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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 60
ऋषिः - उत्कीलः कात्यः
देवता - अग्निः
छन्दः - बृहती
स्वरः - मध्यमः
काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
2
अ꣣य꣢म꣣ग्निः꣢ सु꣣वी꣢र्य꣣स्ये꣢शे꣣ हि꣡ सौभ꣢꣯गस्य । रा꣡य꣣ ई꣢शे स्वप꣣त्य꣢स्य꣣ गो꣡म꣢त꣣ ई꣡शे꣢ वृत्र꣣ह꣡था꣢नाम् ॥६०॥
स्वर सहित पद पाठअ꣣य꣢म् । अ꣣ग्निः꣢ । सु꣣वी꣡र्य꣣स्य । सु꣣ । वी꣡र्य꣢꣯स्य । ई꣡शे꣢꣯ । हि । सौ꣡भ꣢꣯गस्य । सौ । भ꣣गस्य । रायः꣢ । ई꣣शे । स्वपत्य꣡स्य꣣ । सु꣣ । अपत्य꣡स्य꣢ । गो꣡म꣢꣯तः । ई꣡शे꣢꣯ । वृ꣣त्रह꣡था꣢नाम् । वृ꣣त्र । ह꣡था꣢꣯नाम् ॥६०॥
स्वर रहित मन्त्र
अयमग्निः सुवीर्यस्येशे हि सौभगस्य । राय ईशे स्वपत्यस्य गोमत ईशे वृत्रहथानाम् ॥६०॥
स्वर रहित पद पाठ
अयम् । अग्निः । सुवीर्यस्य । सु । वीर्यस्य । ईशे । हि । सौभगस्य । सौ । भगस्य । रायः । ईशे । स्वपत्यस्य । सु । अपत्यस्य । गोमतः । ईशे । वृत्रहथानाम् । वृत्र । हथानाम् ॥६०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 60
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 6;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 6;
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भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
अब परमात्मा और राजा किस-किस वस्तु के अधीश्वर हैं, यह कहते हैं।
पदार्थ
(अयम्) यह संमुख विद्यमान (अग्निः) जगत् का अग्रनायक परमेश्वर और प्रजाओं से चुना गया राष्ट्रनायक राजा (सुवीर्यस्य) शारीरिक और आध्यात्मिक बल का तथा (सौभगस्य) धर्म, यश, श्री, ज्ञान, वैराग्य आदि सौभाग्यों का (हि) निश्चय ही (ईशे) अधीश्वर है, (स्वपत्यस्य) उत्कृष्ट सन्तान से युक्त तथा (गोमतः) गाय, पृथिवी, सूर्यकिरण, वेदवाणी आदि से युक्त (रायः) ऐश्वर्य का (ईशे) अधीश्वर है। (वृत्रहथानाम्) पापसंहारों का व शत्रु-संहारों का (ईशे) अधीश्वर है ॥६॥ इस मन्त्र में अर्थश्लेषालङ्कार है। ईशे की आवृत्ति में लाटानुप्रास है ॥६॥
भावार्थ
जैसे राजा अपनी राष्ट्रभूमि का तथा राष्ट्रभूमि में विद्यमान धन, धान्य, वीर पुरुष आदिकों का और गाय आदि पशुओं का अधीश्वर होता है, वैसे ही परमेश्वर सब भौतिक और आध्यात्मिक धनों का अधीश्वर है। वही शारीरिक बल, आत्मिक बल, धृति, धर्म, कीर्ति, श्री, ज्ञान, वैराग्य, श्रेष्ठ सन्तान, गाय, भूमि, सूर्य और वेदवाणी हमें प्रदान करता है। वही जीवन के विनाशकारी पापों से हमारी रक्षा करता है। इसलिए उसे भूरि-भूरि धन्यवाद हमें देने चाहिएँ ॥६॥
