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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 141 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 141/ मन्त्र 4
    ऋषिः - अग्निस्तापसः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    इ॒न्द्र॒वा॒यू बृह॒स्पतिं॑ सु॒हवे॒ह ह॑वामहे । यथा॑ न॒: सर्व॒ इज्जन॒: संग॑त्यां सु॒मना॒ अस॑त् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒न्द्र॒वा॒यू इति॑ । बृह॒स्पति॑म् । सु॒ऽहवा॑ । इ॒ह । ह॒वा॒म॒हे॒ । यथा॑ । नः॒ । सर्वः॑ । इत् । जनः॑ । सम्ऽग॑त्याम् । सु॒ऽमनाः॑ । अस॑त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रवायू बृहस्पतिं सुहवेह हवामहे । यथा न: सर्व इज्जन: संगत्यां सुमना असत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रवायू इति । बृहस्पतिम् । सुऽहवा । इह । हवामहे । यथा । नः । सर्वः । इत् । जनः । सम्ऽगत्याम् । सुऽमनाः । असत् ॥ १०.१४१.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 141; मन्त्र » 4
    अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 29; मन्त्र » 4

    पदार्थ -
    [१] (सुहवा) = शोभन आह्वानवाले, जिनकी आराधना उत्तम है, उन (इन्द्रवायू) = इन्द्र और वायु को, शक्ति व गति के देवों को (इह) = इस जीवन में (हवामहे) = पुकारते हैं । (बृहस्पतिम्) = ज्ञान के अधिष्ठातृदेव को भी हम पुकारते हैं । हम 'शक्ति-गति व ज्ञान' की प्राप्ति के लिये प्रार्थना करते हैं । [२] हम यह चाहते हैं कि इस प्रकार का हमारा वातावरण बने कि (यथा) = जिससे (नः) = हमारे (सर्वः) = सब (इत्) = ही (जन:) = लोग (संगत्याम्) = सम्यक् गति के होने पर (सुमनाः) = उत्तम मनवाले (असत्) = हों ।

    भावार्थ - भावार्थ- हम शक्ति, गति व ज्ञान की आराधना करें। हमारे सभी व्यक्ति सम्यक् गतिवाले होते हुए उत्तम मनोंवाले हों ।

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