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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 64 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 64/ मन्त्र 20
    ऋषिः - कश्यपः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    आ यद्योनिं॑ हिर॒ण्यय॑मा॒शुॠ॒तस्य॒ सीद॑ति । जहा॒त्यप्र॑चेतसः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । यत् । योनि॑म् । हि॒र॒ण्यय॑म् । आ॒शुः । ऋ॒तस्य॑ । सीद॑ति । जहा॑ति । अप्र॑ऽचेतसः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ यद्योनिं हिरण्ययमाशुॠतस्य सीदति । जहात्यप्रचेतसः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । यत् । योनिम् । हिरण्ययम् । आशुः । ऋतस्य । सीदति । जहाति । अप्रऽचेतसः ॥ ९.६४.२०

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 64; मन्त्र » 20
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 39; मन्त्र » 5

    Bhajan -

    आज का वैदिक भजन 🙏 1151
    ओ३म् आ यद्योनिं॑ हिर॒ण्यय॑मा॒शुॠ॒तस्य॒ सीद॑ति ।
    जहा॒त्यप्र॑चेतसः ॥
    अ॒भि वे॒ना अ॑नूष॒तेय॑क्षन्ति॒ प्रचे॑तसः ।
    मज्ज॒न्त्यवि॑चेतसः ॥
    ऋग्वेद 9/64/20, 9/64/21

    मूर्खता में रहने वाले जन
    दुराग्रह में चलते रहते हैं 
    ऋत-सत्य की भी परवाह कहाँ 
    व्यवहार बदलते रहते हैं
    मूर्खता में रहने वाले जन

    ज्ञानी की पहली निशानी है 
    ऋत-सत्य नियम पर चलते हैं
    उत्तम फल पाते इस कारण
    समृद्धि-सुखों में पलते हैं
    लेकिन जो मूढ हैं ऋत से परे
    वो दुख-कष्टों में डलते हैं
    ऋत-सत्य की भी परवाह कहाँ 
    व्यवहार बदलते रहते हैं
    मूर्खता में रहने वाले जन

    पहचान यही बुद्धिमानों की
    भगवान्  की स्तुति में रहते हैं
    देव-पूजा दान सङ्गति करण
    से अन्न-ज्ञान-दान करते हैं
    वो ग्रहण भलाई को करते
    और दुर्गुण सर्वदा तजते हैं
    ऋत-सत्य की भी परवाह कहाँ 
    व्यवहार बदलते रहते हैं
    मूर्खता में रहने वाले जन

    विद्वान् उचित-अनुचित जाने 
    और सत्य विवेचन करते हैं
    गुण कर्म स्वभावों में कल्याण
    करके भी दम नहीं भरते हैं
    सुधी नाव को पार लगाते हैं
    करें मूढ छेद, डूब मरते हैं
    ऋत-सत्य की भी परवाह कहाँ 
    व्यवहार बदलते रहते हैं
    मूर्खता में रहने वाले जन
    दुराग्रह में चलते रहते हैं 
    ऋत-सत्य की भी परवाह कहाँ 
    व्यवहार बदलते रहते हैं
    मूर्खता में रहने वाले जन
               
    रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई
    रचना दिनाँक :--  २९.९.२०२१     ६.४५सायं

    राग :- मालगुंजी
    गायन समय रात्रि का दूसरा प्रहर, ताल विलम्बित कहरवा 8 मात्रा

    शीर्षक :- मूढामूढभेद 🎧भजन 728 वां👏🏽

    *तर्ज :- *
    738-00139 

    दुराग्रह = हठ, बात में अड़ना
    विवेचन = सच और झूठ का निर्णय करना     
    सुधी = बुद्धिमान
    मूढ़ = मूर्ख
    अमूढ = चतुर, सयाना
    दम भरना = विश्वासपात्र होना
    संगतिकरण = अत्यंत प्रीति एवं भक्ति के साथ मिलकर सत्पुरुषों की सत्संगति, आराधना करना संगति करण कहलाता है

     

    Vyakhya -

    प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का सन्देश :-- 👇👇
    मूढामूढभेद
    इन दो मन्त्रों में ज्ञानी अज्ञानी की निशानी बताई गई है। वेद के सीधे-साधे हृदय तक पहुंचने वाले शब्द कितनी गंभीर बात का ऐसा सरल विवेचन करते हैं।
    ज्ञानी की पहली निशानी यह है कि वह ऋत का, सत्य का, सृष्टि नियम का, अनुगामी होता है। सृष्टि नियम के अनुगमन का फल उसे उत्तम अवस्था मिलती है। मूढ़(मूर्ख) लोग सृष्टि नियम को जानते ही नहीं, ना उसे जाने का यत्न करते हैं ,जतलाने पर उसे ग्रहण करने की चेष्टा भी नहीं करते ,अतः वह इनका संग छोड़ देता है।
    बुद्धिमान की दूसरी पहचान यह है कि वह भगवान की स्तुति करता है। ज्ञानी जन सदा यज्ञ करते हैं। लोगों को ज्ञान, दान अनादि से तृप्त करते हैं,श्रेष्ठ पुरुषों की संगति करते हैं प्रभु- पूजा करते हैं। ज्ञान का फल भी यही है कि वह भले बुरे की पहचान करके भले का ग्रहण और बुरे का त्याग करें ।जैसा कि वेद में कहा है (चित्तिमचितिं चिनवद् वि  विद्वान) ऋग्वेद ४.२.११ 
    विद्वान ज्ञान और अज्ञान की विशेष पहचान करें ,अर्थात् पंडित का कर्तव्य है कि उचित-अनुचित का यथा योग्य विवेचन करें।जिसके द्वारा वह अपना तथा दूसरों का कल्याण कर सकेगा। मूर्खों में यह गुण नहीं होता अतः वे 'मज्जन्त्यविचेतस:'  मूढ़ अचेत डूब मरते हैं। 
    ज्ञानी ही भवसागर से तरते हैं क्योंकि उन्होंने तारने वालों से सख्य किया है। तरने के साधनों को संभाल रखा है। 
    मूर्ख जहाज की पेंदी में छेद कर रहा है, डूबेगा नहीं तो क्या होगा?

    🕉🧘‍♂️ईश भक्ति भजन
    भगवान् ग्रुप द्वारा🌹🙏
    🕉🧘‍♂️वैदिक श्रोताओं को हार्दिक शुभकामनाएं🌹 🙏
     

     

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