पदार्थ
(अयम्-अग्निः) यह सर्वप्रकाशक परमात्मदेव (सुवीर्यस्य सौभगस्य-हि-ईशे) उत्तम आयु—मुक्ति की आयु “आयुर्वीर्यम्” [मै॰ १.७.५] का और सौभाग्य का स्वामित्व करता है अतएव उसका प्रदान करता है (स्वपत्यस्य गोमतः-रायः-ईशे) उत्तम अपत्य सन्तान जिससे होती है ऐसे, प्रशस्त इन्द्रियाँ रहती हैं जिसमें ऐसे सदाचार संयमरूप ऐश्वर्य का स्वामित्व करता है (वृत्रहथानाम्-ईशे) पापों के हनन साधनों का “पाप्मा वै वृत्रः” [श॰ ११.१.५.७] भी स्वामित्व करता है॥
भावार्थ
परमात्मा मानव के मोक्षैश्वर्य का भी स्वामी है जीवन्मुक्त को सौभाग्य प्रदान करता है और मृत्यु के अनन्तर मोक्ष की प्रशस्तदीर्घ आयु को प्रदान करता है तथा इहलोक संसार में मानव की प्रशस्त बीजशक्ति के स्थिर भाव-सदाचार प्रशस्त इन्द्रियों वाले संयमरूप ऐश्वर्य का भी स्वामी है उसे प्रदान करता है। इन दोनों ऐश्वर्यों के घातक पाप भावों के नाशक विचारों का भी स्वामी है उन सद् विचारों से पाप भाव नष्ट हो जाते हैं॥६॥
विशेष
ऋषिः—उत्कीलः (पापदारिद्र्य का उच्छेद करने वाला उपासक)॥<br>
विषय
अग्नि के तीन लक्षण
पदार्थ
(अयम्)=यह (अग्निः)= आगे बढ़ने के स्वभाववाला जीव (सुवीर्यस्य) - उत्तम वीर्य का (ईशे) = ईश होता है। भोजन के अनुरूप शरीर में शक्ति का निर्माण होता है - तामस भोजन से तामस शक्ति, राजस से राजस व सात्त्विक से सात्त्विक । अग्रिङ सुवीर्य का ईश है, इसलिए हि-निश्चय से (सौभगस्य) = उत्तमता व सौन्दर्य का भी ईश है। अग्नि का यही पहला लक्षण है।
दूसरा लक्षण यह है कि यह अग्नि (रायः) = [रा दाने] देने योग्य धन का (इशे) = ईश होता है, क्योंकि यह सदा धन का दान में विनियोग करता है, इसीलिए स्(वपत्यस्य) = उत्तम सन्तान का भी ईश बनता है। ("श्रदस्मै वचसे नरो दधातन यदाशीर्दा दम्पती वाममश्नुतः ”) प्रभु कहते हैं कि इस वचन पर श्रद्धा करो कि दिल खोलकर दान देनेवाले पति-पत्नी सुन्दर सन्तान प्राप्त करते हैं। दान लोभ को नष्ट कर सब व्यसनों को नष्ट कर देता है, अतः पवित्र पति-पत्नी उत्तम सन्तान क्यों न पाएँगे?
