यारे मानव !!!
रुद्र परमेश्वर का,
मन में ध्यान कर,
रोग पीड़ा दु:ख हरे,
उसे प्रेम नमन-प्रदान कर
प्यारे मानव !!!
रुद्र परमेश्वर का,
मन में ध्यान कर
सत्य-उपदेशों का दाता,
सौमनस्य से यजन कर,
ना स्तुति से रीझता,
वो प्रेम भूखा, नमन कर,
उसे प्रसूनांजलि की भेंट कर,
प्रेमी रुद्र को मान तू कर
प्यारे मानव !!!
रुद्र परमेश्वर का,
मन में ध्यान कर
एक हाथ में तीर कमान रखें,
दूजे में रखता भेषज,
नष्ट करता आततायी,
को मगर है दीन-सेवक,
सिसकते पश्चातापी हृदय को,
सांत्वना देता मगर
प्यारे मानव !!!
रुद्र परमेश्वर का,
मन में ध्यान कर
रोग पीड़ा दु:ख हरे,
उसे प्रेम नमन-प्रदान कर
प्यारे मानव !!!
रुद्र परमेश्वर का,
मन में ध्यान कर
रुद्र देता दुष्ट को दण्ड,
श्रेष्ठ को प्रेमोपहार,
शिष्ट अपनी नम्रता से,
पाता है अखूट प्यार,
प्रेम उसको देके उसका,
प्रेम अमृत पान कर
प्यारे मानव !!!
रुद्र परमेश्वर का,
मन में ध्यान कर
रोग पीड़ा दु:ख हरे,
उसे प्रेम नमन-प्रदान कर
प्यारे मानव !!!
रुद्र परमेश्वर का,
मन में ध्यान कर
राग :- केदार
राग का गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर,
ताल कहरवा 8 मात्रा
सौमनस्य = पारस्परिक सद्भाव, प्रसन्नता
रुद्र = शिव का एक रूप जो शिष्टों का कल्याणकारी और दुष्टों का नाशक है
प्रसूनांजलि = हथेली में प्रेम पुष्प
अखूट = अत्यधिक, बहुत
भेषज = रोगनाशक दवा,
Vyakhya -
प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित श्री ललित साहनी का स्वाध्याय- सन्देश :-- 👇👇
रुद्र की स्तुति कर
हे मानव !तू रुद्र की स्तुति कर। रुद्र परमेश्वर का ही एक नाम है। वह रुद्र इस कारण कहाता है क्योंकि सबको सत्य-उपदेश देता है, दु:ख रोग आदि को दूर करता है और अन्यायी दुष्ट जनों को दंड देकर रुलाता है। उसके एक हाथ में तीर कमान है तो दूसरे हाथ में भेषज है।वह गर्वीले से गर्विले आतातायी के गर्व को चूर करता है। वह बड़े से बड़े नरसंहारक का संहार करता है। दूसरी ओर वह दर्द से कराह रहे आतुरों के दर्द को हरने वाला है। पीड़ितों के घाव को भरने वाला है । उसके पास हर रोग की दवा है उसके पास प्रत्येक सन्ताप की औषध है।
किसी सांसारिक ऐश्वर्य की हानि होने पर उभरते हुए मानसिक सन्ताप को वही हरता है। किसी प्रियजन के वियुक्त हो जाने पर अनुभूत होती हुई अंतःस्थल की मार्मिक वेदना से वही उद्धार करता है। कोई महापाप हो जाने पर पश्चातापसे सिसकते हृदयों को वही सांत्वना देता है।
महान सौमनस्य को पाने के लिए भी उस रुद्र का यजन कर। उसके यजन से तेरे मन में किसी के प्रति उत्पन्न होने वाले समस्त दुर्भावना दुर्विचार और वैमनस्य आंधी से तिनकों के समान उड़ जाएंगे। जब तू यह सोचेगा कि सब मानव उसी रुद्र के अमृत पुत्र हैं, तब पारस्परिक दौहार्द्र लुप्त होकर सौहार्द्र की भावना तुझमें हिलोरे लेने लगेंगीं। स्मरण रख वह रुद्र 'असुर' है, प्राण शक्ति का प्रदाता है, संजीवन रस पिलाने वाला है।
उसकी तू नमस्कारों द्वारा परिचर्या कर। दिखावे की स्थिति से वो रीझने वाला नहीं है। वह तो नमन का, हार्दिक प्रेम का, भूखा है। उसके प्रति तू विनम्र हो जा, विनत हो जा, नमस्कारों की प्रसूनांजलि का उपहार उसे प्रदान कर।तेरी भेंट स्वीकार होगी। तू कृतकृत्य हो जाएगा। तू रुद्र की वन्दना कर।