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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 573
ऋषिः - द्वित आप्त्यः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
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प्र꣡ पु꣢ना꣣ना꣡य꣢ वे꣣ध꣢से꣣ सो꣡मा꣢य꣣ व꣡च꣢ उच्यते । भृ꣣तिं꣡ न भ꣢꣯रा म꣣ति꣡भि꣢र्जु꣣जो꣡ष꣢ते ॥५७३॥

स्वर सहित पद पाठ

प्र꣢ । पु꣣नाना꣡य꣢ । वे꣣ध꣡से꣢ । सो꣡मा꣢꣯य । व꣡चः꣢꣯ । उ꣣च्यते । भृति꣢म् । न । भ꣣र । मति꣡भिः꣢ । जु꣣जो꣡ष꣢ते ॥५७३॥


स्वर रहित मन्त्र

प्र पुनानाय वेधसे सोमाय वच उच्यते । भृतिं न भरा मतिभिर्जुजोषते ॥५७३॥


स्वर रहित पद पाठ

प्र । पुनानाय । वेधसे । सोमाय । वचः । उच्यते । भृतिम् । न । भर । मतिभिः । जुजोषते ॥५७३॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 573
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 3; मन्त्र » 8
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 10;
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पदार्थ -
(पुनानाय) अध्येष्यमाण—विवेचन में आते हुए—(वेधसे) विधाता—“वेधसे विधात्रे” [निरु॰ १३.३०, अथवा १४.४२] (वच उच्यते) स्तुति की जाती है। (मतिभिः) स्तुतियों द्वारा “वाग्वै मतिः” [श॰ ८.१.२.७] “मन्यते-अर्चतिकर्मा” [निघं॰ २.६] (प्रजुजोषते सोमाय) अत्यन्त परितृप्त करते हुए उपासक के लिये “जुष परितर्पणे-इत्यर्थे” [चुरादि॰] (भृतिं न भर) स्तुतियों के प्रतीकार भृतिरूप—अध्यात्मपुष्टि को जीवन में भर दे।

भावार्थ - मनन चिन्तन करते हुए विधाता शान्तस्वरूप परमात्मा के लिये प्रार्थना करनी चाहिए कि वह स्तुतियों के प्रतीकार में अध्यात्म पुष्टि जीवन में भर दे॥८॥

विशेष - ऋषिः—द्वितः (दो भावनाओं से स्तुति करने वाला)॥<br>

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