इस अग्नि का तीसरा लक्षण यह है कि यह (गोमतः) = गोमानों का (ईशे) = मुखिया होता है। उस समय जबकि सब गौ रखते थे, सभी गोमान् थे। उन गोमानों में भी जो खूब उत्तम गौवें रखता है वह गोमानों का ईश (वृत्रहथानाम्)=वृत्र को मारनेवालों का भी ईश बनता है। कामादि वासनाएँ वृत्र हैं, गो- दुग्ध का सेवन करनेवाला उनसे बचा रहता है । यह दुग्ध सात्त्विक होने से सात्त्विक भावों को ही जाग्रत् करता है, इसीलिए वेद में गौ को रुद्र और आदित्यों को पैदा करनेवाली कहा गया है
भावार्थ
मनुष्य सुवीर्य का ईश बन सौभाग्य का ईश बने, धन का दान करते हुए उत्तम सन्तान प्राप्त करे, गो- दुग्ध के सेवन से सात्त्विक वृत्तिवाला बने। इस प्रकार अपने को इन तीन उत्तम नियमों में बाँधकर मनुष्य मन्त्र का ऋषि ‘उत्कील' बने।
विषय
परमेश्वर की स्तुति
भावार्थ
भा० = ( अयम् ) = यह (अग्नि: ) = अग्नि, परमेश्वर और राजा ( सुवीर्यस्य ) = उत्तम वीर्य, सामर्थ्य का और ( सौभगस्य ) = सौभाग्य का ( हि ) = भी ( ईशे ) = स्वामी, अधिष्ठाता है । वही अग्नि ( रायः ) = समस्त धनों का ( ईशे ) = स्वामी है । वही ( स्वपत्यस्य ) = सुन्दर पुत्र प्रजा का ( गोमत: ) = गौ आदि पशुओं से सम्पन्न ( रायः ) = धन धान्य का ( ईशे ) = स्वामी है । वही ( वृत्रहथानां ) = वृत्र, विघ्नकारी पापों, पापी पुरुषों के मारने वाले बल और साधनों का भी ( ईशे ) = स्वामी है ।
टिप्पणी
६० -‘ईशेमहः' इति ऋ० ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः - उत्कील: आत्कीलो वा कात्य: ।
छन्दः - बृहती।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ परमात्मा राजा च कस्य वस्तुनोऽधीश्वरोऽस्तीत्याह।
पदार्थः
(अयम्) एष पुरो विद्यमानः (अग्निः) जगदग्रणीः परमेश्वरः प्रजाभि- र्निर्वाचितोराष्ट्रनायको राजा वा (सुवीर्यस्य) दैहिकाध्यात्मिकबलस्य, (सौभगस्य) धर्मयशःश्रीज्ञानवैराग्यादिसौभाग्यस्य च (हि) निश्चयेन (ईशे) ईष्टे, (स्वपत्यस्य) शोभनसन्तानयुक्तस्य, (गोमतः) गोपदवाच्यधेनुपृथिवीसूर्यरश्मिवेदवागादियुक्तस्य च (रायः) ऐश्वर्यस्य (ईशे) ईष्टे। (वृत्रहथानाम्) पापसंहाराणां शत्रुसंहाराणां चापि (ईशे) ईष्टे। ईशे इत्यत्र लोपस्त आत्मनेपदेषु।’ अ० ७।१।४१ इति तकारलोपः। हथ इत्यत्र हन् हिंसागत्योः इत्यस्मात् हनिकुषिनीरमिकाशिभ्यः क्थन्।’ उ० २।२ इति क्थन्। अधीगर्थदयेषां कर्मणि।’ अ० २।३।५२ इत्यनेन ईशधातोः कर्मसु षष्ठी ॥६॥२ अत्र अर्थश्लेषालङ्कारः। ईशे इत्यस्यावृत्तौ लाटानुप्रासः ॥६॥
भावार्थः
यथा राजा स्वराष्ट्रभूमेस्तद्वर्तिनां धनधान्यवीरपुरुषादीनां गवादिपशूनां चाधीश्वरो भवति, तथैव परमेश्वरः समस्तानां भौतिकाध्यात्मिकानां धनानामधीश्वरोऽस्ति। स एव शरीरबलम्, आत्मबलं, धृतिं, धर्मं, कीर्तिं, श्रियं, ज्ञानं, वैराग्यं, श्रेष्ठसन्तानं, धेनुं, पृथिवीं, सूर्यं, वेदवाचं चास्मभ्यं प्रयच्छति। स एव जीवविनाशकेभ्यः पापेभ्योऽस्मान् रक्षति। अतस्तत्कृते भूरिक्षो धन्यवादा अस्माभिः प्रदेयाः ॥६॥
टिप्पणीः
१. ऋ० ३।१६।१ हि इत्यत्र महः इति पाठः। २. ऋग्भाष्ये दयानन्दर्षिणा मन्त्रोऽयं राजपक्षे व्याख्यातः।
इंग्लिश (3)
Meaning
This God is the Lord great prosperity, riches, wealth, noble off-spring, store of kine, and the means for the eradication of diseases and sins.
