Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 60
ऋषिः - उत्कीलः कात्यः
देवता - अग्निः
छन्दः - बृहती
स्वरः - मध्यमः
काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
1
अ꣣य꣢म꣣ग्निः꣢ सु꣣वी꣢र्य꣣स्ये꣢शे꣣ हि꣡ सौभ꣢꣯गस्य । रा꣡य꣣ ई꣢शे स्वप꣣त्य꣢स्य꣣ गो꣡म꣢त꣣ ई꣡शे꣢ वृत्र꣣ह꣡था꣢नाम् ॥६०॥
स्वर सहित पद पाठअ꣣य꣢म् । अ꣣ग्निः꣢ । सु꣣वी꣡र्य꣣स्य । सु꣣ । वी꣡र्य꣢꣯स्य । ई꣡शे꣢꣯ । हि । सौ꣡भ꣢꣯गस्य । सौ । भ꣣गस्य । रायः꣢ । ई꣣शे । स्वपत्य꣡स्य꣣ । सु꣣ । अपत्य꣡स्य꣢ । गो꣡म꣢꣯तः । ई꣡शे꣢꣯ । वृ꣣त्रह꣡था꣢नाम् । वृ꣣त्र । ह꣡था꣢꣯नाम् ॥६०॥
स्वर रहित मन्त्र
अयमग्निः सुवीर्यस्येशे हि सौभगस्य । राय ईशे स्वपत्यस्य गोमत ईशे वृत्रहथानाम् ॥६०॥
स्वर रहित पद पाठ
अयम् । अग्निः । सुवीर्यस्य । सु । वीर्यस्य । ईशे । हि । सौभगस्य । सौ । भगस्य । रायः । ईशे । स्वपत्यस्य । सु । अपत्यस्य । गोमतः । ईशे । वृत्रहथानाम् । वृत्र । हथानाम् ॥६०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 60
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 6;
Acknowledgment
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 6;
Acknowledgment
पदार्थ -
(अयम्-अग्निः) यह सर्वप्रकाशक परमात्मदेव (सुवीर्यस्य सौभगस्य-हि-ईशे) उत्तम आयु—मुक्ति की आयु “आयुर्वीर्यम्” [मै॰ १.७.५] का और सौभाग्य का स्वामित्व करता है अतएव उसका प्रदान करता है (स्वपत्यस्य गोमतः-रायः-ईशे) उत्तम अपत्य सन्तान जिससे होती है ऐसे, प्रशस्त इन्द्रियाँ रहती हैं जिसमें ऐसे सदाचार संयमरूप ऐश्वर्य का स्वामित्व करता है (वृत्रहथानाम्-ईशे) पापों के हनन साधनों का “पाप्मा वै वृत्रः” [श॰ ११.१.५.७] भी स्वामित्व करता है॥
भावार्थ - परमात्मा मानव के मोक्षैश्वर्य का भी स्वामी है जीवन्मुक्त को सौभाग्य प्रदान करता है और मृत्यु के अनन्तर मोक्ष की प्रशस्तदीर्घ आयु को प्रदान करता है तथा इहलोक संसार में मानव की प्रशस्त बीजशक्ति के स्थिर भाव-सदाचार प्रशस्त इन्द्रियों वाले संयमरूप ऐश्वर्य का भी स्वामी है उसे प्रदान करता है। इन दोनों ऐश्वर्यों के घातक पाप भावों के नाशक विचारों का भी स्वामी है उन सद् विचारों से पाप भाव नष्ट हो जाते हैं॥६॥
विशेष - ऋषिः—उत्कीलः (पापदारिद्र्य का उच्छेद करने वाला उपासक)॥<br>
इस भाष्य को एडिट करें