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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 21 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 21/ मन्त्र 4
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - इन्द्र: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    यस्ता च॒कार॒ स कुह॑ स्वि॒दिन्द्रः॒ कमा जनं॑ चरति॒ कासु॑ वि॒क्षु। कस्ते॑ य॒ज्ञो मन॑से॒ शं वरा॑य॒ को अ॒र्क इ॑न्द्र कत॒मः स होता॑ ॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः । ता । च॒कार॑ । सः । कुह॑ । स्वि॒त् । इन्द्रः॑ । कम् । आ । जन॑म् । च॒र॒ति॒ । कासु॑ । वि॒क्षु । कः । ते॒ । य॒ज्ञः । मन॑से । शम् । वरा॑य । कः । अ॒र्कः । इ॒न्द्र॒ । क॒त॒मः । सः । होता॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्ता चकार स कुह स्विदिन्द्रः कमा जनं चरति कासु विक्षु। कस्ते यज्ञो मनसे शं वराय को अर्क इन्द्र कतमः स होता ॥४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यः। ता। चकार। सः। कुह। स्वित्। इन्द्रः। कम्। आ। जनम्। चरति। कासु। विक्षु। कः। ते। यज्ञः। मनसे। शम्। वराय। कः। अर्कः। इन्द्र। कतमः। सः। होता ॥४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 21; मन्त्र » 4
    अष्टक » 4; अध्याय » 6; वर्ग » 11; मन्त्र » 4

    Bhajan -

    आज का वैदिक भजन 🙏 1141
    ओ३म् यस्ता च॒कार॒ स कुह॑ स्वि॒दिन्द्र॒: कमा जनं॑ चरति॒ कासु॑ वि॒क्षु ।
    कस्ते॑ य॒ज्ञो मन॑से॒ शं वरा॑य॒ को अ॒र्क इ॑न्द्र कत॒मः स होता॑ ॥
    ऋग्वेद 6/21/4

    शोधन प्रभु का करें
    ढूँढे तू दर-बदर 
    प्रभु तो है अन्तर में 
    तू दर्शन किए जा 
    शोधन प्रभु का करें

    अपनी कर्तृत्व शक्ति का 
    सुकृत है ईश्वर 
    सुकृत है ईश्वर 
    लोक-लोकांतरों में 
    उसका निर्माण दिखेगा
    शोधन प्रभु का करें

    उसी ने दिखाई है 
    रचना जगत् की 
    रचना जगत् की 
    उसी की नज़र से देख 
    सृष्टिकर्ता दिखेगा 
    शोधन प्रभु का करें

    यह प्रश्न अनास्था का  
    होssssss
    द्योतक नहीं है
    द्योतक नहीं है 
    वरन् गहरी श्रद्धा भक्ति का
    प्रकाशक दिखेगा
    शोधन प्रभु का करें

    न जाति प्रजा जन या देश का 
    करे भेद वो कभी भी 
    करे ना भेद 
    वह सर्वत्र है विद्यमान् 
    तो सबकी सुनेगा 
    शोधन प्रभु का करें

    तेरा कौन सा है यज्ञ 
    जो शान्तिकारक है 
    जो शान्तिकारक है
    वही यज्ञ करना चाहूँ 
    जो शान्ति करेगा 
    शोधन प्रभु का करें

    मैं शान्ति के साथ प्रभु !
    तुझे चाहता हूँ  
    तुझे चाहता हूँ  
    मैं जानू तड़प के बिना 
    तू कभी ना मिलेगा 
    शोधन प्रभु का करें
    ढूँढे तू दर-बदर 
    प्रभु तो है अन्तर में 
    तू दर्शन किए जा 
    शोधन प्रभु का करें

    रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई
    रचना दिनाँक :--  16.2.2015 16:30   गायन के समय कुछ बदलाव 17.9.2021 20.30 pm

    राग :- यमन कल्याण
    गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर, ताल दादरा ६ मात्रा

    शीर्षक :- इन्द्र कहां है?  भजन ७१९ वां
    *तर्ज :- *
    732-00133  

    शोधन = ढूंढ
    द्योतक = दिखलाने वाला, प्रकाश करने वाला ।
     

    Vyakhya -

    प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का सन्देश :-- 👇👇

    इन्द्र कहां है?
    ऋग्वेद ६.१९.१में भगवान के सम्बन्ध में आता है (सुकृत: कर्तृभिर्भूत् ) अपनी कर्तृत्व-शक्तियों के द्वारा वह सुकृत है।
    और भी लिखा है कि वह संपूर्ण लोक लोक अंतरों का निर्माता है। (तमुष्टुहि) उसकी स्तुति कर,ऐसा आदेश भी वेद में है। सृष्टि रचना को देखकर अनुमान से निश्चय होता है कि इस विशाल संसार का कर्ता अवश्य होना चाहिए। किन्तु जब वह दिखता नहीं तब मन में उद्वेग उत्पन्न होता है। उस उद्वेग को प्रश्न द्वारा व्यक्त किया है (यस्ता चकार स कुहस्विदिन्द्र:) यानी यह प्रश्न अनास्था या अश्रद्धा का द्योतक नहीं। वरन् गहरी श्रद्धा तथा भक्ति का प्रकाशक है। अनुमान से जानी हुई वस्तु के प्रत्यक्ष होने की इच्छा का होना स्वाभाविक ही है। अगले प्रश्न हमारी धारणा के सर्वथा पोषक हैं। यथा --(कमा जनं चरति कासु विक्षु)=
    वह किन प्रजाओं में,[ किस देश में ]किस जन के पास विचरता है? अर्थात बताओ भगवान को कौन सा देश प्यारा है? कौन सी जाति विशेष भगवान की अभिष्ट है? और कौन सा मनुष्य ऐसा है जिसके पास भगवान (आ चरति) सब ओर से प्राप्त है? अर्थात् मुझे बताओ मैं किस प्रजा, किस देश में जा बसूं? भगवान भक्त के वश में सुने जाते हैं। उस भक्त का पता बताओ। मैं उसके पास जाऊंगा। अहो ! कितनी व्यग्रता है !
    यह व्यग्रता यहीं समाप्त नहीं हुई। अनुमान से भगवान के सम्बन्ध में यह सामान्य ज्ञान हो चुका है कि वह सर्वत्र विद्यमान है, सर्वत्र विद्यमान होने से सबकी सुनता है, अतः उसे स्वयं सुनाने के भाव से पुकार उठता है--( कस्ते यज्ञो मनासे शम्) तेरा कौन सा यज्ञ= पूजा प्रकार मन के लिए शांतिप्रद है? मन में अशान्ति है। प्रभु!  तू स्वयं ही बता कैसे इस मन को, व्याकुल मन को चैन पड़ेगा? कौन सा यज्ञ है? भगवन् मैं केवल मन की शान्ति ही नहीं चाहता मैं तो तुझे चाहता हूं अतः बता, हे पिता!बता( वराय को अर्क)= तुझे अपनाने का कौन सा मन्त्र है? कौन सा  गुप्त उपाय तुझे अपनाने का है ?क्या कोई ऐसा भी है जिसने तुझे अपना रखा है? (कतम :स होता)=वह स्वीकार करने वाला कौन सा है?
     जब तक पूरी तड़प ना हो भगवान नहीं मिलते। पूरी तड़प का यह एक नमूना है।

    🕉🧘‍♂️ईश भक्ति भजन
    भगवान् ग्रुप द्वारा🌹🙏
    वैदिक श्रोताओं को हार्दिक शुभकामनाएं🌹🙏

     

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