Translator Comment
Noble offspring means His subjects.
Meaning
Agni, the ruler, rules strength and power, heroes and warriors of the world, rules the greatness and grandeur of good fortune, rules the wealth of nations, rules the families blest with children of noble character, rules the master of cows, land, and knowledge and language, and rules and controls those who destroy the darkness of ignorance and hoarders of wealth. (Rg. 3- 16-1)
Translation
This adorable God is the Lord of heroic strength and verily of good fortune. He is the Lord of wealth and giver of progeny and cattle; He commands the forces which repel evils. (Cf. Rv III.16.1)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (अयम् अग्निः) એ સર્વવ્યાપક પરમાત્મદેવ (सुवीर्यस्य सौभगस्य हि ईशे) શ્રેષ્ઠ આયુમુક્તિની આયુ અને સૌભાગ્યનું સ્વામીત્વ કરે છે તેથી તેનું પ્રદાન કરે છે (स्वपत्यस्य गोमतः रायः ईशे) ઉત્તમ અપત્ય - સંતાન જેથી થાય છે એવા, પ્રશસ્ત ઇન્દ્રિયો રહે છે જેમા એવા સદાચાર સંયમરૂપ ઐશ્વર્યનું સ્વામીત્વ કરે છે. (वृत्रथानाम् ईशे) પાપોના હનન કરવાના સાધનોનું પણ સ્વામીત્વ કરે છે. (૬)
भावार्थ
ભાવાર્થ : પરમાત્મા મનુષ્યના મોક્ષઐશ્વર્યનો સ્વામી છે, જીવન મુક્તને સૌભાગ્ય પ્રદાન કરે છે અને મૃત્યુ પછી મોક્ષની પ્રશસ્ત દીર્ઘ આયુ પણ પ્રદાન કરે છે તથા આ સંસારમાં મનુષ્યની પ્રશસ્ત બીજ શક્તિને સ્થિર ભાવ-સદાચાર પ્રશસ્ત ઈન્દ્રિયોવાળા સંયમરૂપ ઐશ્વર્યનો પણ સ્વામી છે, તેને પ્રદાન કરે છે. આ બન્ને ઐશ્વર્યોના ઘાતક પાપ ભાવોના નાશક વિચારોના પણ સ્વામી છે, તે સદ્વિચારોથી પાપભાવ નાશ પામે છે. (૬)
उर्दू (1)
Mazmoon
بُرائیوں کا ناشک سوبھاگیہ داتا
Lafzi Maana
(ایمّ اگنی) یہ روشنیوں کی منّور روشنی ایشور (سُوویرلیپہ) اُتم ویر یہ وان بل سا مترتھیہ کی شبھ پریرنا دینے والے (وسؤ بھگبہ) دھرم، یش، دھن، ایشوریہ اور روحانی دولت کا (اِیشے) سوامی یا ایشور ہے (رایہ اِیشے) سب سمپداؤں کا ایشور ہے۔
(سوپتسیہ) جن سے ہماری سنتانیں اُتم ہوتی ہیں اور (گومتہ) ہماری اِندریاں شبھُ مارگ پرچل کر سریشٹھ ہوتی ہیں۔ ہمارا گئو آدی پشو دھن اُتم ہوتا ہے۔ اور وہ پربھُو (وِرتر ہتھا نام) پاپوں کا ناس کرنے والے سادھنوں کا بھی ایشور ہے، یعنی اُس کی بھگتی، عبادت یا دھیان کرنے سے اُس کے اُتم گُن کرم یا صفاتِ مجوزہ اپنے اپ عابد میں داخل ہوتے جانے سی بھگت، اُپاسک پاپ کے مل (گند) سے چھُوٹ کر سونے کی طرح کنُدن بنتا چلا جاتا ہے اور ہو جاتا ہے، سوبھاگیہ شالی اور ایشوریہ دان۔
मराठी (2)
भावार्थ
जसा राजा आपल्या राष्ट्रभूमीचा व राष्ट्रभूमीत विद्यमान धन, धान्य, वीर पुरुष इत्यादींचा व गाय इत्यादी पशूंचा अधीश्वर असतो, तसेच परमेश्वर संपूर्ण भौतिक व आध्यात्मिक धनाचा अधीश्वर आहे. तोच शारीरिक बल, आत्मिक बल, धृती, धर्म, कीर्ती, श्री, ज्ञान, वैराग्य, श्रेष्ठ संतान, गाय, भूमी, सूर्य व वेदवाणी आम्हाला प्रदान करतो. तोच जीवनाच्या विनाशकारी पापांपासून आमचे रक्षण करतो त्यासाठी त्याला आम्ही खूप खूप धन्यवाद दिले पाहिजे. ॥६॥
विषय
आता परमात्मा आणि राजा कोणकोणत्या वस्तुचे अधीश्वर आहेत - हे सांगतात.
शब्दार्थ
(अयम्) हा सम्मुख विद्यमान (वाध्यानगत) (अग्नि:) जगन्नायक परमेश्वर आणि प्रजेने निवडलेला राजा (सुवीर्यस्य) शारीरिक व आत्मिक शक्तींचा तसेच (सौभगस्य) धर्म, यश, श्री, ज्ञान, वैराग्य आदी सौभाग्याचे (हि) निश्चयाने (ईरो) अधीश्वर आहे. राजा (स्वास्त्स्य) उत्तम संतानांनी युक्त स्वामी आहे. (गोमत:) आणि गौ, पृथ्वी, सूर्यकिरण, वेदवाणी आदींनी युक्त (राय:) ऐश्वर्याचा (ईशे) अधीश्वर परमेश्वर आहे. याशिवाय (वृत्रहथानाम्) ईश्वर पाप संहाराचा आणि राजा रिपुसंहाराचा अधीश्वर आहे. ।।६।।
भावार्थ
ज्याप्रमाणे राजा आपल्या राष्ट्र भूमीचा आणि राष्टभूमीत विद्यमान धन, धान्य, वीरपुरुष आदींचा व गौ आदी पशूंचा अधीश्वर असतो. तद्वत परमेश्वर सर्व भौतिक आणि आध्यात्मिक धनांचा अधीश्वर आहे. तोच आम्हाला शारीरिक शक्ती, आत्मिक बळ, धृति, धर्म, कीर्ती, श्रक्ष, ज्ञान, वैराग्य, श्रेष्ठ संतान, गौ, भूमी, सूर्य आणि वेदवाणी आम्हाला प्रदान करतो. जीवनाचा विनाश करणाऱ्या पापकर्मापासून तोच आम्हाला वाचवतो. याकरीता आम्ही (सर्व मनुष्यांनी) त्याला भूरि भूरि धन्यवाद दिले पाहिजेत. ।।६।।
विशेष
या मंत्रात अर्थश्लेषालंकार आहे. ईशे पदाची आवृत्ती असल्यामुळे ताटानुप्रास अलंकार आहे.
तमिल (1)
Word Meaning
சிறந்த வீரத்தினுடையவும் செல்வம் சௌபாக்கயத்தினுடையவும் மக்கட்களுடன் பசுக்கூட்டங்களோடு ஐசுவரியத்தினுடையவும் சத்துருக்களோடு யுத்தஞ் செய்பவைகளின் தலைவனாய் இந்த (அக்னி) இருக்கிறான்.
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